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________________ 200 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) ऐतिहासिक महत्त्व यागची नदी के किनारे हासन जिले में स्थित है। इस स्थान के प्राचीन नाम वेलापुरी, बेलूर और बेलापुर मिलते हैं। जैनेतर लोग इसे 'दक्षिण वाराणसी' भी कहते हैं। बारहवीं सदी में यह स्थान एक प्रसिद्ध राजधानी था। इतिहास और अनुश्रुति तथा शिलालेखों आदि में बहुचचित होयसलनरेश बिट्टिग (अपर नाम विष्णुवर्धन) यहाँ शासन करता था। उसका शासन यहाँ के कर्नाटक के राजनीतिक तथा धार्मिक इतिहास में बड़ा महत्त्व रखता है। उसने 1135 ई. में यहाँ से राजधानी हटाकर दोरसमुद्र (आधुनिक हलेबिड) में स्थापित की थी। होयसल राजवंश की स्थापना में जैनाचार्य का हाथ रहा है । इसकी तथा विष्णुवर्धन को धर्म सम्बन्धी चर्चा हलेविड के प्रसंग में की जाएगी। बेलूर कोई प्रसिद्ध जैन केन्द्र नहीं है और न ही यहाँ उल्लेखनीय जैन मन्दिर हैं । दर्शनीय जैनमन्दिर हलेबिड में हैं। यह स्थान धर्मस्थल से हलेबिड के मार्ग में पड़ता है। यहाँ के 'चन्नकेशव मन्दिर' (विष्णु को समर्पित) का अलंकरण (सुन्दर नक्काशी) और मूर्तिकला इतनी आकर्षक और उन्नत है कि यह मन्दिर अवश्य देखना चाहिए। 'चन्न' का अर्थ है 'सुन्दर'। यद्यपि यह विशेषण केशव के साथ लगा है किन्तु इसे मन्दिर के साथ भी प्रयुक्त किया जा सकता है। 'चन्नकेशव मन्दिर' का सम्बन्ध जैनधर्म या उसके प्रभाव से भी है जिसका उल्लेख मन्दिर की विशिष्ट कला का संक्षिप्त परिचय देने के बाद किया जाएगा। उपर्युक्त मन्दिर यहाँ के बस स्टैण्ड से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर है। बस स्टैण्ड के पास ही टूरिस्ट बंगला भी है। जैन यात्रियों को परामर्श दिया जाता है कि वे हलेबिड (17 कि. मी.) के टूरिस्ट बंगलों में ठहरें । वहाँ के अत्यन्त आकर्षक 'होयसलेश्वर मन्दिर' (इसके सुन्दर उद्यानयुक्त अहाते में लोग पिकनिक करते हैं) और तीन जैनमन्दिर देखने में आठ-नौ घण्टे का समय चाहिए। जैन मन्दिर सुबह ही अच्छी तरह देखे जा सकते हैं। 'चन्नकेशव मन्दिर' ऊँची दीवाल वाले विशाल अहाते (380x425 फुट) में स्थित है। उसके दो ऊँचे गोपुर (प्रवेशद्वार) हैं । मन्दिर की लम्बाई पूर्वी द्वार से गर्भगृह के पीछे तक 115 फुट है। वह ऊँची चौकी पर बना है और उसके आसपास का चबूतरा दस-पन्द्रह फुट चौड़ा है। आमतौर से मन्दिर चौकोर या गोल बनते हैं किन्तु चन्नकेशव मन्दिर एक तारे (star) की आकृति का है। इस कारण उसकी दीवालों में जो कोण बने हैं, उनसे इसमें शिल्पियों ने अपनी छैनी से ऐसी कृतियाँ निर्मित की हैं जो सदा याद रहती हैं। मन्दिर का निर्माण समीप ही मिलने वाले नरम सेलखड़ी पत्थर (कुछ हरा-सा) से किया गया है जिसके कारण बारीक नक्काशी सम्भव हो सकी है। कुछ लोग इसे ग्रेनाइट बताते हैं जो कि गलत है। मन्दिर की विशेषता उसे देखकर ही जानी जा सकती है । यहाँ उसका कुछ परिचय दिया जाता है। इस प्रसिद्ध मन्दिर का शिल्पी जकणाचारी था। बताया जाता है कि चन्नकेशव मन्दिर किसी समय 'वीर-नारायण मन्दिर' कहलाता
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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