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________________ ५२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ जलकी व्यवस्थाके लिए मन्दिरके निकट एक टंकीका निर्माण किया गया है जिससे नल द्वारा जल-वितरण व्यवस्था सुचारु रूपसे चलती रहे। हाल ही में ३ किलो मीटर दूर गोनेर ग्रामसे पाइप लाइन बिछाकर मोठे पेय जलको व्यवस्था क्षेत्रके प्रयत्नोंसे सरकार द्वारा की मयी है। मेला यहाँ वैशाख शुक्ला ५ को एक मेला भरता है, जिस दिन यहां मूर्ति निकली थी। क्षेत्रपर दूसरा मेला फागुन कृष्णा ४ को होता है। यह पद्मप्रभ भगवान्का मोक्ष-कल्याणक दिवस है। किन्तु क्षेत्रका मुख्य वार्षिक मेला आसौजमें दशहरेके अवकाशमें होता है। इस अवसरपर यहाँ रथ-यात्रा निकलती है। क्षेत्रपर एक स्मरणीय मेला ४ से ८ फरवरी सन् १९६९ को हुआ था। इस अवसर पर पंच कल्याणक-प्रतिष्ठा हुई थी जिसमें लगभग एक लाख जन-समुदाय एकत्रित हुआ था। प्रबन्ध ___ क्षेत्रका प्रबन्ध चुनी हुई प्रबन्ध समिति द्वारा होता है जिसका विधानानुसार चुनाव होता है। संस्था सरकार द्वारा रजिस्टर्ड है। क्षेत्रका पता इस प्रकार है : श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, पदमपुरा पो.हा पहमपुरा, जिला जयपुर (राजस्थान) अजमेर इतिहास इतिहास-ग्रन्थोंसे पता चलता है कि मध्ययुगमें राजस्थानमें चाहमान राजपूतोंने शाकम्भरी (सांभर), रणस्तम्भपुर (रणथम्भौर), नाडौल और जावालीपुरा (जालौर) में अपने राज्य स्थापित करके सत्ताको राजनीतिमें प्रभावपूर्ण अधिकार जमा लिया था। इनमें शाकम्भरोके चाहमानोंका प्रभाव बारहवीं शताब्दीमें प्रबल वेगसे बढ़ा। इससे पूर्व वे छोटे-मोटे राजाओंमें गिने जाते थे। जब पृथ्वीराज प्रथमके पुत्र अजयराजने शाकम्भरीको राजसत्ता सम्हाली, तब उसके मनमें सम्राट बननेकी महत्त्वाकांक्षा जागृत हुई। उस समय उसके चारों ओर प्रबल शक्तिशाली राज्य थे। दिल्ली में तोमरोंका शासन था। मालवामें परमारोंका आधिपत्य था। गजरात चौलक्योंके अधि में था। कन्नौजपर गाहड़वालोंकी ध्वजा लहरा रही थी। मध्यप्रदेशके बहुभागपर कलचुरियोंका अधिकार था । इस परिस्थितिमें भी अजयराजने उज्जैनपर आक्रमण कर दिया और परमार नरेश नरवर्मनके सेनापति सुल्हणको पकड़ लिया। युद्धोंमें उसने चाचिग, सिन्धुल और यशोराज आदि कई राजाओंको मार डाला । इस प्रकार उसने अल्पकाल में ही अपने राज्यको सीमाएं चारों ओर बढ़ा लीं। उसे युद्धोंमें जो निरन्तर विजय प्राप्त हुई थी, इस हर्षके उपलक्ष्यमें उसने अजयमेरु नामक एक नगरको स्थापना की । यह अजयमेरु ही बादमें अजमेर कहा जाने लगा। इसी वंशमें आगे चलकर पृथ्वीराज तृतीय हुआ। उसके पिता सोमेश्वरकी जब मृत्यु हुई, तब वह छोटा था। उस समय राज्यको देखभाल उसको माता कर्पूरदेवी करती थी जो
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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