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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
ये सभी मूर्तियां १२वीं शताब्दीकी है । कला और पुरातत्त्वकी दृष्टिसे इनका विशेष महत्त्व है ।
बघेरा ग्रामके बाहर पार्श्वनाथ टेकरी है, जहाँ शिलाओंमें उत्कीर्णं पार्श्वनाथ मूर्तियाँ हैं । ये प्रायः ५-६ फुट ऊँची हैं। पहाड़ीके ऊपर कई गुफाएँ और निषद्याएं हैं । इनके सामने एक प्राचीन नन्दीश्वर जिनालय है । कुछ अन्ध श्रद्धालुओंने पहाड़ी और निषद्यामें कई जैन मूर्तियोंको सिन्दूरसे रँगकर विरूप कर दिया है। इससे इन मूर्तियोंकी कलागत विशेषताएँ और पुरातात्त्विक महत्त्व धूमिल पड़ गया है ।
गाँवके बाहर अजमेरके भट्टारक श्री रत्नभूषणजी के शिष्य हरसुखजी, तत् शिष्य पं. सर्वसुखके वि. सं. १९५६ के चरण बने हुए हैं ।
उत्खनन में प्राप्त इन प्राचीन मूर्तियों को देखनेसे ऐसा लगता है कि प्राचीन कालमें बघेरा कोई महत्त्वपूर्ण स्थान था और जैनधर्मका केन्द्र था । यहाँ तालाबके किनारे 'सूर बाराह' की एक मूर्ति खुदाई में निकली थी। इससे लगता है कि यहाँ प्राचीन काल में हिन्दू मन्दिर भी थे । कुछ मूर्तिलेख
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प्रायः सभी मूर्तियों पर अभिलेख उत्कीर्ण हैं । ये अभिलेख अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और उपयोगी हैं । इनसे मूर्तिका प्रतिष्ठाकाल, प्रतिष्ठाकारक आदिके सम्बन्धमें आवश्यक जानकारी मिलती है । यहाँ कुछ मूर्तिलेखोंका भाव दिया जा रहा है—
१ - ऋषभनाथकी प्रतिमा । सं. १२१३ । माथुर संघमें साधु सेहिल पुत्र राजश्रीके पुत्र शुभचन्द्र, महीचन्द्र और गुणचन्द्रपाल श्री ऋषभनाथको प्रणाम करते हैं ।
२ - संवत् १२-९ यशोदेव भार्या - सुभद्रा के पुत्र श्री ल्हालने कर्मक्षयके लिए प्रतिष्ठा करायी । ३ - संवत् ११-५ दिकषु सुत सल्जुने प्रतिष्ठा करायी ।
४ - शान्तिनाथ प्रतिमा। श्री लाटवागड़ साधु संघ में (साधु दुर्लभसेन कृत) पदसिद्धिके विचारकर्ता श्री पद्मसेन गुरुके द्वारा... श्रावकने संवत् १२५४ में.... प्रतिष्ठा करायी ।
५ – संवत् ११९७ वैशाख वदी १२ को देउ गुर्वाचार्य द्वारा प्रतिष्ठित
६ - संवत् १२ - १ ऋषभदेव भगवान्
७ – संवत् १२३१ रावण सुत द्वैहडिकी माता पद्मिनीके निमित्त शान्तिनाथको प्रतिष्ठा
कराई...
८ – संवत् १२४५ वैशाख सुदी ७, माथुर संघ में आचार्य श्री महसेन शिष्य आचार्यं ब्रह्मदेव श्री ऋषभदेवको प्रणाम करता है ।
९ - संवत् १९८९ नेमिनाथ चैत्र...
१० – संवत् १२१५ वैशाख सुदी ७ माथुर संघके आचार्य महसेन शिष्य आचार्य ब्रह्मदेव श्री ऋषभदेवको प्रणाम करता है ।
११ - संवत् १२०३ पाणिभ सुत वील्हा वीरनाथको नमस्कार करता है |
१२ - पार्श्वनाथ प्रतिमा मनोपभूप प्रतिष्ठा
१३ – संवत् १२४५ आषाढ़ सुदी २ शनिवार के दिन साधु रावण सुत भरत वीरनाथको प्रणाम करता है ।
१४ - संवत् १२३१ चैत्र सुदी १० वील्हा वादिल पुण्यापुण्य श्राविकाने अम्बिकाकी प्रतिष्ठा श्री धर्मघोष सूरि शिष्य पण्डित हरिभद्र गणीने...
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