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________________ 82 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) यात्रा। यह यात्रा लम्बी नहीं है और न ही कुछ भयानक दिखने वाली पहाड़ियों में से होकर । केवल नदी के किनारे-किनारे चलना है जहाँ यात्रियों का हमेशा आवागमन रहता है। होसपेट से हम्पी बाज़ार तक (एक से लेकर ऊपर लिखे ग्यारहवीं दृश्य-वस्तु तक) की यात्रा बस या कार में भी पक्की सड़क के साथ-साथ की जा सकती है। पैदल-यात्रा विटल मन्दिर पर समाप्त होती है। वहाँ फिर कार या बस आ सकती है और गानिगित्ति मन्दिर तथा महल-क्षेत्र की यात्रा वाहन से की जा सकती है। यदि कार या बस विट्ठल मन्दिर के पास लाती हो तो 'वीरभद्र स्वामी मन्दिर', 'रानी स्नानागार' (क्वीन्स बॉथ) होते हुए कमलापुर स्थित ट्रेवलर्स बंगला और फिर वहाँ से तलारीगे? (Talarigattu) और निम्बापुरम् होते हुए कार या बस विट्ठल मन्दिर पहुँचेगी। पैदल पर्यटकों को महल-क्षेत्र दूसरे चरण में देखना चाहिए अर्थात प्रथम यात्रा-क्रम विट्रल मन्दिर पर समाप्त कर अपने स्थान पर लौट आना चाहिए। दूसरे क्रम में अपनी यात्रा होसपेट से कमलापुर, वहाँ से एक फर्लाग दूर गानिगित्ति जैन मन्दिर (कम्पली रोड पर) से पर्यटन प्रारम्भ करना चाहिए। 12. कोण्डनराम मन्दिर-तुंगभद्रा के किनारे चलने पर सबसे पहले यह मन्दिर आता है। इसमें राम, लक्ष्मण और सीता की साढ़े चार मीटर ऊँची प्रतिमाएँ हैं। 13. चक्रतीर्थ-उपर्युक्त मन्दिर के सामने ही एक घाट है जो चक्रतीर्थ कहलाता है। तंगभद्रा के इस घाट पर लोग नहाते हैं। 14. सूर्यनारायण मन्दिर-राम मन्दिर के पास सूर्यनारायण मन्दिर है जिसमें देवता के सोलह हाथ दिखाए गए हैं। 15. यन्त्रोद्धार हनुमान मन्दिर-राम मन्दिर के कुछ ऊपर इस मन्दिर में गोलाकार यन्त्र में यन्त्रोद्धारक आंजनेय (हनुमान) की मूर्ति है। 16. अनन्तशयन मन्दिर-यह हनुमान मन्दिर के पास है। 17. अच्युतपेट या सूलै बाजार-यहाँ एक बाज़ार था जिसमें देवदासियाँ रहा करती थीं। उनसे जो कर वसूल किया जाता था, उससे दो हज़ार रक्षकों (पुलिस कर्मियों) का वेतन निकल आता था। अब यह सूलै बाज़ार के रूप में जाना जाता है। ___18. अच्युतराय मन्दिर-आगे चलकर यह मन्दिर है जिसे अच्युतराय ने बनवाया था और जो तिरुवेंगलनाथ मन्दिर के नाम से जाना जाता था। यह भी मन्दिर-समूह है। गोपुरों के पास का कल्याण-मण्डप ध्वस्त अवस्था में है और इसी प्रकार इसका ऊपरी भाग भी ध्वस्त हो गया है। ____19. मातंग पर्वत-उपर्युक्त मन्दिर के पास से मातंग पर्वत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। ऊपर वीरभद्र का मन्दिर है । वहाँ से चारों ओर का दृश्य सुन्दर दिखाई देता है। 20. वराह मन्दिर-वापस नदी किनारे की ओर लौटने पर, एक बड़े द्वार से जाने पर, वराह मन्दिर है। द्वार की बायीं ओर की दीवाल पर वराह उत्कीर्ण है। यह विजयनगर शासकों का राजकीय चिह्न रहा है। 21. नदी किनारे का जैन मन्दिर-यह ऊँची चट्टान पर स्थित है। इस पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इसका प्रांगण विशाल है । शिखर सोपानबद्ध है और दक्षिण भारतीय शैली का है। सामने एक ऊँचा स्तम्भ है। कुछ लोग इसे दीप-स्तम्भ कहते हैं।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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