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________________ *170 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) लगभग तीन फुट ऊँची प्रतिमाएँ विराजमान हैं। इन्हें 'रत्नत्रय भगवान' भी कहा जाता है। बीच की प्रतिमा श्वेत पाषाण की है और शेष दो धातु-निर्मित । यहाँ चौबीसी भी है। अनुश्रुति है कि देरम्मा शेट्टी एक निर्धन श्रावक था। किन्तु उसके मन में यह इच्छा बलवती हुई कि वह भी एक जिनमन्दिर का निर्माण कराए। दृढ़ निश्चयी उस जिनभक्त ने अपनी आय में से चौथाई भाग बचाकर धन-संग्रह किया और इस मन्दिर का निर्माण कराया। चोल शेट्री बसदि-जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इस मन्दिर का निर्माण चोल शेट्री नामक जिनधर्मानुयायी ने कराया था। इसमें सुमतिनाथ, पद्मप्रभ और मल्लिनाथ की काले पाषाणों से निर्मित भव्य प्रतिमाएँ पद्मासन में हैं। सुमतिनाथ की प्रतिमा मकर-तोरण और प्रभावली से युक्त है किन्तु आसन छोटा जान पड़ता है। पद्मप्रभ की मूर्ति भी मकर-तोरण एवं यक्ष-यक्षी सहित है । सुन्दर नक्काशीदार भामण्डल धनुषाकार जान पड़ता है। मल्लिनाथ की प्रतिमा भी मकर-तोरण से सज्जित है । यक्ष-यक्षी का भी अंकन है। नक्काशी सुन्दर है। इस बसदि में पाषाण के एक शंख पर नेमिनाथ कायोत्सर्ग मुद्रा में यक्ष-यक्षी, मकर-तोरण से सुसज्जित हैं। उनके आसपास चँवर भी अंकित हैं । मन्दिर के दाएँ-बाएँ भाग में दो चीबीसी भी हैं। मादिशेट्टी बसदि या आदिनाथ बसदि-मादिशेट्टी नामक व्यक्ति ने इसका निर्माण कराया था, इसलिए इसे मादिशेट्टी बसदि कहते हैं । ऋषभदेव या आदिनाथ इसके मूलनायक हैं। इसलिए इसे आदिनाथ बसदि के नाम से भी जाना जाता है । ऋषभदेव की काले पाषाण से निर्मित लगभग पाँच फुट ऊँची मूर्ति कायोत्सर्ग मुद्रा में है। उनके आसपास अन्य 23 तीर्थंकर भी खड्गासन में उत्कीर्ण हैं । यक्ष-यक्षी भी प्रदर्शित हैं। इसकी निर्माण सम्बन्धी जानकारी मति के पादपीठ में उत्कीर्ण लेख से मिलती है। बेंकि या बेंकणतिकारी बसदि-बेंकणतिकारी नामक जिनधर्मी द्वारा निर्मित कराए जाने के कारण यह इस नाम से जानी जाती है। इसमें जो चौबीसी है उसके मूलनायक अनन्तनाथ हैं। उनकी कायोत्सर्ग मुद्रा में काले पाषाण की लगभग तीन फुट ऊँची प्रतिमा है जिसके प्रभावलय में अन्य तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं । यक्ष-यक्षी भी प्रदर्शित हैं। तीर्थंकर पार्श्वनाथ की एक अन्य मूर्ति सात फणों से तथा यक्ष-यक्षी से संयोजित है। प्रभावली एवं चँवर का अंकन भी है। यहाँ एक सरस्वती प्रतिमा भी है जिसके हाथ में वीणा और पुस्तक है। ___ केरे बसदि-कन्नड़ में केरे का अर्थ तालाब होता है । इसके सामने एक तालाब है, इस कारण यह 'तालाबवाला मन्दिर' के नाम से प्रसिद्ध है। इसके मूलनायक मल्लिनाथ हैं । काले पाषाण से निर्मित उनकी लगभग तीन फट ऊँची मति कायोत्सर्ग मद्रा में यक्ष-यक्षी सहित तथा मकर-तोरण से सज्जित है। मूर्ति पर नाभि के पास तीन वलयों का अंकन प्रभावशाली है। पडु बसदि-कन्नड़ में 'पडु' का अर्थ होता है पूर्व (दिशा)। यह मन्दिर मूडबिद्री की पूर्व दिशा में स्थित है इसलिए ‘पडु बसदि' कहलाता है। एक ताम्रपत्र में उल्लेख है कि यह मन्दिर गुरु बसदि से भी प्राचीन है । यह तीन तीर्थंकरों-विमलनाथ, अनन्तनाथ और धर्मनाथ की मनोज्ञ, पाषाण-निर्मित कायोत्सर्ग, लगभग तीन फुट ऊँची मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। इस मन्दिर में एक 'गुप्तगृह' भी है जिसमें किसी समय पत्थर की पेटी में अनेक विषयों के जैन ग्रन्थ
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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