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________________ चिक्कमंगलूरु जिले के अन्य जैन स्थल / 137 यहाँ का मठ भी प्राचीन है यह स्पष्ट है । यहाँ के भट्टारक 'स्वस्ति श्री लक्ष्मीसेन भट्टारक पट्टाचार्य स्वामीजी' कहलाते हैं । वर्तमान भट्टारक जी सौम्य मूर्ति और अत्यन्त मधुर स्वभाव के हैं। उनसे मिलना आनन्ददायक एवं प्रेरणाप्रद होता है। सिंहदनगद्दे मठ में यात्रियों के लिए ठहरने और भोजन की अच्छी व्यवस्था है। पहले से सूचना मिलने पर दो सौ यात्रियों तक को भोजन कराया जा सकता है । ठहरने के लिए तीन परिवार-निवास (फेमिली कॉटेज) हैं जिनके साथ स्नानघर संलग्न हैं । कुछ और निवास बन रहे हैं । दो धर्मशालाएँ हैं। उनमें तेरह कमरों के साथ स्नानघर संलग्न हैं । आश्रम में 14 कमरे और दो बड़े हॉल हैं। एक हॉल में पाँच सौ व्यक्ति बैठ सकते हैं। यहाँ एक सभामण्डप भी बन रहा है। मठ के क्षेत्र में भी दो हॉल हैं। ज्वालामालिनी नामक, लड़कियों के हाईस्कूल भवन का निर्माण भी चल रहा है। ब्र. चन्दसागर वर्णी के सम्पादकत्व में 'समन्तभद्रवाणी' नामक एक पाक्षिक कन्नड़ पत्रिका भी प्रकाशित होने लगी है। मठ की आय का एक साधन दस एकड़ की खेती भी है। यहाँ के शान्त, स्वास्थ्यवर्धक वातावरण और ठहरने की आधुनिक सुविधाओं के उपलब्ध होने के कारण कुछ पर्यटक तो यहाँ कुछ दिन रम जाते हैं या बार-बार आते रहते हैं। यह बताया जा चुका है कि यहाँ से शहर का बस स्टैण्ड एक कि. मी. दूर है। क्षेत्र का पता इस प्रकार है सिंहदनगद्दे बस्ती मठ (Sinhdanagadde Basti Matha) पो. नरसिंहराजपुर (Narasimharajapura), Pin-577134 जिला-चिकमंगलूरु (Chikmagalur) (कर्नाटक) चिक्कमंगलूरु के जिले के अन्य जैन स्थल इस जिले में जैन स्थलों का भली प्रकार से सर्वेक्षण नहीं हुआ, ऐसा जान पड़ता है। शिलालेखों से एवं अन्य उपलब्ध जानकारी के अनुसार, यहाँ कुछ सामग्री दी जा रही है। मेलगी (Melgi) यह स्थान तीर्थहल्ली से लगभग 10 कि. मी. दूरी पर है। यहाँ तीर्थंकर अनन्तनाथ का लगभग सात-सौ आठ-सौ वर्ष पुराना मन्दिर है। इस समय यह भारतीय पुरातत्त्व विभाग के संरक्षण में है। यहाँ हाथी पर सवार और मस्तक पर धर्मचक्र धारण किये सर्वाह्न यक्ष की लगभग 6 फुट ऊँची मूर्ति है । क्षेत्रपाल की भी लगभग 6 फुट ऊँची एक मूर्ति है। जयपुरा (Jaipura) यहाँ की आदिनाथ बसदि में तीर्थंकर आदिनाथ की खड्गासन प्रतिमा एवं अन्य तीर्थंकरों
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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