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________________ बेलूर | 201 था। होय्सलनरेश विष्णुवर्धन ने उसे 1117 ई. में तलकाड के रणक्षेत्र में चोल सामन्त पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में बनवाया था (उसका राज्याभिषेक 1114 ई. में हुआ था)। वैसे इसी मन्दिर के अहाते में वीरनारायण नामक एक मन्दिर और भी है। उपर्युक्त मन्दिर को एक प्रकार से मूर्तियों का संग्रहालय कहा जाता है। यह बात मन्दिर के अन्दर और बाहर की मूर्तियों को देखने से एकदम स्पष्ट हो जाती है । मन्दिर के मुख्य देवता विष्णु (केशव) हैं । उनकी बारह फुट ऊँची प्रतिमा भव्य है। उसकी प्रभावली में विष्णु के दस अवतार प्रदर्शित हैं। अन्य देवी-देवताओं की भी बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ हैं । मन्दिर के नवरंग (हॉल) में कुल 46 स्तम्भ हैं जिनपर भी अनेक देव-मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। एक स्तम्भ 'नरसिंह स्तम्भ' कहलाता है । कहा जाता है कि यह स्तम्भ इच्छानुसार घुमाया जा सकता है। स्तम्भों की नक्काशी सुन्दर है और अलग-अलग स्तम्भों पर विभिन्न प्रकार की है। ऐसा लगता है कि नक्काशी में ये स्तम्भ एक-दूसरे से होड़ कर रहे हों । एक स्तम्भ पर अष्ट दिक्पाल भी प्रदर्शित हैं। यहाँ पीतल का भी एक शेषनाग है। गर्भगृह में कुछ मूर्तियों के पास अँधेरा-सा है। मन्दिर सर्चलाइट में भी दिखाया जाता है । इसकी छत पर भी कमल एवं अप्सराओं आदि की आकर्षक नक्काशी है। मन्दिर में हवा और प्रकाश के लिए पत्थरों की सुन्दर जालियाँ हैं जिनकी संख्या 28 है। ये भी सामान्यतः तारों की आकृति में हैं। उन पर फ्ल-पत्ती तथा पौराणिक देवों आदि की कथाएँ चित्रित हैं। ये बीच-बीच में संयोजित की गई हैं। इस मन्दिर में पौराणिक देवी-देवताओं या विविध पौराणिक दृश्यों की भरमार है। रामायण, महाभारत, भागवतपुराण, यक्ष, भीम द्वारा गणपति की पूजा, कृष्ण के चरणों में अर्जुन, विष्णु को दान देते हुए बलि, प्रह्लाद की कथा आदि अनेक पौराणिक प्रसंगों का सघन अंकन इस मन्दिर की एक प्रमुख विशेषता है। शायद इसी कारण यह वैदिक देवी-देवताओं का एक संग्रहालय ही बन गया है। मन्दिर के बाहर गजथर (लगभग 650 हाथी जिनकी निर्माण-कला अलग-अलग प्रकार की है), हंसथर (हंसों की प्री पंक्ति), मकर की पूरी पंक्ति; सैनिकों, अश्वों आदि की पंक्तियाँ (मन्दिर के चारों ओर) जिनमें उनका अंकन भिन्न-भिन्न प्रकार का है, इस मन्दिर को भव्यता प्रदान करती हैं। उनके बीच-बीच में फ्ल-पत्तियों की बार्डर भी हैं। नर्तकों, वादकों और संगीतमण्डलियों का उत्कीर्णन इसमें और भी सुन्दरता ला देता है। नारी के विभिन्न आकर्षक रूप, जिनमें से कुछ का आध्यात्मिक आख्यानों में या प्रतीक रूप में महत्त्व बताया जाता है, यहाँ बड़े ही सुन्दर ढंग से चित्रित हैं। ये मदनिकाएँ, अप्सराएँ या सुन्दरियाँ अपनी सुन्दर भावव्यंजना के कारण दर्शकों को आश्चर्य में डाल देती हैं। ___ बताया जाता है कि इस मन्दिर के हाथी-दरवाजे के पास जो अंकन है वह होय्सलनरेश विष्णुवर्धन और उसकी पट्टरानी शान्तला का है। मन्दिर देखकर ऐसा लगता है कि कलाकार ने एक-एक इंच पर अपनी छैनी चलाई है। इसका डिजाइन बनानेवाला शिल्पी सचमुच बड़ी ही प्रतिभा का धनी रहा होगा। मन्दिर ध्यान से, और यदि सम्भव हो तो गाइड की सहायता से, देखना चाहिए । मन्दिर देखने के लिए लोगों का तांता लगा रहता है। .
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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