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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ कलचुरि वंशकी राजकुमारी थी। उस समय उसके राज्यमें ढिल्लिका (दिल्ली), आशिका (हाँसी), पल्लिका (पाली), जावालिपुर ( जालौर ), नाडौल, बिजौली आदि सम्मिलित थे। इस कालमें अजयमेरुकी जनसंख्या बहुत बढ़ गयी थी। सुदूर देशोंके व्यापारी वहाँ आकर बसने लगे थे। नगरका व्यापार और समृद्धि निरन्तर बढ़ती जा रही थी। पृथ्वीराज सन् ११७८ में राजगद्दीपर बैठा । सन् ११९२ में गजनीके बादशाह शहाबुद्दीन गोरीके साथ युद्ध करते हुए पृथ्वीराज बन्दी बना लिया गया। पश्चात् पृथ्वीराजका वध कर दिया गया। मुहम्मद गोरीने कई दिन तक अजमेरको लटा, वहाँके सभी मन्दिरोको नष्ट कर दिया और उनके स्थानपर मसजिदें बना लीं। मुहम्मद गोरीने दिल्लीपर भी अधिकार कर लिया और कुतुबुद्दीन ऐबकको वहाँका प्रशासक नियुक्त करके वह गजनी लौट गया।
कुछ समय पश्चात् पृथ्वीराजके भाई हरिराजने अजमेर और रणथम्भौरपर पुनः अधिकार कर लिया, किन्तु कुतुबुद्दीनने समाचार पाते ही विशाल सेनाके साथ अजमेरपर आक्रमण कर दिया । हरिराज उन दिनों सुरा और सुन्दरियोंमें डूबा रहता था। वह प्रतिरोध नहीं कर सका और किले में छिप गया। जब शत्रुसेनाका दबाव अधिक बढ़ा तो उसने अपने परिवारके साथ आत्महत्या कर ली । इस प्रकार सन् ११९३ में अजमेरपर कुतुबुद्दीनका पुनः अधिकार हो गया और चाहमानोंके शासनका सदाके लिए अन्त हो गया।
कुतुबुद्दीनने दिल्लीपर अधिकार करके वहाँके २७ मन्दिरोंको (प्रायः जैन मन्दिरोंको) नष्ट करके उनकी सामग्रीसे कुब्बतुल इस्लाम नामक मसजिद बनायी, जो आजकल भग्नदशामें कुतुबमीनारके बगल में खड़ी है और जिसमें अब भी जैन मूर्तियां और जैन चिह्नोंसे अलंकृत स्तम्भ और छत्रोंके पटल देखे जा सकते हैं। इसी प्रकार उसने अजमेरमें जैनोंके 'ढाई दिनका झोंपड़ा' नामक विख्यात मन्दिरका विध्वंस करके उसके स्थानपर मसजिदका निर्माण किया। यह सन् १२०० में पूरी हो पायी। कई विद्वान् यद्यपि इस झोंपड़ेको वैष्णव मन्दिर मानते हैं, किन्तु वस्तुतः मूल रूपसे यह जैन मन्दिर था। ___इसके कुछ समय बाद अजमेरकी मेहर जातिने चालुक्योंसे मिलकर राजपूतानासे मुस्लिम आक्रान्ताओंको भगानेका संयुक्त प्रयत्न किया, किन्तु वे असफल रहे और अजमेरके ऊपर एकके पश्चात् दूसरे मुस्लिम आक्रान्ताका अधिकार होता रहा। अजमेरकी भौगोलिक स्थिति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। सम्पूर्ण राजपूतानाका राजनीतिक नियन्त्रण यहाँ बैठकर सुविधापूर्वक किया जा सकता है । इसीलिए प्रत्येक मुस्लिम शासकने उसके ऊपर अधिकार जमानेका प्रयत्न किया और उसके विनाशकारी परिणाम इसे भुगतने पड़े। मुसलमान शासकोंके पश्चात् अंगरेजोंने भी इसका राजनीतिक महत्त्व समझा। यहाँ एजेण्ट टू दो गवर्नर जनरल रहते रहे। उनका शीतकालीन कार्यालय भी यहां रहा करता था। भट्टारक पीठ
अजमेर में भट्टारकोंकी गद्दी थी। यहाँ बलात्कारगणकी उत्तरशाखा और नागौर शाखाके कई भट्टारकोंका पीठ रहा है। ग्रन्थ प्रशस्तियोंमें इनके गणगच्छादिका परिचय इस भाँति दिया गया है-मूलसंघ नन्द्याम्नाय बलात्कारगण सरस्वतीगच्छ कुन्दकुन्दाचायोन्वय। बलात्कारगणकी उत्तरशाखाकी पट्टावलियोंमें अजमेर पीठसे सम्बन्धित भट्टारकोंमें वसन्तकीर्तिका सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है । ये माघ शुक्ला ५ संवत् १२६४ को पट्टारूढ़ हुए। ये बघेरवाल जातिके थे । ये कुल १ वर्ष ४ मास २२ दिन पट्टारूढ़ रहे । षट्प्राभृत ग्रन्थको टीकाके अनुसार मुनियोंको अवांछनीय