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________________ 160 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थं (कर्नाटक) समशीतोष्ण तथा स्वास्थ्यवर्धक है। केरल का सुन्दर प्रदेश भी मंगलोर से 20 कि. मी. के लगभग आगे बढ़ने पर प्रारम्भ हो जाता है । मूडी की विभिन्न वर्गों में प्रसिद्धि इस प्रकार है - ( 1 ) श्रद्धालु तीर्थयात्री यह आव श्यक मानता है कि श्रवणबेलगोल की यात्रा के बाद यहाँ की यात्रा वह अवश्य करे। वैसे भी यहाँ का जैन मठ श्रवणबेलगोल की ही एक शाखा है । ( 2 ) विद्वानों एवं अनुसंधानकर्ताओं के लिए यह एक प्रमुख स्थान है । यहीं से धवल, जयधवल और महाधवल नामक मूलग्रन्थ ताडपत्रों पर प्राप्त हुए थे । यहाँ बहुत-से ताडपत्रीय ग्रन्थ हैं । ताडपत्रीय ग्रन्थों की लिखाई और रंगीन चित्रकारी आश्चर्यजनक हैं । स्व० साहू शान्तिप्रसादजी द्वारा स्थापित रमारानी जैन शोध संस्थान आधुनिक सुविधाओं से युक्त है । ( 3 ) कलाविदों के लिए भी यह क्षेत्र विशेष आकर्षक है । यहाँ का एक हजार खम्भों वाला 'त्रिभुवनतिलकचूड़ामणि' या 'चन्द्रनाथ मन्दिर, यहाँ के मन्दिरों में पकी मिट्टी (clay) आदि की प्राचीन प्रतिमाएँ तथा कुछ दुर्लभ प्रतिमाएँ (विशेष प्रबन्ध द्वारा देख सकते हैं) न केवल कलाविदों पर अपितु तीर्थयात्रियों पर भी एक स्थायी स्मृति छोड़ती हैं । (4) कुछ पाश्चात्य वास्तुविदों ने यह लिखा है कि यहाँ की मन्दिर निर्माण कला (ढलुआ, लघुतर होती जाती छतें, गवाक्ष आदि) नेपाल और तिब्बत की भवन-निर्माण कला से मेल खाती है। दोनों कलाओं का मेल कब कैसे हुआ यह उन्हें आश्चर्य में डालता है । किन्तु गम्भीरता पूर्वक विचार करने से यह तथ्य सामने आएगा कि तुलुनाडु में जगह-जगह ढलुआ छत के मन्दिर हैं । इसका कारण यह हो सकता है कि इस प्रदेश में वर्षा बहुत अधिक और जोरों से होती है । अतः यहाँ के मकान और मन्दिर ढलुआ छत के बनाए जाएँ तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए । यहाँ से कुछ ही दूर, केरल के कुछ मन्दिरों की छतें तो और भी आश्चर्यकारी हैं । उनमें से कुछ की छतें तो ऐसी लगती हैं जैसे कोई छतरी आधी खोल दी गई हो। इतनी गोल और ढालदार छतें हैं वहाँ की । कारण वही - तेज वर्षा का होना है । (5) उत्तर भारत से आने वाले यात्रियों को यह देखकर आश्चर्य होता है कि यहाँ रात में भी पूजन होती है और केला, नारियल आदि चढ़ाए जाते हैं । फल - पुष्प तो स्थानीय उपज के कारण चढाए जाते हैं यह माना जा सकता है किन्तु रात्रि में पूजन, धूमधाम से आरती, दीपकों की माला, चरणामृत जैसी प्रथाएँ उस काल का स्मरण दिलाती हैं जब जैनधर्म को वैष्णव, शैवों आदि के कारण घोर संकट का सामना करना पड़ा था और अपने धर्म की रक्षा के लिए जैन गुरुओं, उसके अनुयायियों को अन्य मतों की भी कुछ बातें अपना लेनी पड़ी होंगी । जो भी हो, मूडबिद्री का यह क्षेत्र ऐसे ही अनेक कारणों से महत्त्वपूर्ण है । प्राचीन वंशपुर या वेणुपुर संबन्धी शिलालेखों में यहाँ के लोगों की प्रवृत्ति, सम्पन्नता, प्राकृतिक सौन्दर्य आदि का परिचय मिलता है । यहाँ की होस बसदि ( नया मन्दिर ) जो कि 'त्रिभुवनतिलकचूडामणि चैत्यालय' कहलाती है, के कम से कम चार शिलालेखों में इस प्रकार का वर्णन है । एक शिलालेख में कहा गया है कि "सुन्दर बाग-बगीचों, सुगन्धित पुष्पों की गन्ध से युक्त पवन, चहुँ ओर सुशोभित बाह्य प्रदेशों से घिरा हुआ, उत्तम जिन मन्दिरों से पवित्र, सुन्दर भवनों से शोभित यह वंशपुर देवांगनाओं के समान पुण्यात्मा स्त्रियों के निवास के कारण मनोहर है ।" इसी प्रकार एक और शिलालेख का कथन है कि "वक्ष-भार से कुछ झुकी हुई, हारों के
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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