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________________ 224 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) क्षेत्र को सहज ही विजित कर लिया। वहाँ के राजाओं ने उपहार आदि भेंटकर उन्हें प्रणाम कर उनकी अधीनता स्वीकार कर ली। अनेक नदियों को पार कर उन्होंने गंगा की वेदी पर से समुद्र को देखा। विशाल उपसमूद्र में भी उनका रथ प्रवेश कर गया। वहाँ के देवों (राजाओं) को वश में करने के लिए उन्होंने चनी हुई सेना अपने साथ ली। जब उनका बाण मगधदेव की सभा में पहुँचा तो उसने उस पर 'भरत' का नाम देखकर पहले तो युद्ध की ठानी किन्तु बाद में उनकी अधीनता स्वीकार कर ली। पूर्व दिशा में विजय के बाद, भरत ने समुद्र के किनारे-किनारे दक्षिण दिशा की ओर कूच किया। उनके एक ओर लवणसमुद्र था तो दूसरी ओर उपसमुद्र। उन दोनों के बीच में उनकी सेना तीसरे समुद्र की भाँति मालूम पड़ती थी। अनेक छोटे-छोटे राजाओं ने उन्हें प्रणाम कर उनकी अधीनता स्वीकार कर ली। उन्हें इन राजाओं ने हाथी, धन आदि भेंट में दिए थे। उनके घोड़ों ने पम्पा सरोवर (आधुनिक हम्पी) को पार किया था। अनेक द्वीपों के राजाओं ने उनकी अधीनता स्वीकार की थी। भरतने केरल, चेर और पुन्नाग देशों के राजाओं को भी अपने अधीन किया था। 'आदिपुराण' के रचयिता जिनसेनाचार्य के शब्दों में, भरत की दक्षिण-विजय, गोदावरी और किष्किन्धा (आजकल हम्पी) क्षेत्र को पारकर प्रयाण और विजय का वर्णन इस प्रकार है __ "प्रकट रूप से धारण किये हुए आडम्बरों से जिनका वेष विकट तथा शूरवीरता को उत्पन्न करनेवाला है, जिन्हें हल्दी, ताम्बूल और अंजन बहुत प्रिय हैं, तथा प्रायःकर यश ही जिनका धन है ऐसे 'कर्णाटक देश' के राजाओं को; जो कठिन प्रहार करने में सिद्धहस्त हैं, जो बड़े कृपण हैं और जो केवल शरीर की अपेक्षा ही पाषाण के समान कठोर नहीं हैं किन्तु हृदय की अपेक्षा भी पाषाण के समान कठोर हैं ऐसे 'आन्ध्र देश' के राजाओं को; जिन्हें प्रायः झूठ बोलना प्रिय नहीं है और जिनकी चेष्टाएँ कुटिल हैं, ऐसे 'चोल देश के राजाओं को, मधुर गोष्ठी करने में प्रवीण तथा सरलतापूर्वक वार्तालाप करने वाले 'केरल देश' के राजाओं को; जिनके भुजदण्ड अत्यन्त बलिष्ठ हैं, जिन्होंने शत्रुओं के समूह नष्ट कर दिये हैं, जिन्हें हाथी बहुत प्रिय हैं और जो युद्ध में प्रायः धनुष तथा भाला आदि शस्त्रों का अधिकता से प्रयोग करते हैं ऐसे 'पाण्ड्य देश' के राजाओं को और जिन्होंने प्रतिकूल खड़े होकर अपना पराक्रम दिखलाया है ऐसे अन्य देश के राजाओं को सेनापति ने अपनी विजयी सेना के द्वारा आक्रमण कर अपने अधीन किया था।" दक्षिण की विजय के बाद भरत की सेना ने दक्षिण समुद्र की ओर प्रयाण किया था। वहाँ के वरतनु द्वीप को भी भरत ने विजित किया। ___ दक्षिण दिशा के बाद भरत ने पश्चिम दिशा के देशों को भी जीतकर अपने अधीन किया। उत्तर दिशा को विजय-यात्रा करते हुए चक्रवर्ती भरत विजयार्ध पर्वत तक जा पहुंचे। इस प्रकार समस्त पृथ्वी एवं म्लेच्छ खण्डों को जीतकर वे अयोध्या लौटे । मार्ग में उन्होंने कैलाश-पर्वत पर ऋषभदेव की भी वन्दना की। अयोध्या में भरत का चक्र अवरुद्ध दिग्विजय के बाद जब भरत अयोध्या वापस आये तो उनके चक्र ने अयोध्या में प्रवेश
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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