SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ मूर्ति निकलने का समाचार चारों ओर बिजलीके समान तेजीसे फैल गया। चारों ओरसे स्त्री-पुरुष आने लगे। दिन-प्रतिदिन भक्त जनोंको भीड़ बढ़ने लगी। एक दिन पड़ोसके ग्राम बल्लपरा निवासी श्री फलचन्द जैन बाडा गांवके पाससे निकले तो गाँवके एक व्यक्तिने उन्हें बताया कि हमारे यहाँ एक बाबाकी मूर्ति निकली है। उसमें बड़ा चमत्कार है। उसके कहनेसे फूलचन्दजी भी उस मूर्तिको देखने आये । मूर्तिको देखते ही वे बोले-"यह तो जैनियोंके पद्मप्रभु भगवान्की मूर्ति है । इसे जैन मन्दिरमें भेज दो।" गाँववालोंने यह स्वीकार नहीं किया। आखिर पड़ोसी गाँवोंके जैन लोग वहीं आकर सेवा-पूजा करने लगे। प्रति वर्ष गांवमें कई गाय, भैसें रोगाक्रान्त हो मर जाती थीं, मूर्ति निकलनेके बाद एक भी जानवर नहीं मरा तथा इस वर्ष खेतीकी पैदावार इतनी अच्छी हुई जितनी कभी नहीं हुई। ग्रामवासियोंने इसे मूर्तिका चमत्कार माना और श्रद्धापूर्वक भक्ति करने लगे। धीरे-धीरे मूर्तिकी ख्याति बढ़ने लगी। भक्त स्त्री-पुरुषोंकी संख्या भी बढ़ने लगी। लोग मनौतियाँ मनाने लगे। उनके कष्ट भी दूर होने लगे। दूर-दूरसे अनेक लोग भूत-व्यन्तरकी बाधा दूर कराने वहां पहुंचने लगे। और इस प्रकार इस स्थानने स्वतः ही एक अतिशय क्षेत्रका रूप ले लिया। प्रारम्भमें आसपासके गाँवोंके जैनोंने व्यवस्था की, पर जब यात्रियोंका आवागमन अधिक होने लगा तब इसका काम व्यवस्थित रूपसे चलानेके लिए जयपुर में एक प्रबन्ध-कारिणी समितिका गठन किया गया। यहाँ आनेवाले यात्रियोंको ठहरानेके लिए एक कच्ची धर्मशालाका निर्माण किया गया, जो बादमें समाजके उदार सहयोगसे पक्की बना दी गयी। तत्पश्चात् पक्का कुआँ बनवाया गया। आज तीन कुओंमें इंजिन लगा हुआ है। और नलोंकी व्यवस्था है। धीरे-धीरे पक्की सड़क, पोस्ट ऑफिस, टेलीफोन और बिजलीको व्यवस्था करायी गयी। मन्दिरका निर्माण प्रबन्ध समितिने निश्चय किया कि भगवान् पद्मप्रभकी इस मूर्तिको उसकी ख्यातिके अनुरूप विशाल मन्दिर बनवाकर उसमें विराजमान किया जाये। इस प्रकार मन्दिर-निर्माण करानेका जिन दिनों निर्णय किया गया, उन्हीं दिनों जयपुर राज्यके तत्कालीन मुख्य मन्त्री मिर्जा इस्माइल खां इस मूर्तिकी प्रशंसा सुनकर बाड़ा गांवमें पधारे। उन्हें जब यह बात बतायी गयी कि कमेटीने यहाँ मन्दिर-निर्माणका निश्चय किया है तो वे बोले कि पद्मप्रभ भगवान्का इतना सुन्दर मन्दिर बनवाओ, जो राजस्थानमें ही नहीं, सारे भारतमें अपनी तरहका अकेला मन्दिर हो। उनकी प्रेरणा पाकर मन्दिर-निर्माणके कार्यमें गति आ गयी। जयपुरके वास्तुकला विशेषज्ञ एवं जयपुर राज्यके इमारत विभागके दारोगा (अधिकारी) श्री कस्तूरचन्दजी जैन लुहाडियाकी देखरेखमें उनके सुपुत्र प्रख्यात आचिटेक्ट श्री गुलाबचन्दजी लुहाडिया द्वारा मन्दिरका डिजाइन व नक्शा बनवाया, जो गोलाकार बड़ा सुन्दर है। उसका मॉडल बनवाया गया। मन्दिर निर्माणके लिए जमीनकी आवश्यकता हुई। धर्मपुराके जागीरदार श्री मोहरीलालजी गोधा जैनने ३७ बीघा जमीन मन्दिर एवं यात्रियोंकी आवास व्यवस्थाके लिए भेंट की और शुभ मुहूर्तमें १४ दिसम्बर सन् १९४५ को अजमेर निवासी सरसेठ भागचन्दजी सोनी द्वारा शिलान्यास किया गया। मन्दिरका नक्शा अत्यन्त सुन्दर था और मॉडल तो इतना कलापूर्ण था कि जो देखता, वही प्रशंसा करता था। वह प्रदर्शनियोंमें भी भेजा गया था और सर्वत्र उसने जनताको प्रशंसा प्राप्त की। एक बार कमेटीके कुछ सदस्योंने मिर्जा इस्माइल साहबसे भेंट की और उन्हें मॉडल दिखाकर कार्य-प्रगतिका विवरण दिया तथा अपनी आर्थिक कठिनाई उनके समक्ष रखी। तब
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy