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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ मिर्जा साहबने उन्हें प्रोत्साहन देते हुए कहा-"तुम मन्दिर बनवाओ, रुपया मांगकर मैं लाऊंगा।" किन्तु कुछ दिनों बाद मिर्जा साहब हैदराबाद चले गये । आर्थिक प्रश्न बना ही रहा। क्षेत्र प्रबन्धसमितिके पदाधिकारी एवं सदस्योंके शिष्ट-मण्डलने जयपुर प्रान्तके प्रत्येक ग्राममें घूमकर अर्थसंग्रह किया । आसाम प्रान्तसे भी धन लाये ।
मन्दिरका निर्माण कार्य प्रगति करता गया। जयपुर निवासी श्री मोहरीलाल गोधाने उक्त जमीनके अतिरिक्त और भी काश्तकी भूमि मन्दिरको खातेदारीके रूपमें भेंट दी । मूर्ति निकलनेके १८ वर्ष पश्चात् वि. सं. २०१९ में वैशाख शुक्ला ७ (१० मई १९६२) को विशाल समारोहके साथ वेदी प्रतिष्ठा हई और भगवान पदमप्रभको चबूतरेसे लाकर नवीन मन्दिर में विराजमान कर दि गया । अभी तक मन्दिरका एक चरण-निज मन्दिरका कार्य पूरा हुआ है । निज मन्दिरका गुम्बज अत्यन्त कलात्मक और विशाल है। वह धरातलसे ८५ फुट ऊंचा है। निज मन्दिरमें भगवान् पद्मप्रभकी वेदीके अतिरिक्त ९ वेदियाँ और बन चुकी हैं। मन्दिरका निर्माण कार्य चालू है। योजना महत्त्वाकांक्षी है । कार्य विशाल है। उसमें प्रभूत धन और कालकी अपेक्षा है। मन्दिर गोलाकार बन रहा है। जितना बन चुका है, वह भी काफी सुन्दर है, जब योजनानुसार पूरा बन जायेगा तो वास्तवमें यह अपने ढंगका एक ही मन्दिर होगा।
जिस स्थानपर भगवान् भूगर्भसे प्रकट हुए थे, वहाँ संगमरमरकी छतरीका निर्माण करा दिया गया है और उसमें भगवान्के चरण-चिह्न भी विराजमान कर दिये हैं । क्षेत्र-दर्शन
एक विशाल कटलेमें फाटकमें घुसकर सामने भव्य कलापूर्ण मन्दिरके दर्शन होते हैं। मन्दिर २००४ २०० फुट है तथा कटला १०००x१००० फुट है। मन्दिरका गुम्बज जमीनसे ८५ फुट ऊँचा है । योजनानुसार शिखर जब बनेगा तो वह जमीनसे करीब १२५ फुट ऊंचा होगा। निज मन्दिरके नीचेका भाग अर्थात् प्रथम मंजिलमें ठोस बना हुआ है। दूसरी मंजिलमें मन्दिर है । सोपान मार्गसे मन्दिरमें जाते हैं । गुम्बज स्तम्भोंपर आधारित है। मन्दिरमें गोलाकार हाल या सभामण्डप है। इसमें दस वेदियां बनी हुई हैं। पूर्वाभिमुख प्रवेश-द्वारके ठीक सामने पद्मप्रभ भगवान्की मकरानेकी मुख्य वेदी बनी हुई है। एक संगमरमरके बने हुए कमलासनपर २ फुट ४ इंच उत्तुंग श्वेतवर्ण भगवान् पद्मप्रभकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यही वह प्रतिमा है, जो मूलाने अपने मकानकी खुदाई करते समय भूगर्भसे निकाली थी और जिसके चमत्कारोंने असंख्य लोगोंको अपनी ओर आकर्षित किया है। मूलनायकके सामने पीतलकी आदिनाथ प्रतिमा विधिनायकके रूपमें विराजमान है।
यहांसे दायीं ओर बढ़नेपर वेदी नं. २ में संवत् २४२० को प्रतिष्ठित २ फुट ८ इंच ऊंची भगवान् महावीरकी श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। बायों ओर चन्द्रप्रभ और दायीं ओर शान्तिनाथ हैं। इनके आगे पाषाणको २ और धातुको ५ प्रतिमाएं विराजमान हैं।
वेदी नं० ३–भगवान् नेमिनाथकी श्वेत पाषाणको ३ फुट ३ इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा है। प्रतिष्ठाकाल वीर नि. संवत् २४९५ है । सं. २४९५ में पद्मपुरा क्षेत्रपर विशाल पंच कल्याणकप्रतिष्ठा हुई थी। इस संवत्की मूर्तियोंकी यहींपर प्राण-प्रतिष्ठा हुई है।
वेदी नं. ४-४ फुट ४ इंच अवगाहनावाली ऋषभदेवकी श्याम वर्ण और संवत् २४९५ में प्रतिष्ठित पद्मासन प्रतिमा है।