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________________ 204 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) कुलदेवी वासंतिका का मन्दिर अब भी है। यक्षी पद्मावती की कृपा से उस समय वसंत ऋतु हो गई थी और सळ ने 'वासन्तिका' देवी के नाम से ही उसका पूजन किया था। महाराज सळ ने अपनी वीरता और योग्यता से चोल और कोंगाल्व राजाओं के कुछ प्रदेश छीनकर अपने राजवंश की नींव डाली। उसके पुत्र विनयादित्य प्रथम (1022-47 ई.) और पौत्र नृपकाम (1047-1060 ई.) ने भी अपनी शक्ति और राज्य का विस्तार किया। आचार्य सुदत्त उनका मार्गदर्शन करते रहे। विनयादित्य द्वितीय इस वंश का चौथा शासक था। उसने 1060-1101 ई. तक राज्य किया। वह बड़ा उदार, पराक्रमी, दानी और धर्मात्मा राजा था। श्रवणबेलगोल के एक शिलालेख से स्पष्ट है कि अपने गुरु जैनाचार्य शान्तिदेव के उपदेश से उसने अनेक जिन-मन्दिरों, सरोवरों, ग्रामों, नगरों आदि का निर्माण कराया था। अंगडि में ही आचार्य शान्तिदेव ने 1062 ई. में समाधिमरण किया था। इस राजा ने मत्तावर नगर में एक नहर भी बनवाई। उसके पूर्ण होने पर जब वह 1069 ई. में उसका निरीक्षण करने गया तो वह पहाड़ी पर जिनेन्द्र भगवान के दर्शन के लिए भो गया। वहाँ के सेट्टियों से नगर में जिनालय के अभाव का कारण पूछा तो उन्होंने आथिक कठिनाई बताई। तब राजा ने स्वयं धन देकर, उन लोगों से भी दान दिलाकर वहाँ एक जिनमन्दिर का निर्माण करा दिया और उस स्थान का नाम 'ऋषिहल्लि' रख दिया। अपने जीवन के अन्तिम भाग में वह कुछ विरक्त-सा हो गया था और राज्य का काम युवराज त्रिभुवनमल्ल ऐरेयग देखता था। उसने भी जैनाचार्यों का सम्मान किया था और अनेक अनेक जैन बसदियों का उद्धार किया था। उससे एचलदेवी द्वारा ब्रह्मा, विष्णु और शिव की तरह बल्लाल, विष्णु और उदयादित्य नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए। एरेयंग की शीघ्र ही मृत्यु हो गई और उसके ज्यष्ठ पुत्र बल्लाल प्रथम ने 1101-1106 ई. तक राज्य किया। उसके धर्मगुरु चारुकीति पण्डितदेव थे। एक बार बल्लाल एक सैन्य शिविर में किसी असाध्य रोग से पीड़ित हो गया तो चारुकीति ने अपने औषधि-प्रयोग से उसे स्वस्थ कर दिया। उसने चंगाल्व नरेश को पराजित किया था। बल्लाल ने अपनी राजधानी अंगडि (शशकपुर) से हटाकर बेलूर में स्थापित की थी। विष्णुवर्धन विष्णुवर्धन (1106-1141 ई.) बल्लाल का छोटा भाई था। उसका वास्तविक नाम बिट्टिग या बिट्टिदेव था। यही राजा इतिहास में, विशेषकर मन्दिर-मूर्ति निर्माण-कला के इतिहास में, धार्मिक और राजनीतिक इतिहास में सबसे अधिक यशस्वी, बहुचर्चित और विवादास्पद व्यक्तित्व का शासक हुआ है। वह जैनधर्म का अनुयायी था। उसने अपने राज्य का खूब विस्तार किया और वही एक प्रकार से होयसल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था। उसने तलकाड कोंग, नंगलि, गंगवाडि, नोलम्बवाडि, मासवाडि, हुलिगेरे, हलसिगे, बनवासि हानुंगल पर अधिकार किया। अंग, कुंतल, मध्यदेश और कांची, विनीत तथा मदुरा भी उसके अधीन थे। सन् 1135 ई. में उसने राजधानी बेलूर से हटाकर द्वारसमुद्र (आज के हलेबिड) में स्थापित की। यह 1311 ई. या 1326 ई. तक होयसल राजधानी बनी रही। (सन् 1310 ई. में अलाउद्दीन
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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