SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कोप्पल / 67 साम्राज्य की राजधानी हम्पी के लिए मुख्य स्थान ) 37 कि. मी. दूर है । जहाँ तक रेल-मार्ग का सम्बन्ध है, यह हुबली-गुंतकल मीटर गेज रेल मार्ग पर ( गदग होते हुए) एक स्टेशन भी है । रेल मार्ग से यह गदग से 58 कि. मी. और होसपेट से 32 कि. मी. की दूरी पर है। यहाँ की अत्यन्त प्राचीन 'पार्श्वनाथ बसदि' स्थानीय बस स्टैण्ड और रेलवे स्टेशन से दो-तीन कि. मी. दूर पहाड़ी की तलहटी में है । इसका रास्ता जवाहर रोड (मार्केट) होते हुए कुछ गलियों से होकर गुजरता है । मुख्य संवारी ताँगा है । यहाँ दो बस स्टैण्ड हैं - एक नया और एक पुराना । इन दोनों के बीच में मुख्य सड़क पर एक साफ-सुथरा होटल ठहरने के लिए है । प्राचीन तीर्थ 1 दसवीं - ग्यारहवीं शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख तीर्थस्थल रहा और इसकी गणना श्रवणबेलगोल और ऊर्जयंतगिरि के समान पवित्र स्थानों में की जाती थी । चामुण्डराय ने अपने ' त्रिषष्टिलक्षण महापुराण' में इस स्थान की प्रशंसा की | अनुश्रुति हैं कि कनकसेन नामक मुनि मुलुगुन्द नामक स्थान पर अनेक वर्षों तक तपस्या करते रहे किन्तु उन्हें बोध प्राप्त नहीं हुआ । किन्तु जब वे कोपणाचल आये तो उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया । यह ऊपर कहा जा चुका है कि कन्नड़ महाकवि रन्न ने दानशीला अत्तिमब्बे के चरित्र को कोपणाचल के समान पवित्र बताया था । श्रवणबेलगोल के एक शिलालेख में यह उल्लेख है कि गंग राजाओं ने इतने मन्दिर बनवाए कि वह स्थान कोपणाचल के समान पवित्र हो गया । गंगराज के दण्डनायक ने कोपण आदि तीर्थों में मन्दिर बनवाए थे। एक अन्य शिलालेख में कहा गया है कि ईचण ने 'बेलगवत्ति' में अनेक मन्दिर बनवाकर उसे कोपण के समान तीर्थ बना दिया था । होय्सल - नरेश के एक सेनापति हुल्ल ने कोपण के साधुसंघ को आहारदान दिया था । सोलहवीं सदी के विद्वान् विद्यानन्दी ने यहीं पर 'विद्यानन्दी' उपाधि प्राप्त की थी । केलदि के एक शिलालेख में इसे श्रवणबेलगोल और ऊर्जयन्तगिरि के समकक्ष बताते हुए कहा गया है कि जो जैनधर्म के विरुद्ध आचरण करेगा उसे श्रवणबेलगोल के गोम्मटनाथ, ऊर्जयन्तगिरि के नेमिनाथ और कोपण के चन्द्रनाथ के बिम्बों को खण्डित करने का पाप लगेगा । जनश्रुति है कि कोपण में 771 जैन मन्दिर थे जो कि विधर्मी आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिए गए। वर्तमान स्थिति भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित, श्री संगवे द्वारा अंग्रेजी में लिखित 'द सेक्रेड श्रवणबेलगोल' पुस्तक में एक नक्शा दिया गया है, उसमें भी इस स्थान को एक तीर्थ बताया गया है । किन्तु खेद है कि अब इस स्थान की स्थिति तीर्थं की नहीं रही । वर्तमान में, यहाँ जैनों के कुल आठ घर हैं और पार्श्वनाथ बसदि, जिसमें अभी भी पूजन होती है, का खर्च समीपस्थ हुबली के जैन दातारों की सहायता से चलता है ।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy