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________________ 68 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) ___ आज के कोप्पल में पार्श्वनाथ बसदि, बहादुर बसदि और मादनूर बसदि तथा सिद्धेश्वरमठ के पास एक गुफा-मन्दिर हैं। पार्श्वनाथ बसदि अब भी जिनदर्शन-पूजन के काम आती है। यह मन्दिर एक साधारण रचना है। ठोस पाषाण से निर्मित है, कलात्मकता का अभाव है। इस पर कोई शिखर भी नहीं है। प्रवेशद्वार से लगा एक बड़ा हॉल है जिसमें मोटे पाषाण-स्तम्भ हैं। फिर एक छोटा हॉल है जिसमें खण्डित-अखण्डित मूर्तियाँ हैं, और उसके बाद है गर्भगृह या मुख्य मूर्तिस्थान। पार्श्व बसदि में दसवीं सदी की एक खण्डित तीर्थकर मूर्ति है। लगभग ढाई फीट ऊँची पाषाण की एक चौबीसी है जिसके मूलनायक कायोत्सर्ग मुद्रा में ऋषभदेव हैं। उनके यक्ष गोमेद और यक्षी चक्रेश्वरी भी उत्कीर्ण हैं। ऋषभदेव के तीनों ओर गोल घेरों में अन्य तीर्थंकर पदमासन में विराजमान हैं। यह बसदि 11वीं सदी की है। यहीं की एक चौबीसी जिसके मूलनायक पार्श्वनाथ हैं, हैदराबाद के सालारजंग संग्रहालय में है। बारहवीं शताब्दी के, कायोत्सर्ग मुद्रा में पार्श्वनाथ सात फणों से युक्त हैं। ये भी लगभग तीन फीट के हैं। इसी सदी का एक | फलक भी है जिस पर त्रिकाल-चौबीसी (72 तीर्थंकर) उत्कीर्ण रही होगी। इसी समय का एक खण्डित सहस्रकूट फलक भी यहाँ है। खण्डित ब्रह्मयक्ष (घोड़े पर सवार) और द्वारपाल के फलक भी हैं। आठवीं सदी के एक फलक पर कन्नड़ में लेख है। उस पर चित्रित गाय बछडे को दुलार करती प्रशित है। ____ सिद्धेश्वर मठ के पास यहाँ ग्यारहवीं सदी का एक गुफा-मन्दिर है (देखें चित्र क्र. 23)। अब यहाँ केवल एक जैन मूर्ति, चरण-युगल और ब्रह्मयक्ष ही शेष रह गए हैं। ब्रह्मयक्ष घोड़े पर सवार हैं, उनके आसपास सूर्य, अर्धचन्द्र, तारा, दो मनुष्य तथा पशु का चित्रण है। अन्यत्र कमल, लता, सिंह, हंस आदि भी स्तम्भ पर उत्कीर्ण हैं। ____बहादुर बसदि में, जो कि क़िले के ऊपर है, ब्रह्मयक्ष की एक पुरानी मूर्ति है। यह ललितासन में है और दसवीं सदी की है। यहाँ से मादनूर 9 कि. मी. दूर है, बस से जाना पड़ता है। वहाँ 13वीं और 16वीं सदी की ब्रह्मयक्ष, पद्मावती (कांस्य) की मूर्तियाँ हैं। दो कांस्य पंच-तीथिकाएँ घिस गई हैं। एक के मूलनायक तीर्थंकर शान्तिनाथ हैं तो दूसरी के अजितनाथ । रायचूर जिले में जैन धर्म उपर्युक्त जिले में भी जैनधर्म का अच्छा प्रसार था। यह तथ्य प्रकाश में आए मन्दिरों और मूर्तियों से तो स्पष्ट है ही, हाल ही में कुश्तगी तालुक के आन्तरथान नामक स्थान में ग्यारहवीं सदी की लगभग चार फीट ऊँची चौबीसी प्राप्त हुई है जिसके मूलनायक कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं और उनके तीनों ओर उनक ताना आर पद्मासन में अन्य तीर्थंकर। मूलनायक के घुघराले केशों का अंकन बड़ा सुन्दर है। . कोप्पल तालुक के ही नारायणपेट में भी कुछ मूर्तियाँ मिली हैं जिनमें ग्यारहवीं सदी की लगभग तीन फीट ऊँची चौबीसी प्राप्त हुई है जिसके मूलनायक कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर ऋषभदेव हैं। शेष तीर्थंकर पद्मासन में हैं और उनके दाएँ गोमेध यक्ष तथा बाएँ
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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