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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ
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अजमेर, जयपुर, इन्दौर आदि शहरोंके साथ इसका सड़क द्वारा सम्पर्क है । शहरोंमें उपलब्ध सभी आधुनिक सुविधाएं यहाँ उपलब्ध हैं । यह झालावाड़ जिलेका हेडक्वार्टर है । अतिशय क्षेत्र
यहाँ भगवान् शान्तिनाथका एक विशाल मन्दिर बना हुआ है। इस मन्दिरमें मूलनायक भगवान् शान्तिनाथकी १२ फुट ऊँची अत्यन्त सौम्य खड्गासन प्रतिमा है। इसके दर्शन मात्रसे मनमें अपूर्व शान्तिका उद्रेक होने लगता है। अनेक भक्तजन इनके समक्ष अपनी व्यथाका निवेदन करते हैं और कहा जाता है कि भक्तिभावपूर्वक की गयो उनकी प्रार्थनासे कामना पूर्ण हो जाती है।
इस मन्दिरके बाहर बने हुए तीन ओर बरामदोंमें १५ वेदियाँ हैं।
प्राचीन कालमें यहां भगवान् शान्तिनाथका एक प्रसिद्ध मन्दिर था, जिसका निर्माण सन् १०४६ में शाह पापा हूमड़ने कराया था और उसकी प्रतिष्ठा भावदेव सूरिने की थी। सातसलाकी पहाड़ीपर स्थित स्तम्भके सन् ११०९ ई. के शिलालेखमें श्रेष्ठी पापाकी मृत्युका वर्णन मिलता है । सम्भवतः ये श्रेष्ठी पापा और शान्तिनाथ मन्दिरके निर्माता पापा एक ही व्यक्ति हैं। सन् १११३ के शिलालेखमें श्रेष्ठी साढिलकी मृत्युका उल्लेख मिलता है । सम्भवतः श्रेष्ठी पापा और श्रेष्ठी साढिलके मध्य पारिवारिक सम्बन्ध था। प्राचीन कालमें इस मन्दिरको बहत ख्याति थी। अनेक श्रावक और मुनिजन इसके दर्शनोंके लिए आते रहते थे। सन् १०४७ के एक शिलालेखमें एक यात्रीके नामका उल्लेख मिलता है।
उपर्युक्त मन्दिरके स्थानपर ही वर्तमान मन्दिरका निर्माण हुआ है, ऐसा लगता है। मूलनायक भगवान् शान्तिनाथकी मूर्ति प्राचीन मन्दिरकी ही मूर्ति है और इसकी प्रतिष्ठा सन् ११०३ में हुई थी, ऐसा विश्वास किया जाता है। इसका मूर्ति-लेख पढ़ा नहीं जा सका है।
__ मन्दिरके द्वारपर दो विशाल श्वेत वणं हाथी बने हुए हैं। इतने विशाल पाषाण-गज अन्यत्र कहीं देखनेमें नहीं आये । यहाँ हस्तलिखित ग्रन्थोंका एक विशाल शास्त्र-भण्डार भी है। इसमें अनेक अप्रकाशित एवं अनुपलब्ध शास्त्र विद्यमान हैं। यहाँ एक प्राचीन जल घड़ी है। उसीके अनुसार यहाँ घण्टे बजाये जाते हैं। पूर्वाह्न, मध्याह्न, सन्ध्या और अर्धरात्रिको प्राचीन कालकी रीतिके अनुसार मन्दिरमें नौबत बजती है।
मन्दिरकी कुछ प्राचीन प्रतिमाओंके मूर्ति-लेख इस प्रकार हैं
१-संवत् १४९० वर्षे माघ वदि १२ गुरौ भट्टारक श्री सकलकीति हूमड़ दोशी मेघा श्रेष्ठी अर्चति ।
२-संवत् १४९२ वर्षे वैशाख वदी १ सोमे श्री मूलसंघे भट्टारक श्री पद्मनन्दिदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्री सकलकोर्ति हूमड़ ज्ञातीय
३-संवत् १५०४ वर्षे फागुन सुदी ११ श्री मूलसंघे भट्टारक श्री सकलकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्री भुवनकीर्ति देवा हूमड़ ज्ञातीय श्रेष्ठि खेता लाखू तयोः पुत्राः
__४-संवत् १५३५ पौष बदी १३ बुधे श्री मूलसंघे भट्टारक श्री सकलकीति भट्टारक श्री भुवनकोति भट्टारक श्री ज्ञानभूषण गुरूपदेशात् हूमड़ श्रेष्ठि पद्मा भार्या भाऊ सुत आसा भा० कडू सुत कान्हा भार्या कुंदेरी भ्रातृ धना भार्या बइहनूं एते चतुर्विंशतिकां नित्यं प्रणमंति
५-पार्श्वनाथ प्रतिमा-संवत् १६२० वैशाख सुदी ९ बुधे श्री मूलसंघे बलात्कार गणे सरस्वती गच्छे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री पद्मनन्दि देवास्तत्पट्टे सकलकीर्ति देवास्तत्पट्टे