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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ १५-संवत् १२५० आषाढ़ वदी १३ सोवनीका पुत्र काहड़ प्रणाम करता है। १६-सिल्हुकने अम्बिका विराजमान करायो। १७-धातुको प्रतिमा है और संवत् ११५९ का लेख है। १८-संवत् १६३४ भट्टारक सुमतिकीतिके उपदेशसे.... क्षेत्रका पता इस प्रकार है
मन्त्री, श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बघेरा, पो. केकड़ी (अजमेर)
राजस्थान
नरैना
नरैना ( नरायना ) कोई तीर्थक्षेत्र नहीं है। न तो यह सिद्धक्षेत्र है और न ही कल्याणक या अतिशय क्षेत्र। किन्तु यहाँपर जो पुरातात्त्विक सामग्री, जिनमें अनेक भव्य मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, को देखते हुए इसे तीर्थकी संज्ञा दे देना अनुचित नहीं है। मार्ग और अवस्थिति ____नरैना रेलवे स्टेशन पश्चिम रेलवेके फुलेरा रेलवे जंक्शनसे दक्षिणकी ओर ११ किलोमीटरकी दूरीपर है। यह आगरा-अजमेर रोडपर स्थित दुघूसे उत्तरकी ओर १४ किलोमीटर सांभर जानेवाले रोडपर अवस्थित है। प्राचीन समयमें यह प्रसिद्ध नगर रहा है। ११-१२वीं शताब्दीमें यह बहुत समृद्ध अवस्थामें था। व्यापारकी दृष्टि से भी इस नगरकी ख्याति थी। भारतके कोने-कोनेसे तथा विदेशों तकसे इसका व्यापारिक सम्बन्ध था। इतिहास
नरैनाको कब और किसने बसाया यह पता नहीं चल सका। ऐतिहासिक तथ्योंके आधारपर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि सन् १००९ में महमूद गजनवीने नरैनापर आक्रमण किया था। उस समय नरैनापर साँभरके दुलंभराजके पुत्र गोविन्दराज द्वितीयका शासन था। महमूदसे वह बड़ा बहादुरीसे लड़ा था, पर हार गया था। सुलतानने यहाँके मन्दिर, मूर्तियोंको तोड़ा और लूटपाट की थी।
चौहानवंशके शासनकालमें (बारहवींसे पन्द्रहवीं शताब्दी तक) जैनधर्मको पल्लवित होनेका यथेष्ट अवसर मिला। अजमेर तथा दिल्लीके चौहान राज्योंमें ही क्या, आगराके समीपवर्ती चन्द्रवाड़के चौहानवंशी राजाओंके राज्य-कालमें भी जैनधर्मकी विशेष प्रभावना हुई। उसी कालमें नरायना भी जैनधर्मका एक बड़ा केन्द्र बन गया था। बारहवीं शताब्दीके लेखक सिद्धसेन सूरिने अपने सकलतीर्थ स्तोत्रमें नरैनाको जैनियोंका प्रसिद्ध तीर्थ बताया है । जैन साधु भी यहाँ बहुलतासे रहा करते थे।
____ सन् ११७० ईसवी के बिजौलियाके शिलालेखके अनुसार प्राग्वाट (पोरवाल जैन) जातिके लोलकके पुरखे पुन्यराशिने नरैनामें वर्धमान स्वामीका जैन मन्दिर बनवाया था और ईस्वी सन् १०७९ के यहींके एक शिलालेखके अनुसार प्राग्वाट जातिके ही मथन नामक व्यक्तिने मूर्ति-प्रतिष्ठा करायी थी।