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________________ हम्पी / 75 हरिहर प्रथम का पुत्र राजकुमार विरूपाक्ष अरग का शासक था। उसके समय में 1363 ई. में पार्श्वनाथ बसदि की सीमाओं के सम्बन्ध में जैनों और वैष्णवों में विवाद हुआ। राजकुमार दोनों पक्षों को बुलाया और जैनों का पक्ष न्यायोचित ठहराकर एक शिलालेख अंकित करा दिया । हरिहर के बाद उसका भाई बुक्काराय ( प्रथम ) राजा हुआ । उसने 1365 से 1377 ई. तक राज्य किया । उसका महासेनापति भी जैन वीर बैचप्प था । बैच का पुत्र इरुग भी उसका एक सेनापति था । इसके समय में सुदूर दक्षिण तक राज्य फैल गया। इस राजा का 1368 ई. का एक शिलालेख धार्मिक उदारता एवं सहिष्णुता के लिए बड़ा प्रसिद्ध है । इसका विषय जैनों और वैष्णवों के बीच विवाद का समाधान है। इसकी नकल राज्य में अनेक स्थानों पर शिलालेख के रूप में लगाई गई थी । संस्कृत और कन्नड़ में यह लेख (यहाँ की भाषा में 'शासन' ) कल्य ( सानूर परगना ) में चिक्कण्णा के खेत में एक पाषाण पर ( अधूरा ) तथा श्रवणबेलगोल की भण्डार बसदि में पूर्व की ओर के प्रथम स्तम्भ पर पाया गया है। इसमें लिखा हैमहामण्डलों में वरवीर बुक्काराय के शासनकाल में आनेय गोन्दि, होसपट्टण, पेनगोण्डे और कल्यह नाडुओं (ज़िलों) के जैनों ने यह आवेदन किया कि तिरुमल, तिरुनारायणपुर आदि अन्य अठारह नाडुओं के श्रीवैष्णवों के हाथों जैन अन्याय से मारे जा रहे हैं । इस पर राजा ने जैनों और वैष्णवों के प्रतिनिधियों के हाथ से हाथ मिला दिए और कहा कि जैन और वैष्णव दर्शन में कोई भेद नहीं है तथा जैन दर्शन को पिछली मर्यादा के अनुसार पंच महाविद्या और कलश का अधिकार है । यदि जैन दर्शन की हानि या वृद्धि हुई तो वैष्णवों को इसे अपनी ही हानि या वृद्धि समझनी चाहिए । श्रीवैष्णवों को इस विषय के शासन ( शिलालेख ) समस्त राज्य की बसदियों में लगा देने चाहिए। जैन और वैष्णव एक हैं, वे कभी दो नहीं समझे जायें । बेलगुल ( श्रवणबेलगोल ) में वैष्णव अंगरक्षकों की नियुक्ति के लिए राज्य के जैनियों से प्रत्येक घर पीछे प्रतिवर्ष जो एक 'हण' (सिक्का) लिया जाता है उसमें से तिरुमल के तातय्यदेव की रक्षा के लिए बीस रक्षक नियुक्त किए जाएँगे और शेष द्रव्य जैन मन्दिरों के जीर्णोद्धार एवं पुताई आदि में खर्च किया जाएगा। यह नियम प्रतिवर्ष, जब तक सूर्य-चन्द्र हैं तब तक रहेगा । जो कोई इसका उल्लंघन करेगा वह राज्य का, संघ का और समुदाय का द्रोही ठहरेगा । यदि कोई तपस्वी या ग्रामाधिकारी इस धर्म का प्रतिघात करेगा तो वह गंगातट पर एक कपिला गाय और ब्राह्मण को हत्यारा माना जाएगा । अन्त में एक श्लोक दिया है जिसका आशय है - इस पृथ्वी पर जो भी अपनी या दूसरे की वस्तु का अपहरण करता है वह साठ हजार वर्षों तक विष्टा में कीड़ों के रूप में जन्म लेता है । बुक्का के बाद उसके पुत्र हरिहर द्वितीय (1377-1404 ई.) ने इस क्षेत्र पर राज्य किया। उसके समय में विजयनगर साम्राज्य की सीमा उत्तर में कृष्णा नदी तक पहुँच गई थी । दक्षिण में लंका तक उसने सैनिक अभियान किया था । उसका दण्डाधिनायक इरुग या इंरुगप नामक जैन था। उसने 1386 ई. में 'कुन्थु जिनालय' बनवाया था जो आज भी हम्पी में मौजूद है और 'गाणिगिति मन्दिर' कहलाता है। उसने 'नानार्थरत्नाकर' नामक कोश ग्रन्थ की रचना भी की थी । हरिहर द्वितीय की 1404 ई. में मृत्यु की घटना का उल्लेख श्रवणबेलगोल के एक शिलालेख में है ।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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