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________________ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ आक्रमणमें गुम्बजमें नीचेका भाग क्षतिग्रस्त हो गया है किन्तु ऊपरके भागको कोई क्षति नहीं पहुंची। इसे देखनेसे यह मण्डप गुप्त-कालका प्रतीत होता है। पुरातत्त्ववेत्ताओंकी भी इससे सहमति है। कुछ लोग तो इसे कुषाण-काल या उससे भी प्राचीन कालका मानते हैं। कुछ लोग इस भोयरेको तिलस्मी भोयरा कहते हैं । ___सोपान-मार्गसे उतरनेपर दायों ओर भित्तिमें २ फुट २ इंचके शिलाफलकमें एक पद्मासन मूर्ति है। सिरके पृष्ठ भागमें भामण्डल है । इसके अलावा कुछ और मूर्तियाँ हैं । १ फुट १० इंचके एक अन्य शिलाफलकमें श्यामवर्णकी एक खड्गासन प्रतिमा बनी हुई है। इसके दोनों पार्यो में शार्दूल और चमरवाहक हैं। आगे बढ़नेपर सामने एक भित्ति-वेदीमें २ फुट ६ इंचके शिलाफलकमें लाल वर्णकी पावनाथ प्रतिमा है । इसके दोनों ओर श्यामवर्णके फलकमें स्तम्भोंमें एक पद्मासन और एक खड्गासन मूर्ति है। यहाँसे भोयरा मुड़ता है। सामने एक शिलाफलकमें ४ फुट ५ इंच ऊंची मुनिसुव्रतनाथको सलेटी वर्णकी पद्मासन मूर्ति है। सिरके दोनों ओर मालाधारी देव और शार्दूल बने हुए हैं । नीचे चरण-चौकीपर दोनों ओर कच्छप लांछन बने हुए हैं। यहाँसे भोयरा पुनः मुड़ता है। द्वारके भीतर प्रवेश करनेपर भोयरा मण्डपका रूप धारण कर लेता है। यह १६ स्तम्भोंपर आधारित है। बायीं ओर एक चबूतरेनुमा वेदीपर ४ मूर्तियां विराजमान हैं । एक श्वेत शिलाफलकमें मूलनायक पद्मप्रभकी खड्गासन मूर्ति है। परिकरमें छत्र, उसके ऊपर हाथ जोड़े हुए देव और देवियाँ, इधर-उधर गज, छत्रके दोनों ओर मालाधारी देवयुगल, उनसे नीचे खड्गासन प्रतिमा, उससे नीचे देवी हाथोंमें मोरछल लिये हुए तथा भगवान्के चरणोंके दोनों ओर चमरेन्द्र खड़े हैं। इस वेदीसे २-४ कदम बढ़नेपर सामने मुनिसुव्रतनाथ की ४ फुट ५ इंच ऊँची कृष्ण वर्णकी पद्मासन मूर्ति विराजमान है। यह एक शिलाफलकमें है। सिरके पीछे भामण्डल बना हुआ है, सिरके ऊपर छत्रत्रयी है। उससे भी ऊपरी भागमें दुन्दुभि, उसके दोनों ओर माला लिये हुए देव हैं । अधोभागमें भगवान्के सेवक वरुण यक्ष और बहुरूपिणी यक्षिणी है । इस मूर्तिके ऊपर ओपदार पालिश है जो इसे मौर्य और कुशाण कालके मध्यवर्ती कालकी सिद्ध करती है। मूर्तिको नाक, हाथका अंगूठा और पैरका अंगूठा कुछ क्षतिग्रस्त हैं। मूर्तिपर जगह-जगह छोटे गड्ढे पड़े हुए हैं। जब मस्लिम आततायियोंने मतिको तोडनेके प्रयत्न किये थे. उस समय उन्होंने हथौडोंका प्रयोग किया था। ये गड्ढे आदि उन्हीं चोटोंके निशान हैं। यह मूर्ति अत्यन्त अतिशयसम्पन्न है। ___इसके आगे बायीं ओर १ फुट १० इंच ऊँची श्वेत वर्णकी पद्मासन प्रतिमा है। इसपर कोई लेख या लांछन नहीं है। दायीं ओर १ फुट ९ इंच अवगाहनाकी आदिनाथ की कृष्ण वर्ण पद्मासन प्रतिमा है । इसपर लेख नहीं है। इनके अतिरिक्त यहाँ तीन मूर्तियाँ और हैं। इनकी अवगाहना क्रमशः २ फुट १० इंच, १ फुट ८ इंच और ३ इंच है। इनका प्रतिष्ठा संवत् क्रमशः १३२१, १३५० और १३२१ है। भूगर्भगृहसे निकलने पर प्रांगणमें क्षेत्रपाल विराजमान हैं। धर्मशाला यहाँ धर्मशालामें ११ कमरे हैं। नल और बिजलीको व्यवस्था है। निकट ही चम्बल नदी बहती है।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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