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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इस स्तम्भपर भट्टारक पद्मनन्दिदेव और भट्टारक श्री शुभचन्द्रदेवका नाम अंकित है। दोनोंके मध्यमें दो कमण्डलु बने हुए हैं और इनके नीचे उनके चरण बने हुए हैं। शेष तीनों
ओर ३ खड्गासन मुनियोंकी मूर्तियां बनी हुई हैं। उनके चरण भी बने हुए हैं। चरणोंके नीचे संस्कृतमें एक लेख उत्कीर्ण है किन्तु इसका कुछ भाग जमीनके अन्दर दबा हुआ है। यह लेख संवत् १४८३ फाल्गुन शुक्ला ३ गुरुवारका है। इसमें मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण कुन्दकुन्दान्वयके भट्टारक श्री वसन्तकीर्तिदेव, विशालकीर्तिदेव, दमनकीर्तिदेव, धर्मचन्द्रदेव, रत्नकीर्तिदेव, प्रभाचन्द्रदेव, पद्मनन्दि और शुभचन्द्रदेवके नाम दिये गये हैं। यह निषधिका आर्यिका आगमश्रीको स्मृतिमें बनायो गयी है।
दूसरा स्तम्भ जमीनसे ५ फुट ६ इंच ऊंचा है। इसमें पाश्र्वनाथ, वर्द्धमान, नेमिनाथ और सम्भवनाथकी मूर्तियां विराजमान हैं। इन तीर्थंकर मूर्तियोंके नीचे मनियोंकी भर्तियां बनी हुई हैं। यह निषधिका भट्टारक शुभचन्द्रके शिष्य हेमकीर्तिकी है। इसपर भी लेख अंकित है जो संवत् १४६५ फाल्गुन शुक्ला २ बुधवारका है।
निषधिका मण्डपके समीप नौचौकी मण्डप बना हुआ है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई ३६४ २५ फूट है। इसमें १६ स्तम्भ हैं। इसका निर्माण मन्दिरके बाद हुआ जान पड़ता है। इसके दक्षिणपूर्व में एक वापिका और उद्यान है तथा उत्तर दिशामें एक वापिका और रेवती कुण्ड है। इ कुण्डकी लम्बाई-चौड़ाई ६० x ६० फुट तथा गहराई २१ फुट है। यहींसे देवी-देवताओंकी मूर्तियाँ निकली थीं। इस कुण्डके सम्बन्धमें शिलालेखमें लिखा है कि रेवती कुण्डके जलसे जो स्त्री स्नान करती है, वह पतिके सुख, पुत्र तथा स्थिर लक्ष्मीको प्राप्त करती है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र जो भी रेवती कुण्डमें स्नान करता है, वह उत्तम गतिको जाता है। धन-धान्य, भूमि, प्रताप, धैर्य, प्रमखता, बुद्धि, राजसम्मान तथा विशाल लक्ष्मीको पाता है।।
कुण्डके उत्तरकी ओर दीवारके निकट एक महुआ वृक्षके नीचे एक बड़ी शिलापर लेख अंकित है। इसमें ४२ पंक्तियां हैं। यह १९ फुट ३ इंच लम्बा और ५ फुट ४ इंच चौड़ा है। यह लेख चाहमान (चौहान ) सोमेश्वरके राज्यकालमें वि. सं. १२२६ में श्री दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ मन्दिरकी प्रतिष्ठा तथा दानादिको स्मृतिके लिए स्वयं सेठ लोलार्कने उत्कीर्ण कराया था। इसके आगे एक शिलापर १० पंक्तियोंका एक लेख है । यह ३ फुट ८ इंच लम्बा तथा १ फुट ३ इंच चौड़ा है। उपवनके पृष्ठभागमें अचल रेवा नदी है। इस नदीके निकट ही एक अन्य शिलालेख है, जिसमें ३० पंक्तियां हैं तथा इसके पृष्ठ भागमें भी २-३ पंक्तियाँ हैं किन्तु वे अस्पष्ट हैं। इस शिलालेखमें 'उन्नत शिखर पुराण' नामक एक दिगम्बर जैन काव्य ग्रन्थ अंकित है। यह अभी तक अप्रकाशित और अपठित है। बिजौलियाके निकट भिन्न-भिन्न आकृतिकी चपटी प्राकृतिक चट्टानें अनेक स्थानोंपर निकली हुई हैं। इन्हीं चट्टानों में से दोपर लेख और पुराण उत्कीर्ण कराये गये हैं। यहाँ नगरमें दो शिखरबद्ध मन्दिर हैं-बड़ा मन्दिर और नया मन्दिर । अतिशय
एक बार सन् १८५८ में अंगरेज यहाँ आये । मन्दिरके चारों ओर कोट और शिलालेख देखकर उन्होंने समझा कि यहां अपार द्रव्य मिलेगा। इसलिए उन्होंने शिलालेखके आसपास बारूदकी सुरंग लगा दी। तभी न जाने कहाँसे मधुमक्खो और भौंरोंके झुण्ड निकल पड़े और लोगोंसे चिपट गये। बेचारे सभी अपने प्राण बचाकर भागे। तभी एक और चमत्कार हआ। सूरंगसे दुधकी धार निकलने लगी।