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80 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
हम्पी बाज़ार से होसपेट जाने वाली सड़क पर थोड़ी-सी दूर ही पैदल चलना होता है।
| 'Jain group of Temples' लिखा है। यहाँ इस मन्दिर-समह का मानचित्र प्रदशित है। इसी के साथ, जैन मन्दिर (त्रिकूटाचल) शैली के मन्दिर का चित्र भी दिया गया है। हेमकूट के मन्दिर ध्वस्त अवस्था में हैं। उनमें इतनी तोड़-फोड़ हुई है कि जैन चिह्नों का पता नहीं लगता। मूर्ति तो है ही नहीं। ये मन्दिर त्रिकूटाचल या समूह में तीन मन्दिर हैं अर्थात् इनमें तीन गर्भगृह हैं। मन्दिरों की यह शैली जैनकला की विशेषता मानी जाती है। ऐसा ही एक जैन मन्दिर (पार्श्वनाथ बसदि) हम्पी में भी मौजूद है जिसे देवराय द्वितीय ने 1426 ई. में बनवाया था। त्रिकूट-शैली के जैन मन्दिर बड्डमणी (प्राचीन वर्धमानपुर), प्रगतुर और बेलगाँव में भी हैं। इनके सोपानबद्ध शिखर भी जैन शैली के माने जाते हैं। इन त्रिकूट-मन्दिरों का स्तम्भोंयुक्त एक केन्द्रीय मण्डप होता है। एक मन्दिर उत्तरमुखी है तो शेष दो मन्दिरों का प्रवेश पूर्व और पश्चिम से है। यह भी सम्भव है कि इनमें से कुछ शिव-मन्दिर हों या किसी समय रूपान्तरित किये गए हों। लाँगहर्स्ट का मत है कि कुछ मन्दिरों की निर्माण-शैली इतनी साधारण है कि इन्हें सातवीं शताब्दी के पल्लव-मन्दिरों की श्रेणी में रखा जा सकता है और वे विजयनगर साम्राज्य की स्थापना से पहले के हैं। जिन मन्दिरों में कुछ उत्कृष्ट कलाकारी है वे चौदहवीं-पन्द्रहवीं सदी से भी पहले के हो सकते हैं। इनकी दीवारें बड़े-बड़े शिलाखण्डों को जोड़कर निर्मित की गई हैं। इनके चौकोर स्तम्भ भी पाषाण के हैं। जो भी हो, ये मन्दिर प्राचीन हैं और जैन मन्दिरों के रूप में आज तक प्रसिद्ध हैं।
____3. रत्नत्रय-कूट (आधुनिक श्रीमद्राजचन्द्र आश्रम)-जैन मन्दिर समूह के सामने की पहाडी पर एक और बोर्ड पर लिखा है-'श्रीमदराजचन्द्र आश्रम'। यह जिस पहाडी पर स्थित है उसे 'रत्नकूट' कहा गया है । इसकी स्थापना स्वामी सहजानन्द घन (भद्रमणि) ने 1960 ई. में की थी। वे संघ से अलग हो गए और उन्होंने नामहीन होकर अपना नाम सहजानन्द रख लिया। उनकी तपस्या के समय यहाँ हिंसक जीवों और व्यन्तरों का उपद्रव बताया जाता है। किन्तु अब आश्रम, मन्दिरों और अनेक भवनों का निर्माण हो चुका है तथा 'विजयनगर स्टील प्लांट' की भी योजना है । इस आश्रम का अहाता बहुत बड़ा है । पानी-बिजली सभी तरह की सुविधा है।
आश्रम में प्राकृतिक शिलाओं से निर्मित एक गुफा है जो कि ऊँचे स्थान पर है। दोतीन बड़ी-बड़ी शिलाएँ इस गुफा का निर्माण करती हैं। इसी में चन्द्रप्रभ की दिगम्बर मूर्ति विराजमान है। इसका फर्श पक्का है। यहाँ ध्यान चलता रहता है, टेप भी चलते हैं । मन्दिर में श्रीमद्राजचन्द्र, सहजानन्द धन के चित्र लगे हैं। यहीं एक गुरु-मन्दिर भी है जिसका सभामण्डप काफी बड़ा है। इस मन्दिर में श्रीमद्राजचन्द्र, सहजानन्द घन और जिनदत्तसूरि की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। इस आश्रम की मान्यताओं से कुछ को असहमति हो सकती है किन्तु चन्द्रप्रभ मन्दिर दर्शनीय है ही। ठहरने की सुविधा भी उत्तम है। यह स्थान शान्त, रमणीक और साधना के उपयुक्त है । पता इस प्रकार है-श्रीमद्राजचन्द्र आश्रम, रत्नकूट, हम्पी, पोस्ट ऑफिस-कमलापुरम्, रेलवे स्टेशन होसपेट, जिला बल्लारी (कर्नाटक)।
___4. पार्श्वनाथ के चरण या विष्णुपाद-हेमकूट पर्वत पर ही दो गणेश-मन्दिर हैं जो कि 'साशिवेकालु' और 'कडलेकालु' गणेश-मन्दिर कहलाते हैं। प्रथम मन्दिर की गणेश-प्रतिमा