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हम्पी / 89
लगकर 'दीप या ध्वज (?) स्तम्भ' जैसी रचना है । सम्भवतः यह मानस्तम्भ हो । श्री देव - कुंजारि के अनुसार, इसके स्तम्भों की निर्मिति गानिगित्ति जैन मन्दिर के स्तम्भों की भाँति है । यह प्राचीन मन्दिर है । इसके स्तम्भों पर सर्पों की आकृतियाँ बनी हुई हैं । तुलना के लिए, विचार करें । केरल के वायनाड जिले के सुल्तान बत्तारी ( Sultan Battery) नामक स्थान के विशाल ध्वस्त जैन मन्दिर के स्तम्भों पर भी सर्प की आकृतियाँ हैं ।
10. सिस्टर बोल्डर्स – इस मन्दिर से सड़क मार्ग हम्पी बाज़ार की ओर जाता है । थोड़ी दूर पर दो प्राकृतिक चट्टानों से एक मेहराव जैसी बन गई है। इसलिए इन्हें 'सिस्टर बोल्डर्स' ( अक्का तठागिगुण्डु ) कहा जाता है ।
इन चट्टानों से आगे के स्मारकों का वर्णन यात्रा क्रम 1 में आ चुका है ।
अब वापस चलिए राम मन्दिर की ओर। रास्ते में 'दण्डनायक का अहाता' और 'टकसाल' हैं ।
राममन्दिर के लगभग सामने ऊँची दीवालों से घिरा एक अहाता है जिसे रनिवास (Zanana Enclosure) कहा जाता है। बताया जाता है कि यहाँ महलों में रानियाँ रहा करती थीं । अब यहाँ केवल चौकी ही दिखाई पड़ती हैं, महल नहीं, आगे बढ़ने पर पर्यटन विभाग केन्टीन है ।
11. कमल-महल (Lotus- Mahal) (स्थानीय लोगों की भाषा में चित्राग्नि- महल ) - यह एक बड़े अहाते में है। यह एक दो मंजिल वाला खुला मण्डप है । ऊपर जाने के लिए एक सँकरा जीना है जो कि बाद में बनाया गया जान पड़ता है । इसे कमल - महल कहने का कारण यह है कि इसकी रचना कमल के आकार की है। इसमें लकड़ी का प्रयोग नहीं किया गया है । यह हिन्दू और मुस्लिम निर्माण कला का एक अच्छा नमूना माना जाता है। बताया जाता है कि इसका उपयोग रानी द्वारा बैठकों आदि के लिए किया जाता था ।
हजारा- राम मन्दिर से उत्तर के क्षेत्र को बाज़ार क्षेत्र बताया जाता है । इसमें कुछ अवशेष ऐसे हैं जो विजयनगर साम्राज्य की स्थापना से पहले के जान पड़ते हैं ।
राम-मन्दिर और रनिवास के क्षेत्र में एक-दो छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं। इनमें 'येलम्मा' का मन्दिर भी है जिसमें कुरुब जाति के लोग अब भी पूजन करते हैं । यह भी विजयनगर की स्थापना से पहले का बताया जाता है ।
12. गजशाला (Elephant Stables ) - यह एक ऊँचा गुंबददार भवन है और अब भी अच्छी हालत में है । इसमें ग्यारह मुख्य हाथियों के लिए अलग-अलग जगह बनी हुई हैं। इसकी गुंबदों में भी विभिन्नता है । इनमें चित्रकारी भी है। हाथियों को बाँधने का कोई निशान नहीं होने के कारण कुछ विद्वान इसे गजशाला नहीं मानते । किन्तु अरब यात्री अब्दुर्रजाक़ के अनुसार, हाथी छत से लटकी जंजीरों से बाँधे जाते थे । इनमें प्रकाश की भी अच्छी व्यवस्था है । 13. पान-सुपारी बाज़ार के दो जैन मन्दिर - गजशाला के पीछे दो ध्वस्त जैन मन्दिर हैं। दोनों ही खेतों में आ गए हैं। उनके लिए रास्ता 'कमल - महल' की ओर से है ।
यहाँ, शिव मन्दिर के पास, एक ध्वस्त जैन मन्दिर है । उसके सिरदल पर एक पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति उत्कीर्ण है जिसमें दरार पड़ गई है । मन्दिर की छत भी अब शेष नहीं रही । उपर्युक्त मन्दिर के सामने एक और विशाल ध्वस्त जैन मन्दिर है । यह लगभग तीस