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________________ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ ५१ वेदी नं. ५-इस वेदीमें हलके गुलाबी वर्णके पद्मप्रभ भगवान् पद्मासन मुद्रामें विराजमान हैं। इनकी अवगाहना ४ फुट ५ इंच है। इनकी प्रतिष्ठा संवत् २४९२ में हुई थी। ____ वेदी नं. ६–यहाँ ८ फुट ३ इंच अवगाहनाके श्वेत वर्ण बाहुबली स्वामी कायोत्सर्गासनमें ध्यानारूढ़ हैं। उनके मुखपर विरागरंजित मुस्कानसे ऐसा प्रतीत होता है मानो बाहुबली षट्खण्ड पृथ्वीको विजय करके भी भरतके व्यवहारसे इसके प्रति विरक्त हो उठे हों, साथ ही वे उन व्यक्तियोंके मोह-मायापर भी हंस रहे हों जो जगत्के वैभवको नश्वर जानकर भी उसके लिए ही सम्पूर्ण आयोजन करते रहते हैं। उनके चरणोंके निकटसे निकलकर उनकी टांगों और भुजाओंको घेरनेवाली माधवी लताएँ उस कामजेता कामदेवकी अविचल ध्यान-निष्ठाको प्रकट कर रही हैं। इस मूर्तिकी प्राण-प्रतिष्ठा संवत् २४९५ में हुई थी। वेदी नं.७-श्वेत वर्ण शान्तिनाथ ४ फुट ३ इंच अवगाहनामें पद्मासन मुद्रामें विराजमान हैं । इनकी प्रतिष्ठा संवत् २४९५ में हुई थी। वेदी नं. ८-महावीर भगवान्की ४ फुट १ इंच ऊंची श्वेत वर्ण पद्मासन मूर्ति संवत् २४९५ में प्रतिष्ठित होकर यहाँ विराजमान की गयी। वेदो नं. ९-श्याम वर्ण, पद्मासन मुद्रा, सप्तफण मण्डित, ३ फुट ३ इंच अवगाहना और संवत् २४९५ में प्रतिष्ठित पद्मासन मूर्ति इस वेदीमें विराजमान है। वेदी नं. १०-इस वेदोमें भगवान् महावीरकी ढाई फुट ऊंची श्वेत पाषाणकी पद्मासन मूर्ति विराजमान है । बायीं ओर आदिनाथ और दायीं ओर चन्द्रप्रभ हैं । आगेकी पंक्तिमें महावीर और उनके दोनों पाश्र्यों में पार्श्वनाथ और पद्मप्रभ हैं। इसके अतिरिक्त ६ धातु प्रतिमाएं भी हैं। बाड़ा ग्राममें जहाँ भगवान् पद्मप्रभ प्रकट हुए थे, संगमरमरको छत्री बनी हुई है। उसमें भगवान्के चरण-चिह्न विराजमान हैं। इनकी प्रतिष्ठा माघ शुक्ला ३ संवत् २००३ को हुई थी। यहाँ नैऋत्य कोणमें एक गुमटीके नीचे अखण्ड दीपक जलता है। इसके निकट ही वह चबूतरा है, जहाँ १८ वर्ष तक भगवान् पद्मप्रभको मूर्ति विराजमान रही। इस समय यहां एक काष्ठासनपर भगवान् पद्मप्रभको वोर सं. २४७७ में प्रतिष्ठित १ फुट २ इंच ऊंची श्वेत वर्ण पद्मासन मूर्ति विराजमान है। इसके आगे टोनका एक मण्डप बना हुआ है। धर्मशाला यहाँपर पहले कच्ची धर्मशाला बनायी गयी थी। वह यात्रियोंकी आवश्यकताके अनुरूप नहीं थी। अतः उसके स्थानपर पक्की धर्मशाला बनायी गयी। इसमें कुल ५२ कमरे हैं जिनमें से ४५ कमरों में बिजली, पंखे लगे हुए हैं । मन्दिरके चारों ओर कटला बन रहा है । इसमें महावीरजी न चारों ओर विशाल धर्मशाला रहेगी। इसमें ६० कमरे बन चुके हैं। शेष कमरे भी जल्दी बन जायेंगे। यहां यात्रियोंको सुविधाके लिए आवश्यकतानुसार गद्दे, रजाइयों और बर्तन आदिकी व्यवस्था है। रेलवे स्टेशनपर एक छोटी धर्मशाला और प्याऊ बनी हुई है। औषधालय तथा अन्य सुविधाएँ क्षेत्रकी ओरसे यात्रियोंकी सुविधाके लिए एक आयुर्वेदिक औषधालय चलाया जा रहा है। यात्रियोंके अतिरिक्त गांवोंके हजारों व्यक्ति इस औषधालयसे लाभ उठाते हैं। महावीरके २५००वें निर्वाण वर्ष में औषधालयके लिए विशाल भवनका निर्माण हुआ है। यहां जनोपयोगी कार्य भी काफी होते रहते हैं । कई बार निःशुल्क नेत्र चिकित्सा यहाँ आयोजित हुई जिससे सैकड़ों लोगोंको नेत्र-ज्योति प्राप्त हुई है।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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