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________________ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ लगता है, वह प्रतिमा शिखराकृतिकी मूलनायक प्रतिमासे भिन्न थी, क्योंकि शिलालेखमें पार्श्वनाथ प्रतिमाका उल्लेख विस्तारपूर्वक किया गया है। उसमें शिखराकृतिका कोई उल्लेख नहीं किया। इस प्रकार पार्श्वनाथकी दो प्रतिमाएं होनी चाहिए, किन्तु उनमें-से वर्तमानमें एक भी प्रतिमा नहीं है। इतना ही नहीं, मूलनायक पार्श्वनाथके अतिरिक्त वेदीपर अन्य प्रतिमाएँ भी रही होंगी जबकि इस समय शिखराकृतिके अतिरिक्त और कोई भी प्राचीन प्रतिमा वहाँ नहीं है। यदि ये खण्डित की गयी होती, तो खण्डित प्रतिमाएं भी मिलनी चाहिए थीं। यह विचारणीय है। दर्शकको यह देखकर भी आश्चर्य हुए बिना नहीं रहता कि वेदीपर कोई मूलनायक प्रतिमा नहीं है। तब इसे पार्श्वनाथ मन्दिर किस आधारपर कहा जाता है। इसमें तो कोई सन्देह नहीं कि प्राचीन कालमें यहाँ पाश्वनाथ प्रतिमा थी, इसीलिए इस मन्दिरको पार्श्वनाथ मन्दिर कहा जाता था, इसीलिए अब भी, जबकि पार्श्वनाथकी मूलनायक प्रतिमा नहीं है इस मन्दिरको पाश्र्वनाथ मन्दिर कहा जाता है। शिखरकी द्वाराकृतिपर चौबीस तीर्थकर मूर्तियां तथा मध्यमें पार्श्वनाथ मूर्ति उत्कीर्ण है। मध्य-मूर्तिके ऊपर छत्रत्रयो तथा गजलक्ष्मी है। छत्रोंके ऊपर पद्मावती देवी हाथ जोड़े हुए बैठी हैं। उसके सर्पफणके ऊपर मध्य कोष्ठकमें तथा कोण कोष्ठकोंमें पार्श्वनाथ मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। गजलक्ष्मोके दोनों कोनोंपर देवयुगल माला लिये हुए खड़े हैं। कोनेकी पार्श्वनाथ प्रतिमाओंसे नीचे दोनों ओर अलग-अलग कोष्ठकोंमें सात-सात देवी मूर्तियां हैं। दोनों ओर इन्द्र खड़े हैं । इन्द्र दायें हाथमें चमर तथा बाँयें हाथमें बिजौरा फल लिये हुए हैं। इनके अतिरिक्त दोनों ओर चमरेन्द्र खड़े हैं। इनके पाश्वमें बायीं ओर पद्मावती और धरणेन्द्र तथा दायीं ओर अम्बिका और गोमेद यक्ष खड़े हैं । अम्बिकाकी गोदमें एक बालक है तथा दायीं ओर एक बालक आम्रगुच्छक लिये खड़ा है । गोमेद यक्ष हाथ जोड़े खड़ा है। मुख्य शिखरके ऊपर कोनोंपर दो पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियां है। शिखर-मन्दिरके दोनों ओर २ फुट १ इंच ऊंची कृष्ण वर्ण और संवत् २०३१ में प्रतिष्ठित पार्श्वनाथकी पद्मासन मूर्तियां हैं। गर्भगृहकी दीवारोंपर मुनियों और भट्टारकोंकी मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। किन्तु टाइल्स लगाकर उन्हें ढक दिया गया है। गर्भगृहके प्रवेश द्वारपर बायीं ओर यह लेख उत्कीर्ण है-'साधु महीधर पुत्र मेवारथो प्रणमति नित्यं संवत् १२२६ वैशाख वदी ११ ।' इसके ऊपर भी एक लेख है जो अस्पष्ट है। गर्भगृहके सामने फर्शपर एक पाषाणपर 'सोपान' शब्द अंकित है। विश्वास किया जाता है कि इस स्थानपर भूगर्भ गृहके लिए सोपान-पथ बना हुआ है। यह भी सम्भावना व्यक्त की जाती है कि भूगर्भ-गृहमें वेदीको सभी प्राचीन प्रतिमाएं सुरक्षित रखी हुई हैं। मुस्लिम कालमें सुरक्षाकी आशंका होनेपर सुरक्षाकी दृष्टिसे ये प्रतिमाएं भूगर्भमें पहुँचा दी गयी होंगी। सभामण्डपमें एक ओर वे छह देवी-मूर्तियां रखी हुई हैं जो रेवती कुण्डसे निकली थीं और जिनका उल्लेख शिलालेखमें किया गया है। चारों कोनोंकी देवरियाँ खाली हैं। उनमें कोई मूर्ति नहीं है। उत्तर-पश्चिमकी देवरीके निकट मानभद्रकी ५ फुट ८ इंच ऊँची मूर्ति है। ये क्षेत्रके रक्षक क्षेत्रपाल हैं। मन्दिरके सामने मण्डपमें दो चतुरस्र स्तम्भ हैं। ये दोनों निषधिकाएँ हैं। दायीं ओरका स्तम्भ ७ फुट ६ इंच ऊंचा है। ऊपरके भागमें चारों दिशाओंमें चार तीर्थंकरोंकी खड्गासन मूर्तियां विराजमान हैं-चन्द्रप्रभ, नेमिनाथ, वर्द्धमान और पार्श्वनाथ । पार्श्वनाथकी मूर्तिके नीचे दो मुनियोंकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। उनके मध्यमें शास्त्रको चौकी (रिहल ) भी बनी हुई है।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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