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________________ 66 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) बताया गया कि 1948 के दंगों में यहाँ की कुछ मूर्तियाँ तोड़ दी गई थीं। जैन मन्दिरों के सामने नीलकण्ठेश्वर मन्दिर है जो कि अधूरा रह गया। उसके पीछे नारायण मन्दिर है। संग्रहालय भारतीय पुरातत्त्व विभाग का संग्रहालय अवश्य देखना चाहिए। यह 'ब्रह्मजिनालय' से नीचे की ओर है। इस विभाग ने 'ब्रह्मजिनालय' के आसपास एक उद्यान लग जिनालय को और भी सुन्दर रूप दे दिया है। उसकी हरी घास में कुछ क्षण विश्राम करने को जी चाहता है। इस संग्रहालय में अधिकांशतः 11वीं शताब्दी की तीर्थंकर मूर्तियाँ संग्रहीत हैं जो कि लक्कुण्डि और आसपास के अन्य स्थानों से प्राप्त हुई हैं। इनमें डम्बल से प्राप्त मूर्तियाँ अधिक हैं । लगभग सभी मूर्तियाँ खण्डित हैं। मूर्तियों की संख्या लगभग एक दर्जन है। पद्मासन और कायोत्सर्ग मुद्रा में ये मूर्तियाँ पाषाण या संगमरमर की हैं। कन्धों तक जटा वाली मूर्तियाँ निश्चय ही ऋषभदेव की हैं तो फणावली सहित प्रतिमाएँ पार्श्वनाथ की हैं। कुछ मूर्तियों के केवल सिर ही शेष बचे हैं तो कुछ का धड़ और कुछ के पैर गायब हैं । इनकी ऊँचाई 6 इंच से लेकर 4 या 5 फीट तक है । ऐसा लगता है कि इन्हें किसी ने खण्डित किया है अथवा खुदाई के समय ही ये खण्डित हो गयीं। धरणेन्द्र, पद्मावती एवं चैवरधारियों की मूर्तियाँ भी यहाँ संग्रहीत हैं। जो भी हो, पुरातत्त्व विभाग ने प्राचीनता के इस वैभव को बड़े सुन्दर ढंग से सजा रखा है। इस विभाग ने यहाँ जैन कला एवं शिल्प के प्रदर्शन के लिए अच्छा प्रयास किया है। विशेष सूचना लक्कुण्डि के बाद पर्यटक को हिन्दू साम्राज्य की राजधानी विजयनगर के जैन-अजैन कला-वैभव को देखने के लिए प्रस्थान करना है। अतः पर्यटक बसें यहीं से होसपेट की ओर प्रस्थान कर सकती हैं। जो सार्वजनिक वाहन से यात्रा करना चाहें, उन्हें गदग वापस लौटकर होसपेट की सीधी बस लेनी चाहिए। चाहें तो रास्ते में कोप्पल भी रुक सकते हैं। कोप्पल अवस्थिति एवं मार्ग कोप्पल का प्राचीन नाम कोप्पण था। यहाँ स्थित पर्वत के कारण यह तीर्थ कोप्पणाचल के नाम से भी सुप्रसिद्ध रहा। वर्तमान में, कोप्पल एक तालुक (तहसील) है और रायचूर जिले के अन्तर्गत आता है । लक्कुण्डि से चलें तो हुबली (गदग)-होसपेट-रायचूर मुख्य सड़क मार्ग पर कोप्पल मिलता है। गदग से यह 71 कि. मी. की दूरी पर है और यहाँ से होसपेट (विजयनगर
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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