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________________ हम्पी / 81 2.4 मीटर ऊँची है। वह खुले मण्डप में है किन्तु इन्हें 'सरसों गणेश' कहा जाता है । प्रतिमा खण्डित है । कडलेकालु मन्दिर की खण्डित गणेश प्रतिमा 4.5 मीटर ऊँची है किन्तु उसे भी 'चना गणेश' कहा जाता है । ये नाम शायद व्यंग्य में दिये गए हैं । शिवका गणेश की दाहिनी ओर एक छोटा-सा मन्दिर है । यह मन्दिर चट्टान पर बने उन दो चरणों के आसपास बनाया गया है जिनके चारों ओर एक नाग है । पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग, भारत सरकार द्वारा 1983 ई. में प्रकाशित 'हम्पी' नामक अँग्रेजी पुस्तक में डी. देवकुंजार ने लिखा है कि इन चरणों को साधारणतः विष्णु के चरण माना जाता है। नाग द्वारा आवृत चरण विजयनगर में, तुंगभद्रा नदी के किनारे कई स्थानों पर पाये जाते हैं । किन्तु उनका क्या महत्त्व है यह स्पष्ट नहीं है । उपर्युक्त चरणों का स्पष्टीकरण दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय के निदेशक (डायरेक्टर) स्व. श्री शिवराममूर्ति ने अपनी अमर कृति 'South-Panorama of Jaina Art' (1983) में किया है। ये चरण इस पुस्तक की चित्र सं. 2 हैं । उसमें उद्धृत पार्श्वनाथ के ऊपर छपे एक उलटे और एक सीधे चरण का अर्थ पार्श्वनाथ की सर्वज्ञता (चहुँ ओर सभी पदार्थ देख सकने की क्षमता) बताया है और नाग को इन चरणों का रक्षक बताया है । यह स्पष्टीकरण जैन मान्यता के अनुरूप है, इसमें कोई सन्देह नहीं । इनसे भी इस क्षेत्र में पार्श्वनाथ का प्रभाव और प्राचीन हम्पी -वासियों द्वारा नागफलकों या नाग की पूजा समझ में आती है। कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि विरूपाक्ष मन्दिर पहले नागदेवता को समर्पित था । श्री शिवराममूर्ति ने अपनी उपर्युक्त पुस्तक के बारहवें पृष्ठ पर लिखा है— "a pair of feet in Hampi represent Parshvanatha's kindness of the snake that he saved from annihilation, which out of his gratitude in his birth as Dharamendra Yaksha canopi d him with his hoods and protected him from Kamatha. The feet are here shown in opposite directions to suggest that he could see in all directions like Gautama, the rishi who had eyes even in his feet. The 'kevala-jnana' of Tirthankara that transcends the highest of any other knowledge and is the acme of perfection, is thereby suggested as facing and taking into accounnt every thing all around." 5-6-7-8-9-10--इसी क्षेत्र में 'कृष्ण मन्दिर', 'सरस्वती मन्दिर' (सरस्वती के हाथों में एक ताड़पत्र है), 'बडवी लिंग' (शिव मन्दिर जिसमें 3 मीटर ऊँचा शिवलिंग है), 'उग्रनरसिंह' ( प्रतिमा की ऊँचाई 6.7 मीटर) तथा ' चण्डेश्वर मन्दिर' (वैष्णव मन्दिर) और 'वीरभद्र मन्दिर' ( वीरभद्र की अब भी पूजित 3.6 मीटर ऊँची प्रतिमा ) हैं । इन्हें भी देखा जा सकता है । इन मन्दिरों को देख लेने के बाद, पर्यटक को वापस हम्पी बाज़ार लौटना चाहिए और विरूपाक्ष मन्दिर के गोपुर की उलटी दिशा में बढ़ना चाहिए । 11. नन्दी - जहाँ बाज़ार का अन्त होता है वहाँ एक खुले मण्डप में नन्दी की विशाल मूर्ति है | यह विरूपाक्ष (शिव) मन्दिर के सामने का नन्दी माना जाता है । उपर्युक्त नन्दी से पहले ही एक पैदल रास्ता तुंगभद्रा नदी की ओर मुड़ता है । और अब शुरू होती है तुंगभद्रा के सुन्दर एवं मनोहारी तट के किनारे-किनारे मन्दिरों आदि की पैदल
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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