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हलेबिड | 203
एक प्राचीन राजधानी
हलेबिड का कन्नड भाषा में अर्थ है पुरानी राजधानी (हले पुराना, बिडु =राजधानी)। इस स्थान का प्राचीन नाम दोरसमुद्र, द्वारसमुद्र या द्वारावतीपुर है। जब यह राजधानी नष्ट हो गई तो इस स्थान का नाम ही हलेबिड या हलेबिडु पड़ गया। ___नष्ट होने से पूर्व यहाँ होय्सल-नरेशों की राजधानी थी। इन्हीं के समय में सुन्दर मन्दिरमूर्ति निर्माणकला अपने शिखर पर पहुँची और होयसल शैली कहलाने लगी। इसी नाम से यह कला आज तक प्रसिद्ध है।
होयसल राजवंश की स्थापना में जैनाचार्य सुदत्त वर्धमान ने सक्रिय सहायता की थी या उसकी स्थापना के वे ही मूल प्रेरक थे।
हलेबिड गाँव से मुश्किल से आधा किलोमीटर की दूरी पर बस्तिहल्ली नामक एक दूसरा गाँव है। वहाँ तीन प्राचीन जैन मन्दिर हैं जो कि दर्शनीय हैं। हलेबिड आने वाले हर यात्री को इन्हें देखना चाहिए। इनका वर्णन आगे किया जाएगा। वहाँ की पार्श्वनाथ बसदि की बाहरी दीवाल में एक शिलालेख 1133 ई. का है। यह लेख संस्कृत और कन्नड़ में है। उसमें होयसल राजवंश की स्थापना की संक्षिप्त कहानी दी गई है। होयसल राजवंश
शिलालेख के अनुसार, इस वंश का संस्थापक सळ यादव कुल में उत्पन्न हुआ था। 'सम्यक्त्वरत्नाकर' सळ सोसेवूरु, (शशकपुर) में एक छोटे सामन्त के रूप में राज्य करता था। सोसेवूरु की पहिचान मूडिगेरे तालुक के वर्तमान अंगडि नामक स्थान (बेलूर से लगभग 24 कि. मी॰ दूर )से की गई है। इस बात के अनेक प्रमाण शिलालेखों के रूप में मिले हैं कि अंगडि दसवीं शताब्दी के मध्य ही एक प्रसिद्ध जैन केन्द्र था। श्रवणबेलगोल, मूडिगेरे, कलियूरु आदि अनेक स्थानों के शिलालेख इस स्थान और यहाँ पर राजवंश की स्थापना संबंधी घटनाओं की जानकारी देते हैं। उस समय यहाँ मकर जिनालय और पद्मावती देवी का विशाल मन्दिर था। इसके साथ ही आचार्य सुदत्त वर्धमान का विद्यापीठ था। सळ और उसके वंशज अपने आपको ‘मले परोल गण्ड' (पहाड़ी सामन्तों में मुख्य) मानते थे। एक बार आचार्य उपदेश दे रहे थे कि एक सिंह वन में से आ गया और आचार्य के ऊपर झपटा। यह देख आचार्य ने अपनी मयूरपिच्छि सळ की ओर बढ़ाते हुए कहा, “पोय् सळ' (सळ, मारो)। सळ ने उसी पिच्छि से सिंह को मार भगाया। कहा जाता है कि जैन धर्म को सबल राज्याश्रय प्राप्त कराने और सळ में एक वीर या होनहार राजा के गुण देख आचार्य सुदत्त ने मंत्रों द्वारा देवी पद्मावती को वश में किया
और उसे ही एक सिंह के रूप में प्रकट किया था। शिलालेख का यह कथन कि आचार्य व्रत और मंत्रों की साधना पद्मावती के लिए कर रहे थे, उस समय को यक्षी को साधना की जाने की भी सूचना देता है। जो भी हो, आचार्य सळ की वीरता से प्रसन्न हुए और इन्होंने उसे एक नए राजवंश की स्थापना के लिए आशीर्वाद दिया। तभी से यह वंश पोयसल या होयसल कहलाने लगा और उसका राज्यचिह्न भी सिंह निर्धारित हुआ। यह जानकारी 1006 ई. के कलियूरु के होय्सल शिलालेख से प्राप्त होती है। आज अंगडि एक गाँव मात्र है किन्तु होय्सल-नरेशों की