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________________ हुबली | 93 मूलनायक चौदहवें तीर्थकर अनन्तनाथ कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। उनके आस-पास की चाप पर अन्य 23 तीर्थकर हैं । छत्र केवल एक ही है और मस्तक के दोनों ओर केवल चँवर का अंकन है। यक्षयक्षी भी फलक पर आसीन दिखाए गए हैं। ललितासन में पद्मावती और अम्बिका (कालम्मा ?) (देखें चित्र क्र. 31) तथा त्रिभंग मुद्रा में ब्रह्मयक्ष की मूर्तियाँ भी हैं। देव घोड़े पर सवार हैं। मन्दिर में लकड़ी का प्रवेशद्वार सत्रहवीं सदी का है। उस पर उत्तम नक्काशी है। पुरानी हबली में एक 'पार्श्वनाथ मन्दिर' भी है। नयी हुबली में तीन दिगम्बर जैन मन्दिर हैं। इनके अतिरिक्त बोडिंग हाउस का मन्दिर भी है । मार्ग इस प्रकार है-रेलवे स्देशन से स्टेशन रोड पर लगभग एक कि.मी. दूर जैन बोडिग हाउस है। उसके पास से ही मूरुसविर (Moorusavir) मठ के लिए सड़क जाती है। इस मठ का प्रवेश-द्वार लगभग 50 फुट ऊँचा है। उसकी घड़ी दूर से ही दिखाई देती है। इस मठ से बाईं ओर का मार्ग 'बोगारगल्ली' जाता है। यह गल्ली आजकल 'महावीर गल्ली' कहलाती है। इसमें अधिकांश जैन परिवार निवास करते हैं और बरतनों की अधिकांश दुकानें जैनों की हैं। हुबली में लगभग 500 जैन परिवार हैं । इसी गली में यह मन्दिर स्थित है। ____ बोगारगल्ली में एक तरफ चन्द्रप्रभ मन्दिर और आदिनाथ मन्दिर हैं तथा दूसरी तरफ शान्तिनाथ मन्दिर है। चन्द्रप्रभ मन्दिर—यह मन्दिर मठ के बिलकुल पास सड़क पर ही है। यह एक-मंजिल है। शिखर साधारण और गोल है। इसका मण्डप भी छोटा है। प्रवेशद्वार पर गजलक्ष्मी का सुन्दर अंकन है। यहाँ पीतल की डेढ़ फुट ऊँची प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। उसकी प्रभावली बहुत ही सुन्दर है। इसी प्रकार चौबीसी और नन्दीश्वर भी पीतल के हैं । बाहुबली की भव्य प्रतिमा भी इसी धातु की बनी हुई है। आदिनाथ मन्दिर-उपर्युक्त मन्दिर से.आगे 'आदिनाथ मन्दिर' है । यह मकानों के साथ लगा हुआ है और इसका कोई अहाता भी नहीं है। इसलिए पूछ लेना चाहिए। इस पर शिखर भी नहीं है। यह मन्दिर 300 वर्ष पुराना बताया जाता है। इसमें काले पाषाण की तीन फुट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर आदिनाथ की भव्य प्रतिमा है। उस पर छत्रत्रयी है और यक्षयक्षी भी अंकित हैं । फलक पीतल का है और उस पर कीर्तिमुख है । श्वेत पाषाण की, पद्मासन में, नेमिनाथ और चन्द्रप्रभ की मूर्तियाँ भी हैं। पार्श्वनाथ की काले पाषाण की भी एक मूर्ति है। एक चौबीसी भी यहाँ है जिसके मूलनायक तीर्थंकर पार्श्वनाथ हैं। मन्दिर की छत लकड़ी की है। लकड़ी के अनेक स्तम्भ भी हैं। आदिनाथ मन्दिर के पीछे भी अजितनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर है जिसमें चाँदी की बड़ीबड़ी प्रतिमाएँ हैं। उसकी छत पर भी सुन्दर अंकन है। इसी के पास कँचनारगल्ली नामक छोटीसी गली में श्री मरुधर श्वेताम्बर संघ (मारवाड़ी) का श्री शान्तिनाथ जिनालय भी है जिसकी नक्काशी, स्तम्भों पर चित्रकारी, पौराणिक दृश्य आदि देखने लायक हैं। शान्तिनाथ मन्दिर-उपर्युक्त मन्दिरों के सामने की पंक्ति में ही तीर्थंकर शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर है। यह लगभग 500 वर्ष पुराना है। यह भी, मेन रोड पर ही, मकानों की पंक्ति में है और उसके सामने बरतनों की दो-तीन दूकानें हैं। उस पर तीन शिखर दिखाई
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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