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________________ ५७ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ लिए २५ वर्ष भी रखे जायें तो उसके अनुसार लोलक वैश्रवणसे लगभग २०० वर्ष पश्चात् हुआ। इस हिसाबसे बघेराका शान्तिनाथ मन्दिर, यदि वह वस्तुतः वैश्रवणके द्वारा बनवाया हुआ है तो ईसाकी १०वीं शताब्दीमें निर्मित हुआ मानना चाहिए। एक खेतमें पार्श्वनाथकी मूर्ति प्राप्त हुई थी। यह अत्यन्त मनोज्ञ एवं सौम्य है । इसपर कोई लेख नहीं है, किन्तु रचना शैलीसे यह मध्यकालकी प्रतीत होती है। यहाँ भूगर्भसे एक बारमें सर्वाधिक मूर्तियां २४ एवं २५ जुलाई १९७२ को प्राप्त हुई थीं। इस दिन प्राप्त हुई मूर्तियोंकी कुल संख्या २४ थी । घटना इस प्रकार बतायी जाती है बघेरा ग्रामके रैगड़पाड़ा मुहल्ले में रामदेवजीका एक मन्दिर बना हुआ है। ग्रामवासी इस मन्दिरके सामने पड़े हुए भूभागपर एक धर्मशाला बनाना चाहते थे। २४ जुलाईको धर्मशालाकी नींव खोदी जा रही थी। इस काममें सभी ग्रामवासियोंका सहयोग था। लगभग पांच फुट गहरी नींव खोदी जा चुकी थी। अपराह्णका समय था। रामनाथ रैगड़ नींवकी खुदाई कर रहा था। खुदाई करते हुए एक काली चमकीली चीज दिखाई दी। उसने खुदाई बन्द कर दी और धीरे-धीरे मिट्टी हटाना आरम्भ किया। कुछ प्रयत्नके बाद वहाँ दो श्याम वर्ण मूर्तियाँ निकलीं। इन दोनों मतियोंको रामदेवजीके मन्दिरके बाहर रख दिया गया। सूर्यास्तका समय था। अतः उस दिन काम बन्द कर दिया गया। दूसरे दिन २५ जुलाई को नाथू मालीने नींवकी खुदाईका कार्य प्रारम्भ किया। पहले दिन जो मूर्तियां निकली थीं, उनके कारण उसके मनमें कुछ कौतूहल भी था और आशा भी थी। वह बड़े उत्साहसे खुदाईके काममें जुट पड़ा। उसका उत्साह चरम सीमापर पहुंच गया। तब उसे खोदते हुए श्याम वर्ण मूर्ति दिखाई दी। उसने सावधानीपूर्वक मिट्टी हटानी प्रारम्भ की और एकके बाद एक इस प्रकार २२ मूर्तियाँ निकलीं। सबसे आश्चर्यकी बात यह थी कि ये मूर्तियाँ करीनेसे एकके ऊपर एक रखी हुई थीं तथा बीच-बीच में मिट्टीकी परत लगी हुई थी। इससे लगता है कि ये मतियाँ जानबझकर इस प्रकार व्यवस्थित ढंगसे रखी गयी होंगी। सम्भवतः धर्मोन्मत्त मस्लिम आतताइयोंसे सुरक्षित रखनेके लिए मूर्तियाँ मन्दिरमें-से निकालकर यहाँ रखी गयी होंगी। इससे यह आशंका निरस्त हो जाती है कि मन्दिर ध्वस्त होनेपर ये मूर्तियां यहाँ दब गयो होंगी। इन मूर्तियोंमें पांच श्याम पाषाणकी हैं तथा शेष सभी श्वेत पाषाणकी हैं। ये मूर्तियां पद्मासनमें हैं, केवल २-३ मूर्तियाँ कायोत्सर्गासनमें हैं। इनकी अवगाहना ८ इंचसे लेकर ढाई फुट तककी है। मूर्तियोंके मिलनेका समाचार गांवके अतिरिक्त आसपासके दूसरे गांवोंमें भी पहुंच गया। ग्रामवासियोंके झुण्डके झुण्ड उन्हें देखनेके लिए आने लगे। जैन लोग भी आये। उन्होंने देखते हो ये जैन मूर्तियाँ पहचान लीं। किन्तु इनके मिलनेमें बाधा आयो रैगड़ लोगोंकी ओरसे। इन लोगोंका गाँवमें बहुमत है । वे इन मूर्तियोंको जैनोंको सौंप देनेके लिए पहले तो सहमत नहीं हुए किन्तु गाँवके ठाकुर एवं अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियोंके प्रयत्नोंसे अन्ततः वे सहमत हो गये और मूर्तियां जैनोंके सुपुर्द कर दी। जैनोंने बघेरा तथा निकटवर्ती गांवोंके लोगोंको जाति और सम्प्रदायके भेदभावके बिना निमन्त्रण दिया और गाजे-बाजेके साथ इन मूर्तियोंको एक जुलूसके रूपमें श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र तक ले गये। वहाँ शुद्धिविधानपूर्वक मूर्तियोंको वेदीमें विराजमान कर दिया। इस उत्सवमें सभी जाति और सम्प्रदायके लोग सम्मिलित हुए। सब लोग बड़े प्रसन्न थे और इस उत्सवको अपना उत्सव मानकर गौरवका अनुभव कर रहे थे।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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