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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ठोलियाके समयसे ही इसी नगरके एक अन्य सज्जन श्री स्वरूपचन्द्रके पुत्र साहू नानूलाल गोधाके आग्रहसे मूलसंघ सरस्वतीगच्छ भट्टारक वादिभूषणके शिष्य आचार्य ज्ञानकोतिने संस्कृतमें यशोधरचरित काव्यकी रचना की थी। श्री नानूलाल गोधा उस समय महाराजा मानसिंहके प्रधान अमात्य थे। विक्रम संवत् १६६४ ( सन् १६०७) मिति ज्येष्ठ कृष्णा ३ सोमवारका दिन इस नगरके लिए स्वर्ण दिन था। इस दिन यहाँ दिगम्बर जैन मन्दिरका निर्माण होनेके बाद एक विशाल मेलेका आयोजन किया गया था। उस समय यहां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हुई। प्रतिष्ठाकारक स्वयं श्री नानूलाल गोधा थे। सारा उत्सव राजकीय स्तरपर आयोजित हुआ। इस अवसरपर भगवान् आदिनाथकी मूर्ति सहित और भी अनेकों जैन मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा हुई थी। तबसे मौजमाबादके इस मन्दिरकी सारे राजस्थानमें प्रसिद्धि बढ़ती गयी और दूर-दूरके प्रान्तोंसे दर्शनार्थी यहां आने लगे।
दिगम्बर जैन मन्दिरके ऊपर जो तीन शिखर हैं, वे दूरसे ही जनसाधारणको अपनी ओर आकर्षित करते हैं । मन्दिरके प्रवेश-द्वारका भाग अत्यन्त कलापूर्ण है। इसपर श्वेत तथा लाल पाषाणपर अद्भुत कलाकृतियोंको उकेरा गया है। देवियोंकी साज-सज्जा और नृत्य करते हुए उनकी भाव-भंगिमाएँ दर्शनीय हैं। एक कलाकृतिमें सरस्वती हंसको मोती चुगा रही है।
मन्दिरके प्रवेश-द्वारके आगे एक विशाल चौक है।
इस मन्दिरमें भूमिगत दो बहरे ( भोयरे ) भी हैं। इनमें तीर्थंकरोंकी भव्य एवं कलापूर्ण मूर्तियां विराजमान हैं। सभी मूर्तियाँ विक्रम संवत् १६६४ में प्रतिष्ठित की गयी थीं। एक बहरेमें भगवान आदिनाथकी एक विशाल एवं भव्य पद्मासन मति है।
यहाँ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा हिन्दीकी हस्तलिखित प्राचीन पाण्डुलिपियोंका एक विशाल भण्डार भी है।
केशोरायपाटन मार्ग और अवस्थिति
श्री मुनिसुव्रतनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र केशवरायपाटन बूंदी जिलेमें चम्बल नदीके उत्तरी तटपर अवस्थित है। यह बूंदीसे ४३ कि. मी., कोटासे १४ कि. मी. और केशवरायपाटन स्टेशनसे ३ कि. मो. दूर है। सब स्थानोंसे बसें मिलती हैं। कोटासे आनेपर चम्बलके दक्षिणी तटपर उतरना पड़ता है। वहांसे नाव द्वारा नदी पार करके पहुंच सकते हैं । तीर्थकी प्राचीनता
अत्यन्त प्राचीन कालसे इस स्थानकी प्रसिद्धि एक तीर्थक्षेत्रके रूपमें रही है। प्राकृत निर्वाणकाण्डमें इसका उल्लेख अतिशय क्षेत्रके रूपमें किया गया है
'अस्सारम्मे पट्टणि मुणिसुव्वओ तहेव वंदामि।' अर्थात् आशारम्य पट्टन (नगर) में मुनिसुव्रतनाथ भगवान्को मैं नमस्कार करता हूँ। मुनि उदयकीति विरचित अपभ्रंश निर्वाण-भक्तिमें भी इसी आशयका एक पद्य मिलता है'मुणिसुव्वउ जिणु तह आसरम्मि।'
इन उल्लेखोंसे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि आशारम्य नगरमें मुनिसुव्रतनाथ भगवान्को एक मूर्ति थी, जिसके चमत्कारोंकी ख्याति दूर-दूर तक थी।