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________________ 14 | भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) बहाउद्दीन गरशास्प को शरण दे दी। इससे चिढ़कर मुहम्मद तुगलक और वारंगल के काकतीय शासक ने मिलकर कम्पिला पर आक्रमण कर दिया। कम्पिलाशासक मारा गया और उसका राज्य दिल्ली सल्तनत के अधीन (1326-27 में) हो गया। कम्पिला के दो कोषधर भाइयोंहरिहर और बुक्का-को बन्दी बनाया और वहाँ उन्हें मुसलमान बना लिया। इसी बीच दक्षिण में मुस्लिम शासन के विरुद्ध विद्रोह प्रारम्भ हुए। कम्पिला के मुस्लिम सरदार ने मुहम्मद तुगलक से सहायता माँगी। इस पर तुगलक ने हरिहर और बुक्का को कम्पिला भेजा। इन भाइयों ने मौका पाकर इस्लाम छोड़ दिया, शक्ति संचित की और एक नये राजवंश की नींव डाली जो इतिहास में 'संगम राजवंश' के नाम से प्रसिद्ध है। वे संगम के पुत्र थे इसलिए यह वंश 'संगम' कहलाया। वे यादववंशी भी कहे गए हैं। विजयनगर साम्राज्य (1336-1565 ई.) हरिहर और बुक्का ने अपनी राजधानी की स्थापना के लिए हम्पी क्षेत्र को चुना । यहाँ तुंगभद्रा नदी और तीन पर्वत-हेमकूट, मातंग और माल्यवन्त-थे । अतः इन भाईयों ने इस नदी और बड़े-बड़े शिलाखण्डों वाले इन पर्वतों का उपयोग कर क़िलेबन्दी प्रारम्भ की जिसे पूरा होने में सात वर्षों का समय लगा। मोटे बोल्डरों की दीवालों से इन पर्वतों को जोड़ दिया गया। इस किलेबन्दी में आधुनिक होसपेट और कमलापुर तक के क्षेत्र सम्मिलित थे। इसमें सात परकोटे थे । ग्रेनाइट के विशाल शिलाखण्डों की दीवारों के निशान आज भी महलक्षेत्र में विद्यमान हैं। (सन् 1886 ई. में अकाल पड़ गया था। उस समय राहत पहुँचाने के लिए इस किलेबन्दी को तोड़कर अनेक गड्ढे भरवा दिए गए। अनेक द्वार अब भी मौजूद हैं । इनमें से हाथी निकल सकते थे।) ___नई राजधानी का नाम विजयनगर रखा गया। यह भी जनश्रुति है कि इन भाइयों ने अपने गुरु विद्यारण्य के नाम पर इसका नाम विद्यानगरी भी रखा था। किन्तु विजयनगर नाम ही सदा प्रयुक्त रहा। - सन् 1347 ई. में दिल्ली सल्तनत के एक तुर्की सरदार ने दौलताबाद पर अधिकार कर लिया। गुलबर्गा को अपनी राजधानी बनाकर बहमनी राज्य की नींव डाली। यह राज्य प्रारम्भ से ही विजयनगर का शत्र रहा, उससे युद्ध होते रहे और अन्त में इस कारण से भी विजयनगर साम्राज्य नष्ट हुआ। संगम वंश का प्रथम शासक हरिहर प्रथम था जिसने 1336 से 1357 ई. तक अपने भाई बुक्का के साथ राज्य किया । डॉ. ज्योति प्रसाद जैन के अनुसार, "हरिहर और उसके वंशजों का राज्यधर्म सामान्यतः हिन्दूधर्म था। प्रजा में अधिकांश जैन थे, उनके पश्चात् श्रीवैष्णव, लिंगायत या वीरशैव और फिर सदशैव की संख्या थी। किन्तु विजयनगर-नरेश प्रारम्भ से ही सिद्धान्ततः सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु, समदर्शी और उदार थे। स्वयं राजधानी विजयनगर (हम्पी या प्राचीन पम्पा) के वर्तमान खण्डहरों में वहाँ के जैन मन्दिर ही सर्व प्राचीन हैं। वे नगर के सर्वश्रेष्ठ केन्द्रीय स्थान में स्थित हैं, और अनेक विद्वानों के मत से, उनमें से अनेक ऐसे हैं जो वहाँ विजयनगर की स्थापना के पूर्व से ही विद्यमान थे। इससे स्पष्ट है कि यह स्थान बहुत पहले से ही एक प्रसिद्ध जैन केन्द्र था।"
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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