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________________ 136 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) नाथ की लगभग 5 फुट ऊँची कायोत्सर्ग मूर्ति पर 9 फणों की छाया है और छत्रत्रय हैं। दोनों ओर चँवरधारी हैं जो कि ऊपर तक अंकित हैं । वेदी साधारण है। चन्द्रप्रभ की संगमरमर की तीन फुट ऊँची लांछनयुक्त मूर्ति के अतिरिक्त, कुछ आकर्षक कांस्य-मूर्तियाँ भी इस देवालय में हैं। तीर्थंकर प्रतिमाओं के अतिरिक्त सरस्वती और पद्मावती की मूर्तियाँ भी यहाँ स्थापित हैं। तीसरा मन्दिर चन्द्र नाथ की यक्षी ज्वालामालिनी का है (देखें चित्र क्र. 62)। यह प्रतिमा आचार्य समन्तभद्र द्वारा गेरुसोप्पा से, जैन रानी का राज्य नष्ट हो जाने पर, यहाँ लाई गई थी। हमचा में जिस प्रकार यक्षी पद्मावती का अलग मन्दिर है उसी प्रकार यहाँ भी ज्वालामालिनी का अलग मन्दिर है। देवी अतिशययुक्त मानी जाती है। वर्ष में एक बार ज्वालामालिनी का महारथोत्सव मनाया जाता है जिसमें दूर-दूर के लोग सम्मिलित होते हैं। उस समय इन्द्रप्रतिष्ठा, नान्दीमंगल, विमान-शुद्धि. पंचामृत-पूजा, श्रीवज्रपंजर यन्त्रधारा, श्री ज्वालामालिनी देवी षोडशोपचार मन्त्र, पुष्पार्चन, अष्टविधार्चन, महाभिषेक, श्री चन्द्रनाथ स्वामी कलशाभिषेकपूजा, ज्वालामालिनी और बाहुबली स्वामी का महाभिषेक आदि चार-पाँच दिन चलने वाले कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मन्दिर का बाहरी प्रवेशद्वार लकडी का पंचशाखा प्रकार का है, उस पर पुष्पावली का सुन्दर अंकन है। अन्दर का दरवाजा भी लकड़ी का है किन्तु उस पर अंकन कम है। नीचे चँवरधारिणियाँ हैं । गर्भगृह के द्वार की चौखट भी उत्कीर्ण है और उस पर नीचे द्वारपाल प्रदर्शित हैं। गर्भगृह में जाने के लिए सीढ़ियाँ हैं। ज्वालामालिनी की मूर्ति पीतल की है। उस पर कीर्तिमुख है और एक छोटी तथा एक बड़ी सुन्दर, आकर्षक ढंग से उत्कीर्ण चाप (arch) हैं। मूर्ति के तीन ओर का फेम भी पीतल का है और उस पर भी अच्छी नक्काशी है । मन्दिर को छत लकड़ी की है। टाइल्स (कवेलू, मंगलोर ढंग के) से ढका मन्दिर का शिखर षट्कोण है। मन्दिर में प्रवेश से पहले बड़ा खुला प्रांगण है। उसमें दोनों ओर तीन विशाल स्तम्भ हैं। सामने बलिपीठ है। मन्दिर के चारों ओर खुला प्रांगण है और कंगूरेदार दीवाल है। इसके पीछे सरोवर है जिसमें कमल खिलते हैं । इस प्रकार यह मन्दिर आकर्षक बन गया है। ____ शान्तिनाथ मन्दिर यहाँ का चौथा मन्दिर है। यह भी प्राचीन मन्दिर था किन्तु अब इसने नवीन रूप धारण कर लिया है। इसमें गर्भगृह के स्थान पर एक वेदी है जिस पर मूलनायक शान्तिनाथ अपने लांछन हरिण के साथ पद्मासन में विराजमान हैं। मति चार फट ऊँची संगमरमर की है। वेदी वाला मण्डप कुछ बड़ा है। उसके सामने खुला बरामदा है। मन्दिर के सिरदल पर पद्मासन में तीर्थंकर प्रतिमा है। लकड़ी के दरवाजे पर सुन्दर अंकन है। पुष्पावली के अतिरिक्त दोनों पल्लों पर मानस्तम्भ और स्वस्तिक तथा हाथ के चिह्न से युक्त जम्बूद्वीप की आकृति है। नीचे द्वारपाल भी प्रदर्शित हैं। पाँचवाँ मन्दिर मठ का मन्दिर है। उसमें भी प्राचीन प्रतिमाएँ हैं। किसी अन्य स्थान से लाकर विराजित बाहुबली की प्रतिमा के दोनों ओर बाँबियाँ उत्कीर्ण हैं । मन्दिर में पार्श्वनाथ, चन्द्र प्रभ, पद्मावती और ज्वालामालिनी की मूर्तियाँ भी हैं। __मठ के अहाते में ही, मठ में प्रवेशवाली सड़क के पास, क्षेत्रपाल का छोटा-सा मन्दिर है। यह छठा मन्दिर है।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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