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________________ ४० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ श्री महावीरजी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्रका मन्त्री कार्यालय सवाई मानसिंह हाईवेमें महावीर भवनमें अवस्थित है। यहींपर उसका साहित्य शोध संस्थान है। बापूनगरमें पं. टोडरमलजीको स्मतिमें सेठ पुरणचन्द गोदिका द्वारा संस्थापित 'टोडरमल स्मारक भवन' है। सेठी कालोनीमें विशाल सन्मति पुस्तकालय है जिसे मोतीलालजीने स्थापित किया था। जयपुरके जैन दीवान जयपुर राज्यमें अनेक व्यक्ति दीवान हुए हैं, उनमें नानू गोधा, रावकृपाराम, संघी झूथाराम, रामचन्द्र छावड़ा, अमरचन्द्र, बालचन्द्र, रतनचन्द्र, रामचन्द्र आदि सभी दीवान जेन थे। ये जैन दीवान कुशल प्रशासक, चतुर राजनीतिज्ञ और कर्तव्यपरायण थे। साथ ही वे देशभक्त और धर्मनिष्ठ भी थे । इनके सम्बन्धमें अधिक विवरण उपलब्ध नहीं होता है। जो कुछ विवरण मिलता है, वह प्रायः ग्रन्थ प्रशस्तियों अथवा उनके द्वारा प्रतिष्ठित मूर्तियों और मन्दिरोंके आधारपर। उनका साधारण परिचय इस प्रकार है साहू नानूलाल गोधा-ये आमेरके तत्कालीन नरेश महाराजा मानसिंहके प्रथम प्रधान अमात्य थे। इनके पिता इसी नगरके निवासी श्री स्वरूपचन्द्रजी गोधा थे। वे बड़े धर्मनिष्ठ, उदार और गुणज्ञ थे। श्री नानूलाल भी अपने पिताके समान धर्मात्मा और उदार दानी थे। आपके अनुरोधसे मूलसंघ सरस्वतीगच्छके भट्टारक आदिभूषणके शिष्य ज्ञानकोतिने यशोधर-चरित नामक संस्कृत काव्यको रचना की। आपने मौजमाबादमें एक विशाल और कलापूर्ण जिनमन्दिरका निर्माण करके ज्येष्ठ कृष्णा ३ सोमवार विक्रम संवत् १६६४ (सन् १६०७) को पंचकल्याणक बिम्ब प्रतिष्ठा महोत्सव किया। इस उत्सवमें सहस्रोंकी संख्या में जैनाजैन सम्मिलित हुए। इस मन्दिरके ऊपर तीन शिखर हैं। मन्दिरके आगे विशाल चौक है। मन्दिरका प्रवेश-द्वार अत्यन्त कलापूर्ण है। श्वेत और लाल पाषाणोंपर अद्धत कलाकृतियां अंकित की गयी हैं। देव-देवियाँ विभिन्न मुद्राओंमें दिखाये गये हैं। एक दृश्यमें वीणापाणि सरस्वती खड़ी है। उसका वाहन हंस मोती चुग रहा है। लाल और श्वेत पाषाणोंमें अंकित यह कला राजस्थानी कलाका एक नमूना कही जा सकती है। इस मन्दिरमें दो भोयरे हैं। एक भोयरेमें संवत् १६६४ में प्रतिष्ठित जिन मूर्तियां विराजमान हैं तथा दूसरे भोयरेमें भगवान् आदिनाथकी विशाल पद्मासन मूर्ति है जो संवत् १४०० की है। यहां एक छतरी भी बनी हुई है। इसका निर्माण चौधरी नन्दलालके पुत्र जोधराजने कराया था। यशोधर-चरितकी प्रशस्तिसे ज्ञात होता है कि नानूलालने तीर्थराज सम्मेदशिखरके ऊपर बीस तीर्थंकरोंके मन्दिर बनवाये थे। प्रशस्तिमें बताया गया है "राजाधिराजोऽत्र तथा विभाति श्रीमानसिंहोऽजितवैरिवर्गः । अनेकराजेन्द्रविनम्यपादः स्वदानसंतर्पितविश्वलोकः ।। तस्यैव राज्ञो स महानमात्यो नानू सुनामा विदितो धरित्र्याम् । सम्मेदशृंगे च जिनेन्द्रगेहान्यष्टापदे वादिमचक्रधारी ॥ योऽकारयद्यत्र च तीर्थनाथाः सिद्धिंगता विंशतिमानयुक्ता।" इस प्रशस्तिसे प्रकट है कि नानू मानसिंहके महामात्य थे और उन्होंने सम्मेद गिरिपर निर्वाण-लाभ करनेवाले चौबीस तीर्थंकरोंके जिनालय उसी प्रकार बनवाये, जिस प्रकार प्रथम चक्रवर्ती भरतने अष्टापदके ऊपर जिनभवन बनवाये थे।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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