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________________ ४८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ पद्मपुरा मार्ग और अवस्थिति पद्मपुरा (बाड़ा) जयपुरसे ३३.३ कि. मी. दक्षिणको ओर स्थित है। जयपुरसे टोंक जानेवाली सड़कपर शिवदासपुरा नामक एक स्थान है। वहाँसे पूर्वकी ओर श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पद्मपुरा ५ कि. मी. है। क्षेत्र तक सड़क पक्की है। रेलमार्ग द्वारा जयपुर-सवाई माधोपुर ब्रांच लाइनके शिवदासपुरा-पद्मपुरा स्टेशनसे यह क्षेत्र ६.२ कि. मि. है। स्टेशनसे क्षेत्र तक जानेके लिए बसकी व्यवस्था है। जयपुरमें घाटगेटसे क्षेत्रके लिए प्राइवेट बसें चलती हैं। ये खानिया, गोनेर होती हुई जाती हैं। इस मार्गसे क्षेत्र १५ मील है। भट्टारकजीकी नसियासे सरकारी बसें जाती हैं। वे सांगानेर, शिवदासपुरा होकर जाती हैं। इस मार्गसे क्षेत्र २० मील पड़ता है। पहले इस गांवका नाम बाड़ा था जहाँ मूर्ति प्रकट हुई है। जहाँ नवीन विशाल मन्दिर है उसका नाम धर्मपुरा था। आज वह पद्मपुरा कहलाता है। क्षेत्रका इतिहास ___इस क्षेत्रका इतिहास विशेष प्राचीन नहीं है। केवल ३२ वर्षके अल्प समयमें इसका निकास और विकास हुआ है । क्षेत्र प्रकाशमें किस प्रकार आया, इसका एक रोचक इतिहास है। बाड़ा ग्राम एक छोटा-सा ग्राम था जिसमें ४०-५० किसानोंकी झोपड़ियां थीं। गांववालोंको पानीका बड़ा कष्ट था। गांवके ही जगन्नाथ नामक एक व्यक्तिके अन्दर भैंरोजीकी सवारी आती थी। एक दिन उस व्यक्तिके अन्दर भैंरोजीका अभिनिवेश हुआ। गांववालोंका जमघट लगा हुआ था। लोग अपने सुख-दुखके बारेमें प्रश्न कर रहे थे और उस व्यक्तिके माध्यमसे भैंरोजी उत्तर दे रहे थे। तभी एक व्यक्तिने पूछा-"महाराज ! कभी हमारे इस बाड़ा ग्रामका भी भाग्य उदय होगा और पानीका संकट दूर होगा ?" भैरोजीने उत्तर दिया-"शीघ्र ही यहां एक बाबाको मूर्ति निकलेगी। वह बड़ी चमत्कारी होगी। उसके कारण यह गांव बदल जायेगा। यह नगर जैसा हो जायेगा और पानीका संकट भी दूर हो जायेगा।" दिन बीतते गये और यह बात लोग भूल-से गये। मूला जाट अपने पिताकी मृत्युके बाद अपनी मांके साथ अपने नानाके घर बाड़ामें बचपनमें ही आ गया था। वहीं नानाके घरमें वह बड़ा हुआ। एक दिन मामाने उससे कहा-"मूला ! तुम पासवाले रेवडमें अपने लिए मकान बना लो। माता और पुत्र दोनों मकानके काममें जुट गये । बेटा फावड़ेसे नींव खोदता और माता डलियामें मिट्टी भरकर बाहर डालती। उस दिन वि. सं. २००१ का वैशाख शुक्ला पंचमीका दिन था। वषाके आगमनसे पूर्व ही मकान बना लेनेको जल्दी थी। मां-बेटे दोनों अपने-अपने काममें जुटे हुए थे। एकाएक मूलाका फावड़ा एक श्वेत पाषाणसे टकराया। टकरानेसे अद्भुत प्रकारको मधुर ध्वनि हुई। मां-बेटे दोनोंको ही बड़ा विस्मय हुआ। किशोर मूलाने दौड़कर इस अद्भुत घटनाको सूचना गांववालोंको दी। अल्पकालमें ही गांववाले वहां एकत्रित हुए। धीरे-धीरे सावधानीसे चारों ओरसे मिट्टी हटायी गयी और उसमें से श्वेत पाषाणकी दिव्य मूर्ति प्रकट हुई। मूर्ति पद्मासन थी और पादपीठपर कमलका चिह्न बना हुआ था। मूर्तिको उसी चबूतरेपर विराजमान कर दिया, जिसपर भैरोंजी और महादेवजीकी मूर्तियां विराजमान थीं।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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