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________________ 84 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) 26. विट्ठल मन्दिर–हम्पी के मन्दिर-क्षेत्र में यह मन्दिर सबसे आकर्षक और दर्शनीय है । शायद इसे देवराय द्वितीय ने पन्द्रहवीं शताब्दी में बनवाना प्रारम्भ किया था। यह मन्दिर भी अधूरा रह गया। इसका प्रांगण विशाल है। इसका क्षेत्रफल 500 फीट x 300 फीट बताया जाता है । इसके तीन गोपुर अब ध्वस्त अवस्था में हैं। इसका शिखर भी नहीं रहा। यह विट्ठल या विष्णु को समर्पित है। इसमें 23 शिलालेख बताये जाते हैं। इसमें अर्ध-मण्डप या खुला मण्डप, महामण्डप और गर्भगृह है। महामण्डप में 56 स्तम्भ है। उसमें सैनिको, हंसो और अश्वों का सुन्दर उत्कीर्णन है। दशावतार भी उत्कीर्ग किये गए हैं। कमल का अंकन भी दर्शनीय है। इसमें प्रदक्षिणापथ भी है। मन्दिर के अहाते में एक संगीत-मण्डप या रंगमण्डप भी है। यह भी विशाल है। इसके लगभग 4 फीट के छोटे-छोटे स्तम्भों को उँगलियों से ठपठपाने पर संगीतमय ध्वनि निकलती है। केवल यही एक विशेषता पर्यटक को आश्चर्य में डाल देती है। कल्याण-मण्डप नामक एक और 62 फीट चौड़ा मण्डप है। यह ऊँची चौकी पर है। मोर, तोतों, देवी-देवताओं आदि के चित्र या अंकन अद्भुत कारीगरी के नमूने हैं। पाषाण का एक रथ भी इस मन्दिर के प्रांगण में देखने लायक है। इसे गरुड़ मन्दिर कहते हैं। इसके पहिए घूम सकते हैं ऐसा कहा जाता है। ___ विट्ठल मन्दिर पहुँचने पर तुंगभद्रा नदी के किनारे के हम्पी के मन्दिर-क्षेत्र की यात्रा समाप्त होती है। यहाँ से वाहन द्वारा तलारिकट्टे होते हुए कमलापुर जाया जा सकता है या वापस हम्पी बाज़ार लौटकर अपने विश्राम-स्थल की ओर। ___ आनेगुन्दी-यदि पर्यटक चाहे तो विट्ठल मन्दिर से आगे की सड़क पर तलारिकट्टे गाँव और वहाँ से नाव में तुंगभद्रा नदी पार कर आनेगुन्दी पहुँच सकता है। यहाँ भी क़िले की दीवारों, मन्दिरों आदि के अवशेष बिखरे पड़े हैं। यह भी एक समय राजधानी रहा है । अब यह एक गाँव है। आनेगुन्दी में भी एक जैन मन्दिर है जो कि चौदहवीं शताब्दी का बताया जाता है । यहीं एक चट्टान पर कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। उनके दोनों ओर चँवरधारी और भक्तजन हैं। तुंगभद्रा नदी की धारा में एक शिला पर चरण और संभवतः सल्लेखना दृश्य है । यात्रा-क्रम : 2 ___ कमलापुर गाँव की सीमा से बाहर कम्पिली (Kampili) सड़क पर पुरातत्त्व विभाग का कार्यालय है। उसके सामने की सड़क पर सीधे एक-दो फर्लाग की दूरी पर हम्पी का प्रसिद्ध 'गानिगित्ति' जैन मन्दिर है । जहाँ कम्पिली 21 कि. मी. लिखा है वहीं यह मन्दिर है। 1. गानिगित्ति जैन मन्दिर-कन्नड में गानिगित्ति का अर्थ होता है 'तेलिन'। न जाने किस कारण से यह आजकल तेलिन का मन्दिर कहलाता है। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन का मत है कि किसी तेलिन ने इसका जीर्णोद्धार कराया होगा। लेकिन इस बात को पुष्ट करने वाला कोई शिलालेख भी तो यहाँ नहीं है । अतएव संभावना यही है कि जब विजयनगर उजड़ गया, तब जिसके जी में जो आया वह उसे अपने अधिकार में कर बैठा। सम्भव है किसी तेलिन ने इसमें अपना अड्डा जमा लिया हो। इस प्रकार के उदाहरण ऐहोल में भी मिले हैं। एक
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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