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________________ हम्पी / 85 पागल स्त्री एक मन्दिर में रहने लगी थी, इसलिए वहाँ का एक मन्दिर हुचिमल्ली ( पागल (स्त्रीका) मन्दिर कहलाता है । एक अन्य मन्दिर में लाडखाँ रहने लगे थे, इसलिए वह लाडखाँ मन्दिर के नाम से जाना जाता है । स्वयं हम्पी बाज़ार में आज भी अनेक परिवार प्राचीन अवशेषों में अपना घर बना बैठे हैं । इस मन्दिर के सामने तीस-चालीस फीट ऊँचा एक मानस्तम्भ है जिसे कुछ लोग 'दीपस्तम्भ' कहते हैं (दीपस्तम्भ में ऊपर से नीचे तक दीप बने होते हैं - सभी ओर) । अब इस मानस्तम्भ पर मूर्ति नहीं है । इस स्तम्भ के नीचे जो शिलालेख है उससे ज्ञात होता है इसका निर्माण 1386 ई. में हुआ था । लेख के अनुसार, विजयनगर के राजा हरिहर का दण्डाधिनायक मन्त्री चैच था । उसका पुत्र इरुग या इरुगप आचार्य सिंहनन्दि का शिष्य था । sa भी एक सेनापति था । उसी ने कर्णाट के कुन्तल विषय ( ज़िले) में 'चारुशिलामय' कुन्थु जिननाथ का यह चैत्यालय बनवाया था । मन्दिर के प्रांगण में कन्नड़ में एक शिलालेख और भी है । मन्दिर के प्रवेशद्वार पर पाषाण का एक सिरदल है । उस पर पद्मासन में तीर्थंकर मूर्ति उत्कीर्ण है। तीर्थंकर छत्रत्रय से युक्त है और उनके दोनों ओर चँवर हैं । मन्दिर के सामने के भाग की छत समतल है । उस पर जो मुँडेर है वह ईंट और मसाले की बनी है । उसके तीन बड़े आलों में भग्न अवस्था में तीन पद्मासन मूर्तियाँ भी पहचानी जा सकती हैं । सामने के मण्डप की अब छत नहीं रही। सभामण्डप के प्रवेशद्वार की चौखट पर मकर और पत्रावली की सुन्दर नक्काशी है । सिरदल पर कमल उत्कीर्ण है। नवरंग मण्डप में चार मोटे स्तम्भ हैं जिन पर नक्काशी कम है। गर्भगृह के प्रवेशद्वार के सिरदल पर पद्मासन में महावीर विराजमान हैं। उनसे ऊपर भी पद्मासन में तीर्थंकर मूर्ति है। गर्भगृह में अब कोई मूर्ति नहीं है । मन्दिर उत्तराभिमुखी है । साथ ही, एक छोटा गर्भगृह भी है जो पूर्वाभिमुखी है । मन्दिर का निर्माण मोटी-मोटी लम्बी शिलाओं से किया गया है । शिलाओं की कुल तीन पंक्तियों में छत आ जाती है । मन्दिर का शिखर सोपानबद्ध है, ऊपर वह ड्रम - जैसा हो गया है । शिखर की ऊँचाई 10-12 फीट होगी । मन्दिर का अहाता बड़ा है । बीते समय को देखते हुए मन्दिर अच्छी हालत में है और इस समय भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है । गानिगित्ति मन्दिर के पास ही 'भीम द्वार' है । यह विजयनगर में प्रवेश का एक प्रमुख द्वार रहा होगा । जैन मन्दिर से सामने एक पहाड़ी दिखाई देती है जो कि 'माल्यवंत पर्वत' के नाम से मशहूर है । बताया जाता है कि यहाँ श्री रामचन्द्र ने कुछ दिनों निवास किया था । यहीं एक रघुनाथ मन्दिर भी है। कमलापुर के पूर्व में भी एक बहुत बड़ा मन्दिर है । यह 'पट्टाभिराम मन्दिर' कहलाता । अब उसमें मूर्ति नहीं है । इसमें भी एक कल्याण मण्डप है । 2. संग्रहालय - गानिगित्ति मन्दिर से पुरातत्त्व विभाग के कार्यालय वापस लौटना चाहिए । ट्रेवलर्स बंगला के सामने से जो सड़क हम्पी पॉवर हाउस की ओर जाती है उस पर एक-दो फर्लांग की दूरी पर पुरातत्त्व विभाग का एक सुन्दर संग्रहालय है । इसके हॉल में और
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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