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मूडबिद्री | 171
सुरक्षित रखे गए थे। किन्तु कुछ प्रमादवश यह विशाल एवं अज्ञात भंडार कीड़ों का उपहार बन गया। जो ग्रन्थ शेष बचे थे उन्हें आरा निवासी स्व. बाबू देव कुमार ने अपने व्यय से व्यवस्थित करवाया, उनकी सूची बनवाई और उन्हें यहाँ के जैनमठ में सुरक्षित रखवा दिया था। बताया जाता है कि इस क्षेत्र में ताड़पत्रों पर लिखे ग्रन्थों की संख्या लगभग तीन-चार हज़ार थी। जो सुरक्षित रह गए हैं उन्हें अब श्रीमती रमारानी जैन शोध संस्थान में विद्वानों के अनुसंधान आदि के लिए सँभालकर रख दिया गया है।
जैन पाठशाला बसदि-यहाँ के जैनमठ के सामने किसी समय एक जैन संस्कृत पाठशाला थी । यहाँ के मन्दिर में अमृतशिला से निर्मित लगभग दो फुट ऊँची मुनिसुव्रतनाथ की एक खड्गासन सुन्दर मूर्ति है । यक्ष-यक्षी भी हैं। जैन-पुल
बताया जाता है कि मूडबिद्री में 18 तालाब हैं। अनुश्रुति है कि 'त्रिभुवनतिलकचूडामणि' मन्दिर के लिए 'अंकिसालेय केरे' (तालाब) से चाँदी के कलश में जल लाया जाता था। इस मन्दिर के पास जो पुल है वह जैन पुल कहलाता है। चोटर राजमहल
जैन धर्मानुयायी चोटर वंश के राजा किसी समय होयसल राजाओं के सामन्त थे। समय पाकर वे स्वतन्त्र हो गए और उन्होंने अपनी राजधानी पहले उल्लाल में और बाद में मूडबिद्री एवं पुत्तिगे में स्थापित की। इनका शासनकाल 1160 से 1860 ई. अर्थात् लगभग सात सौ वर्षों तक रहा । उसके बाद उनका राज्य ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत चला गया। उन्हें राजनैतिक पेंशन दी गई जोकि यहाँ रहनेवाले उनके वंशजों को आज तक मिलती है। चोटर राजाओं के महल का निर्माण 1643 ई. में हआ था। यह आठ एकड भमि में फैला हुआ है। उसके चारों ओर क़िलाबन्दी है तथा तीन ओर खाई है। महल अब खस्ता हालत में है किन्तु उसमें चित्रित जैन कला दर्शनीय है। कारीगरी इतनी सूक्ष्म एवं विस्मयकारी है कि प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जाता।
यहाँ के एक स्तम्भ पर पाँच अप्सराओं की आकृति से बनी एक घोड़े की आकृति चित्रित की गई है। इसे 'पंचनारीतुरग' कहते हैं । एक और चित्र में नौ अप्सराओं की आकृति से एक कुंजर (हाथी) की आकृति बनती है । यह 'नवनारीकुंजर' कहलाता है (चित्र क्र. 75)।
उपर्युक्त चित्र 12 वीं से 14वीं सदी तक के बीच बने बताए जाते हैं। इनसे आभूषण, पोशाक, केश-विन्यास आदि की अच्छी जानकारी मिलती है । गवाक्षों में भी सूक्ष्म चित्रकारी है जो देखते ही बनती है। यहाँ एक कक्ष ऐसा भी बताया जाता है जिसमें मृत राजाओं के शरीर को नमक में डालकर रखा जाता था। इस चोटरवंश के लोग आज भी जैनधर्म का पालन करते हैं। .. काष्ठ का रथ-मूडबिद्री में काष्ठ का एक रथ भी है जिस पर नक्काशी का सुन्दर और सूक्ष्म काम हुआ है।