SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूडबिद्री | 169 फुट ऊँची है । वे यक्ष-यक्षी सहित हैं। इस मन्दिर की विशेषता यह है कि इसके भीतरी प्राकार में खड्गासन चौबीस तीर्थंकरों (चित्र क्र. 74), सरस्वती और पद्मावती की पकी मिट्टी (clay) की मूर्तियाँ हैं। इस प्रकार की मूर्तियाँ अन्य किसी स्थान पर शायद ही हों। इसकी ऊपर की मंजिल पर पद्मासन में आदिनाथ की धातुनिर्मित प्रतिमा है। अनुश्रुति है कि इसका निर्माण दीपण्णा शेट्टी नामक जिनभक्त ने कराया था। बेटकेरि बसदि-इसका मुखमण्डप इसे एक साधारण भवन का आभास देता है। इसके मूलनायक महावीर स्वामी हैं जिनकी पद्मासन में तीन फुट ऊँची संगमरमर की प्रतिमा है। उस पर छत्र है और जल उगलते मकर दिखाए गए हैं अर्थात् यह प्रतिमा मकर-तोरण युक्त है। यह बसदि एक-मंजिला है। कोटि बसदि-इसका निर्माण 1401 ई. में कोटि शेट्टी नामक जिनधर्मानुयायी ने कराया था। इस कारण इसे कोटि बसदि कहते हैं। इसके मूलनायक तीर्थंकर नेमिनाथ हैं जिनकी प्रतिमा काले पाषाण से निर्मित है और लगभग ढाई फुट ऊँची है। वे यक्ष-यक्षी सहित हैं। चँवरधारी भी उत्कीर्ण हैं। प्रभावली ताम्र-निर्मित है। इस मन्दिर का जीर्णोद्धार सन् 1924 ई. में मूडबिद्री के ही चोटर राजा धर्मसाम्राजय्या ने कराया था। इसलिए यह मन्दिर उनके वंशजों के नियन्त्रण विक्रम शेट्टी बसदि-विक्रम शेट्टी नाम के श्रावक ने इस बसदि का निर्माण कराया था, इसलिए यह 'विक्रम शेट्टी बसदि' कहलाता है। इसके सामने लगभग 35 या 40 फुट ऊँचा सुन्दर मानस्तम्भ है। इसके मूलनायक ऋषभदेव हैं। काले पाषाण से निर्मित उनकी मूर्ति दो फुट ऊँची है। तीर्थंकर कमलासन पर पद्मासन में हैं और मकर-तोरण से संयुक्त हैं । ऐसा जान पड़ता है कि उनका आसन छोटा है और उनके चरण कुछ बाहर निकले हए हैं। कल्लु बसदि-कन्नड में 'कल्लु' का अर्थ पाषाण होता है। पाषाण-निर्मित होने के कारण यह मन्दिर कल्लु बसदि कहलाता है। सन् 1934 ई. में इसका जीर्णोद्धार हुआ था। बताया जाता है कि पहले इसके मूलनायक चन्द्रनाथ थे किन्तु जीर्णोद्धार के बाद यहाँ शीतलनाथ की प्रतिमा स्थापित कर दी गई। यह भी एक प्राचीन मन्दिर जान पड़ता है। मूर्ति मनोहर है, मकर-तोरण को भी संयोजना है। भामण्डल अर्धचन्द्राकार है । मन्दिर के सामने एक मानस्तम्भ भी है जिसपर सबसे ऊपर कलश है। लेप्पद बसदि-यहाँ 'लेप्प' (मिट्टी) से निर्मित चन्द्रप्रभ और ज्वालामालिनी यक्षी की लगभग चार फुट ऊँची मूर्तियाँ हैं। इस कारण इसे 'लेप्पद बसदि' कहा जाता है। कहा जाता है कि विक्रांत शेट्टी और पदुमशेट्टी नामक श्रावकों ने इसका निर्माण कराया था। इसका उल्लेख 'स्थापना पद्यावली' में भी है। इस बसदि की ज्वालामालिनी की प्रसिद्धि इस क्षेत्र में अधिक है। इस कारण अपने मनोरथ की पूर्ति हेतु विधि-विधान या पूजा कराने के लिए आसपास की जनता सैकड़ों की संख्या में यहाँ प्रतिवर्ष आती है। मन्दिर के सामने लगभग 40 फुट ऊँचा एक मानस्तम्भ भी है। देरम्मा शेट्टी बसदि-यह मन्दिर मल्लिनाथ बसदि भी कहलाता है। इसके मूलनायक तीर्थंकर मल्लिनाथ हैं। इसमें कमलासन पर अरहनाथ, मल्लिनाथ और मुनिसुव्रतनाथ की
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy