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________________ ६६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इस रक्षाभित्तिके ढह जानेपर मन्दिर कितने दिनोंतक चम्बलका मुकाबिला कर सकेगा? अतः जैन समाजको इस सम्भावित परिस्थितिके प्रतिकारका उपाय अभी कर लेना बुद्धिमत्तापूर्ण होगा। मन्दिरका मुख्य प्रवेशद्वार उत्तराभिमुखी है । यद्यपि मन्दिर विशाल भूखण्डमें बना हुआ है, किन्तु वह योजनाबद्ध रीतिसे नहीं बनाया गया, अतः उसका बहुत बड़ा भाग, विशेषतः मन्दिरके बाह्य भागका अधिकांश, उपयोगयोग्य नहीं है। सम्भवतः इसका कारण यह रहा हो कि मन्दिर जिस ऊंचे टीलेपर बनाया गया था, वह समतल न होकर ऊँचा-नीचा था। मन्दिरके बाह्य भागमें दो कमरे और दालान हैं। इसमें दो चौक भी हैं। भीतरके चौकमें मन्दिरका प्रवेशद्वार है। मन्दिरके ऊपरी भागमें तथा भूगर्भगृहमें वेदियां बनी हुई हैं। ऊपरकी वेदियोंका विवरण इस प्रकार है : वेदी नं. १-तीर्थकर नेमिनाथकी श्याम पाषाणकी १ फुट ४ इंच ऊंची पद्मासन मूर्ति विराजमान है। चरण-चौकीपर लेख और लांछन नहीं है। बायीं ओर ८ इंच ऊंची श्यामवर्ण पद्मासन प्रतिमा है। लांछन नहीं है। इसके पीठासनके ऊपर इस प्रकार लेख अंकित है-'संवत् ६६४ ज्येष्ठ वदि ३' । दायीं ओर भगवान् पुष्पदन्तको श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा है। प्रतिष्ठाकाल संवत् १५४८ है। यह जीवराज पापड़ीवाल द्वारा मुड़ासामें प्रतिष्ठित है। इससे आगे भगवान् महावीरको संवत् २०३२में प्रतिष्ठित श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा है। १० इंचका भूरे वर्णका एक श्वर जिनालय है। इसमें चारों दिशाओं में १३-१३ प्रतिमाएं हैं। यह वेदी तीन दरकी है तथा प्राचीन है। वेदी नं. २-यह वेदी सहनमें मध्यमें बनी हुई है। वेदी तीन दरको मार्बलकी है। मूलनायक महावीरकी १ फुट ऊंची श्वेत वर्ण पद्मासन मूर्ति है । बायीं ओर संवत् १५८१ में प्रतिष्ठित और ११ इंच ऊंची श्वेतवर्ण चन्द्रप्रभकी पद्मासन मूर्ति है । दायीं ओर धातुकी दो प्रतिमाएं हैं। वेदी नं.३-वेदी तीन दरकी है। वेदीके आगे चबतरा है। कत्थई वर्णकी पार्श्वनाथ मति १ फुट अवगाहनामें पद्मासन मुद्रामें विराजमान है। मूर्तिके सिरके ऊपर सप्तफण-मण्डप है। बायीं ओर संवत् १८२६ में प्रतिष्ठित श्वेतवर्ण नेमिनाथ और दायीं ओर संवत् १५४९ में प्रतिष्ठित चन्द्रप्रभकी श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा है । इनके अतिरिक्त ५ छोटी-छोटी श्यामवर्ण प्रतिमाएँ हैं। ये प्रतिमाएं ७-८वीं शताब्दीकी अनुमानित की जाती हैं। एक भूरे वर्णके शिलाफलकमें, जो ७ इंच ४६ इंच आकारका है, एक पद्मासन मूर्ति है। उसके सिरके ऊपर छत्र हैं। उनके दोनों पावों में आकाशचारी देव हैं। मूर्तिके दोनों ओर चमरेन्द्र हैं तथा आसनके सिंहोंके दोनों ओर यक्ष-यक्षी हैं। मूर्तिके ऊपर लेख और लांछन नहीं है । यह मूर्ति लगभग ७-८वीं शताब्दीकी प्रतीत होती है। संवत् १४१९ में प्रतिष्ठित भूरे वर्णकी एक फुट ऊंची एक पद्मासन प्रतिमा भी है। ___ वेदी नं. ४-एक लघु वेदीमें आदिनाथकी कत्थई वर्णकी एक १० इंच उन्नत पद्मासन प्रतिमा है। __ वेदी नं. ५-इस वेदीपर संवत् १७४६ में प्रतिष्ठित और एक फुट ऊँची पाश्वनाथकी श्यामवर्ण पद्मासन प्रतिमा है तथा उसके दोनों पाश्वों में पार्श्वनाथकी श्वेतवर्ण प्रतिमाएं विराजमान हैं। इनके अतिरिक्त २२ धातु प्रतिमाएं भी हैं। भूगर्भको प्रतिमाओंका विवरण ___इन वेदियोंके पास ही नीचे भूगर्भगृहमें जानेका सोपान-मार्ग बना हुआ है। इसके ऊपर एक कलापूर्ण गुम्बजयुक्त छतरी ( मण्डप ) तनी हुई है। इसमें ८ स्तम्भ लगे हुए हैं । मुसलमानोंके
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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