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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ
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इस उत्थानका वाक्यसे कई बातोंपर प्रकाश पड़ता है । यथा ( १ ) आश्रमनगर में मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकरका चैत्यालय था । (२) इसी चैत्यालय में बैठकर श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेवने अनेक नियोगाधिकारी राजश्रेष्ठी सोमके निमित्तसे पहले २६ गाथात्मक लघुद्रव्यसंग्रहकी रचना की और पश्चात् विशेष तत्त्वके परिज्ञानके लिए उन्होंने बृहद् - द्रव्य संग्रहकी रचना की । (३) उस कालमें धारानरेश महाराज भोजके सम्बन्धी श्रीपाल आश्रमनगरके महामण्डलेश्वर पदपर आसीन होकर शासन कर रहे थे ।
इतिहास-ग्रन्थोंसे विदित होता है कि चर्मण्वती नदीके दोनों ओरकी भूमि चिरकाल तक परमार साम्राज्य के अन्तर्गत रही है। महाराज भोजके लघुभ्राता उदयादित्य के समयका एक शिलालेख शेरगढ़ (कोटा जिला ) में मिला है । इसका प्राचीन नाम कोशवर्धन दुर्गं था । महाराज भोज के दौर्बल्य के दिनों में भी उनका शासन चम्बल नदोके दोनों ओर रहा था ।
उपर्युक्त प्रमाणोंके आधारपर वर्तमान केशोरायपाटन ही प्राचीन आश्रमपत्तन सिद्ध होता है । उसी नगरका नाम आशारम्यनगर, आश्रमनगर आदि था । प्राचीनकालमें इस नगरका नाम रन्तिदेव-पत्तन था क्योंकि इस नगरको चन्द्रवंशी राजा हस्तिके चचेरे भाई राजा रन्तिदेवने बसाया था । यह महेश्वरका राजा था ।
अतिशय
भगवान् मुनिसुव्रतनाथकी प्रतिमाके चमत्कारोंको लेकर अनेक किंवदन्तियाँ जनतामें प्रचलित हैं । कहा जाता है कि मुहम्मद गोरी राजस्थान - विजय के सिलसिले में यहाँ पर भी पहुँचा । उसने क्षेत्रपर आक्रमण कर दिया और मुख्य मूर्ति तोड़नेकी आज्ञा दे दी । फलतः सैनिकोंने मुनिसुव्रतनाथ की मूर्तिपर प्रहार करना प्रारम्भ कर दिया। लेकिन प्रयास करनेपर भी मूर्तिका कुछ नहीं बिगड़ा । तब उसे टाँकियोंसे काटनेका प्रयत्न किया गया । जब पैरके अँगूठेको काटा गया तो उसमें से दूधको धारा इतने प्रबल वेग से बह निकली कि आक्रमणकारी वहाँ ठहर नहीं सके और भाग गये । हथौड़ोंकी चोटके निशान मूर्तिपर अब तक बने हुए हैं ।
इस मूर्तिका एक और चमत्कार सुननेमें आता है । वहाँके कुछ प्रत्यक्षदर्शी लोगों का कहना है कि लगभग ६० वर्षं पहले इस नगर में भयंकर रूपसे प्लेग फैली। इसमें नगरके कुछ लोग भी मर गये । तब भयभीत होकर सब नगरवासी नगर छोड़कर जंगलोंमें भाग गये । कुछ श्रद्धालु जैन लोग भी जब यहाँसे भागे तो वे भागनेसे पूर्वं भगवान् मुनिसुव्रतनाथके दर्शनोंके लिए गये और भगवान् के सामने जोत जला गये । ३-४ माह बाद महामारी शान्त हुई । लोग जंगलोंसे अपने घरोंको लौटने लगे । जब जैन लोग लौटे और भगवान् के दर्शनोंके लिए गये तो उन्हें यह देखकर सुखद आश्चयं हुआ कि जोत उस समय तक जल रही थी ।
क्षेत्र दर्शन
श्री मुनिसुव्रतनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्रका मन्दिर चम्बलके तटपर तटसे ४० फीट ऊँची चोटीपर बना हुआ । बाढ़ आदिसे सुरक्षा के लिए चम्बल तटपर उत्तर और पश्चिमकी ओर मजबूत दीवार बनी हुई है । किन्तु चम्बलका प्रवाह बहुत तेज है और वर्षाकालमें जब वह उफनकर बहती है तो उसका रूप अत्यन्त रौद्र और भयानक हो उठता । वह तट-बन्धों और तटवर्ती भवनों को काटती हुई बहा ले जाती है । चम्बलके क्रोध के इसी उफान में उत्तरवर्ती सुदृढ़ दीवार भी जीर्णकाय हो गयी है । वह चम्बलसे अधिक दिनों तक जूझ सकेगी, इसमें सन्देह है और
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