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________________ 90 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) फीट चौड़ा और अस्सी फीट लम्बा होगा। इसमें प्रवेशद्वार कम ऊँचा है। उसके सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकर हैं और उन पर तीन छत्र हैं । अग्रमण्डप या बरामदा पार करने के बाद जो प्रवेशद्वार आता है उसके सिरदल पर भी पद्मासन में तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। गर्भगृह के प्रवेशद्वार के सिरदल पर भी पद्मासन तीर्थंकर और चँवर का अंकन है। गर्भगृह से पहले का मण्डप विशाल है और उसमें गोल तथा चौकोर स्तम्भ है । गर्भगृह की दीवालें भी लम्बे और चौकोर पाषाणों से बनाई गई हैं। श्री देवकुंजारि का मत है कि, "Stylistically, the temple resembles the group on Hemakutam hill." अर्थात् इसकी शैली हेमकूट के मन्दिरों जैसी है। उत्तर-पश्चिमाभिमुखी इस मन्दिर में 1426 ई. का एक संस्कृत शिलालेख है। उसमें कहा गया है कि 'कर्नाट देश में विजयनगर नगरी अपने महलों के लिए प्रसिद्ध है । उसके शासक इस प्रकार प्रसिद्ध हैं-शक्ति में बुक्क, दान में हरिहर, शौर्य में देवराज, ज्ञान में विजयभूपति और विद्याविनय में देवराज। इसी देवराज द्वितीय ने 1426 में 'पर्णपूगीफलापण' (पानसुपारी बाज़ार) में मुक्तिवधू के प्रिय भर्तार पार्श्वनाथ जिनेश्वर का, भव्य परितोष के लिए, धर्मकीर्ति के लिए अखिल धर्मसेतु शिलामय चैत्यालय बनवाया।' प्रसंगवश यह भी उल्लेखनीय है कि विजयनगर के इसी राजा देवराज द्वितीय ने 1424 ई. में वरांग के नेमिनाथ मन्दिर के लिए वरांग गाँव दान में दिया था, यह बात वहाँ के शिलालेख से ज्ञात होती है। उपर्युक्त मन्दिरों के साथ हम्पी (विजयनगर) की यात्रा समाप्त होती है । पर्यटक को कमलापुर या भूमिगत मन्दिर के पास की सड़क से राजचन्द्र आश्रम या अपने स्थान लौटकर वापस गदग की ओर प्रस्थान करना चाहिए। बल्लारी जिले के अन्य जैन-स्थल ___ उपर्युक्त जिला भी जैन धर्म का अनुयायी रहा है । यहाँ जिन स्थानों पर जैन अवशेष या जैन मन्दिर हैं, उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैचिप्पगिरि (Chippagiri) बल्लारी जिले में ही चिप्पगिरि नामक स्थान पर एक पहाड़ी पर विशाल जैन मन्दिर है (देखें चित्र क्र. 25)। atrait (Bagali) बागली नामक इस स्थान पर एक ध्वस्त जैन बसदि 11वीं शताब्दी की है जिस पर इस समय शैव लोगों का अधिकार है। उसके गर्भगृह के द्वार के सिरदल पर एक छोटे आले में पद्मासन में तीर्थंकर मूर्ति उत्कीर्ण है। शुकनासी में भी तीर्थंकर विराजमान हैं। स्थानीय संग्रहालय में खण्डित पार्श्वनाथ और धरणेन्द्र आदि की मूर्तियाँ हैं (देखें चित्र क्रमांक 26) ।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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