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________________ 92 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) से यह 92 कि.मी. दूर है। सड़क और रेल यातायात का यह एक प्रमुख केन्द्र है। यहाँ का बस स्टैण्ड सुविधाजनक और सभी प्रमुख स्थानों की बसों के लिए एक अच्छा केन्द्र है। रेलवे स्टेशन से बस स्टैण्ड की दूरी लगभग 2 कि.मी. है। बम्बई-पूना-बंगलोर रेलवे लाइन पर यह मीटरगेज का एक बड़ा जंक्शन है । गोआ या बेलगाँव से भी यहाँ रेल द्वारा पहुँचा जा सकता है। दोनों ही स्थानों की गाड़ियाँ लोंढ़ा और धारवाड़ होते हुए यहाँ पहुँचती हैं। धारवाड़ से भी यहाँ सात-आठ लोकल गाड़ियाँ आती हैं। आन्ध्रप्रदेश के प्रमुख जंक्शन गुंतकल (259 कि.मी.) से भी यह सीधी मीटरगेज रेल-सेवा द्वारा जुड़ा हुआ है। सोलापुर-बीजापुर-बागलकोट-गदग-हुबली-रेलमार्ग (कुल 353 कि.मी.) भी इसे सोलापुर और बंगलोर से जोड़ता है। बेलगाँव (धारवाड़ होकर) या गोआ (धारवाड़ होकर) से सीधे ही यहाँ पहुँचने से दर्शनीय, प्राचीन कलाकेन्द्र ऐहोल, पट्टदकल, बादामी और हम्पी तथा लक्कुण्डि छूट जाते हैं इसलिए इन स्थानों की यात्रा करने के बाद यहाँ पहुँचना उचित है । चूँकि हुबली अच्छा शहर है, इसलिए यह और भी अच्छा होगा कि पर्यटक इसे अपना केन्द्र बनाएँ और यहाँ से 21 कि.मी. दूर स्थित धारवाड़ को देखकर यहीं वापस आ जाएँ (आवागमन की बहुत अच्छी सुविधा है), क्योंकि हुबली से ही उसे लक्ष्मेश्वर-बंकापुर होते हुए दक्षिण कर्नाटक की या जोग-झरनों की यात्रा करनी है। हुबली एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र -विशेषकर सूती-वस्त्र और बीड़ी उद्योग से सम्बन्धित है। प्राचीनता की दृष्टि से यह नगर ग्यारहवीं सदी का जान पड़ता है। इसका पुराना नाम पूर्वदवल्ली (Purvadvalli-पुराना गाँव), पूर्वल्लि (Purballi), पुर्वल्लि (Purvalli) या पूर्वदल्ली(Purvadalli)-पुराना गाँव, तथा पुब्बल्लि (Pubballi) था । कालान्तर में यही हुबली (Hubli) या हुब्बली हो गया। जैन मन्दिर वर्तमान में हुबली के दो भाग हैं-1. होस हुबली (नयी हुबली) और 2. हले हुबली (पुरानी हुबली) जिसे स्थानीय जनता 'रायर हुबली' भी कहती है । दोनों ही में जैन मन्दिर हैं। अनन्तनाथ मन्दिर–पुरानी हुबली में एक क़िला है। उसमें तीर्थंकर अनन्तनाथ का एक प्राचीन देवालय है। यहाँ ब्रह्मदेव की मूर्ति के लेख से ज्ञात होता है कि यह मन्दिर 12वीं शताब्दी में बना था । ब्रह्मदेव की मूर्ति महादेवी नामक किसी श्राविका ने बनवाई थी। यहाँ यापनीय संघ के आचार्य रहते थे। उपर्युक्त बसदि में एक घण्टा है। उस पर लेख है कि यह घण्टा किसी अन्य टूटे घण्टे से बनाया गया था जो कि इस मन्दिर में पिछले 1100 वर्षों से था। मन्दिर में दसवीं से सोलहवीं सदी तक की प्रतिमाएँ हैं । लगभग दो फुट की कायोत्सर्ग मुद्रा में पार्श्वनाथ की मूर्ति पर छत्रत्रयी, सात फण, मस्तक के दोनों ओर चँवर तथा जंघाओं तक खड़े धरणेन्द्र और पद्मावती हैं (देखें चित्र क्र. 30)। छ: फीट ऊँची एक चौबीसी है जिसके
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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