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________________ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ पं. टोडरमलजी-इन विद्वानोंमें पण्डित टोडरमलजो सर्वाधिक लोकप्रिय और सम्मानास्पद विद्वान् हुए हैं । इन्होंने तत्कालीन समाजमें पूजापाठ और प्रतिष्ठाओंमें व्याप्त मिथ्यारूढ़ियों और बाह्याडम्बरों एवं केवल व्यवहारवादो दृष्टिकोणके विरुद्ध जनमानसमें चेतना जागृत की। इन्होंने एकांगी व्यवहार मार्गसे जनताको रुचि हटाकर व्यवहार और निश्चयके आर्षसम्मत मार्गको समन्वयपरक दृष्टि प्रदान की। इन्होंने गोम्मटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार, क्षपणासार-जैसे दुरुह सिद्धान्त ग्रन्थोंको सुबोध टोकाएं कीं। इनका 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' ग्रन्थ तो स्वाध्यायप्रेमियोंका सर्वप्रिय ग्रन्थ रहा है। पण्डित दौलतराम काशलीवाल-ये एक लोकप्रिय कवि और विद्वान् थे। इन्होंने आदिपुराण, पद्मपुराण, हरिवंश पुराण आदि अनेक ग्रन्थोंको टीका करके जन-जनके लिए उनका स्वाध्याय सुगम बना दिया। उन्होंने अनेक मौलिक ग्रन्थोंकी भी रचना की। उनके १८ ग्रन्थ अब तक प्रकाशमें आ चुके हैं । ये जैनोंके सर्वप्रिय साहित्यकार थे। अध्यात्म बारहखड़ी इनकी अद्भुत रचना है। कविवर बखतराम शाह-ये मूलतः चाकसूके निवासी थे, किन्तु बादमें जयपुरमें आ बसे थे। ये बीसपन्थ और भट्टारकोंके समर्थक थे। इन्होंने 'मिथ्यात्व खण्डन' और 'बुद्धिविलास' नामक ग्रन्थोंमें यद्यपि तेरहपन्थ और पण्डित टोडरमलजीके विचारोंका खण्डन किया है, किन्तु इन ग्रन्थोंसे तत्कालीन समाज, राज्य व्यवस्था, जयपुर नगर-निर्माण आदिके इतिहासपर भी पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। पण्डित जयचन्द छाबड़ा-ये जयपुरके निकटस्थ फागी नगरके रहनेवाले थे, किन्तु बादमें जयपुरमें स्थानान्तरित हो गये थे। इन्होंने १५ ग्रन्थोंकी रचना की । इनकी भाषा राजस्थानी ( ढुंढारी ) है। इन ग्रन्थोंमें अधिकांश वनिकाएँ हैं । तत्त्वार्थसूत्र, सर्वार्थसिद्धि, समयसार, द्रव्यसंग्रह, प्रमेयरत्नमाला आदि दुर्बोध ग्रन्थोंको इन्होंने अपनी वचनिकाओं द्वारा सुगम और सुबोध बना दिया है। जैन समाजमें आज तक इनके ग्रन्थोंको बड़ी रुचि और सम्मानके साथ पढ़ा जाता है। थानसिंह-इनकी रचनाएँ 'थान विलास' और 'सुबुद्धि प्रकाश' में संग्रहीत हैं। महाराज माधोसिंहके कालमें हुए साम्प्रदायिक उपद्रवोंके सम्बन्धमें कविकी इन कृतियोंसे पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। - इनके अतिरिक्त अनेक शास्त्रोंके टीकाकार पं. सदासुख काशलीवाल, पं. गुमानीराम भावसाँ तथा कई भट्टारक हुए, जिन्होंने अपनी रचनाओंसे जैन वाङ्मय और हिन्दी साहित्यकी श्रीवृद्धि की। इन विद्वानोंके अतिरिक्त अनेक विद्वान् आमेर और सांगानेरमें हुए। ये दोनों ही नगर जयपुरके अत्यन्त-निकट हैं । सांगानेरके विद्वानोंमें खुशालचन्द काला, जोधराज,, किशनसिंह तथा आमेरके विद्वानोंमें टेपचन्द काशलीमाळ, नेमिचन्द्र अजयराज पाटनी आदि मुख्य हैं। इन विद्वानोंकी अनेक रचनाएं प्रकाशमें आ चुकी हैं।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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