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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ
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थे । शान्तिका स्थान देखकर भीमने यहाँ तपस्या की । शत्रुओंने उसे डिगानेके कई प्रयत्न किये । अन्तमें एक देवता रीछ बनकर उसे डराने आया । किन्तु भीमने कसकर एक तीर मारा। रीछ तो झाड़ियों में घुस गया, किन्तु जहाँ तीर गिरा, वहाँसे एक जल-धारा फूट निकली, जिसका नाम चन्द्रभागा पड़ गया ।
नगरका संस्थापक कोई भी क्यों न हो, किन्तु यह निश्चित है कि मालवनरेश उदयादित्य - का पौत्र जस्सू वर्मा ही जस्सू बढ़ई हो गया है । यहाँके एक शिलालेखमें उसके नामका उल्लेख भी आया है ।
हिन्दू तीर्थ
चन्द्रभागा नदीके तटपर अनेक हिन्दू मन्दिर अवस्थित हैं । कुछ मन्दिरोंके अवशेष भी बिखरे पड़े हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध मन्दिर शीतलेश्वर महादेवका है । इस मन्दिरका विध्वंस किसी मुस्लिम आक्रान्ताने कर दिया था, किन्तु बादमें इसकी मरम्मत कर दी गयी । इस मन्दिरके सम्बन्ध में मि. फर्ग्युसन ने अपने विचार प्रकट करते हुए लिखा है कि यह सबसे प्राचीन और कलापूर्ण मन्दिर है । भारत के प्रसिद्ध कलात्मक निदर्शनों में यह एक उत्तम नमूना है । इस मन्दिरके एक स्तम्भपर आठवीं शताब्दीका एक लेख भी है, जिसमें इस मन्दिर में राजा शंकरके दर्शनार्थं आनेका उल्लेख किया गया है । शंकरगण मौर्यनरेश दुर्गंगणका सम्भवतः उत्तराधिकारी था ।
नोकका पुत्र मंचुक भी नौवीं सदी में इस स्थानकी पूजाके लिए आया था । शीतलेश्वर महादेव तथा उसके लगभग समकालीन कालिका मन्दिर के स्तम्भोंपर ऐसे शिलालेख मिलते हैं, जिसमें ७८वीं शताब्दीसे १२वीं शताब्दी तक यहाँ आये हुए विशिष्ट यात्रियोंके उल्लेख हैं । इनसे सिद्ध होता है कि यह स्थान काफी प्राचीन है ।
ये सभी मन्दिर एक अहाते के अन्दर बने हुए हैं और भारत सरकार के पुरातत्त्व विभागके संरक्षण हैं ।
वस्तुतः चन्द्रावती (झालरापाटन) जैनधर्मं, शैवधर्म और वैष्णव धर्मका एक सुप्रसिद्ध केन्द्र था। सभी धर्मवाले इसे अपना तीर्थंस्थान मानते आये हैं ।
सरस्वती भवन
नगर में श्री शान्तिनाथ जैन प्राथमिक विद्यालय, श्री शान्तिनाथ जैन औषधालय, शृंगारप्रसूति गृह आदि कई सार्वजनिक संस्थाएँ हैं । इनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय श्री ऐलक पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन है । इसकी स्थापना ऐलक पन्नालालजीने संवत् १९७२ में की थी। इसके पश्चात् उन्होंने इसकी एक शाखा सुखानन्द जैन धर्मशाला बम्बई में स्थापित की । बादमें सेठ चम्पालाल रामस्वरूपकी नसियाँ व्यावर में इसकी एक अन्य शाखा स्थापित की । इस वर्ष ज्येष्ठ वदी ५ संवत् २०३३ में उज्जैन में इसकी शाखा खोली गयी है । यहाँ बम्बई शाखाके शास्त्र लाये गये हैं। तीनों स्थानोंपर हस्तलिखित और मुद्रित शास्त्रोंकी कुल संख्या १५००० है ।
धर्मशाला
नगरमें एक लक्ष्मणलाल दिगम्बर जैन धर्मशाला है, जहाँ नल और बिजलीकी सुविधा है ।
१. Annual Report Rajputana Museum Ajmer, 1912-13, p.2.
२. Progress Report Archeological Survey of Western India, 1905-6.