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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ कई जोड़ी बैल जोतकर उसे ले जानेका प्रयत्न किया, किन्तु सब प्रयत्न विफल रहे। तब उस बुद्धिमान श्रेष्ठीने नदीको दूसरी ओर मोड़कर उसी स्थानपर सन् १७४२ में मन्दिरका निर्माण कराना प्रारम्भ किया। निर्माण कार्य चार वर्षमें ( सन् १७४६ ) में पूर्ण हुआ। उसी वर्ष माघ सुदी ६ को विशाल समारोहके साथ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हुई । जिसमें हजारों यात्रियोंने भाग लिया । यह प्रतिष्ठा आमेर पीठके भट्टारक जगत्कीर्तिने करायी थी। अतिशय क्षेत्र
भगवान् आदिनाथकी उक्त प्रतिमाके चमत्कारों और अतिशयोंकी ख्याति सुदूर देशोंमें भी व्याप्त है। प्रतिमा अत्यन्त कलापूर्ण, समचतुरस्रसंस्थानयुक्त और भव्य है। ऐसी भुवनमोहन प्रतिमा कम ही हैं। इसके दर्शन करने मात्रसे हृदयमें अपूर्व शान्ति एवं आह्लादका अनुभव होता है। प्रतिमाकी प्रशान्त मुद्रा, उसका लावण्य और उसका कला-सौष्ठव ही उसका सबसे बड़ा
शय है। यहाँके लोगोंका कहना है कि यदा-कदा रात्रि में देवगण भी इस मन्दिरमें आते हैं और वे अत्यन्त मधुर ध्वनिमें नृत्य, वाद्य और गानके साथ भगवान्की स्तुति-भक्ति किया करते हैं । क्षेत्र-दर्शन
क्षेत्रके मुख्य प्रवेश-द्वारमें प्रवेश करनेपर एक विशाल अहाता मिलता है। उसके मध्य में संगमरमरका समवसरण मन्दिर है जो अभी निर्माणाधीन है। इसके बाद दायीं ओर एक द्वारसे दूसरे अहातेमें जाते हैं। इसमें चारों ओर धर्मशाला बनी हुई है। द्वारके बायीं ओर क्षेत्रका कार्यालय है। अहातेके प्रांगणके मध्यमें जिनालय बना हुआ है। मन्दिरके चारों कोनोंपर ऊपर छतरियां बनी हुई हैं। मन्दिरके समुन्नत शिखर कलशमण्डित हैं। मन्दिरके द्वार-मण्डपमें एक स्तम्भ है । इसमें चारों दिशाओंमें तीर्थंकर-मूर्तियां बनी हुई हैं। मध्यमें तीन ओर १ फुट ६ इंच ऊंचा और इतना ही चौड़ा शिलालेख है। इसमें मूलसंघ बलात्कारगण सरस्वतीगच्छ कुन्दकुन्दाचार्यान्वयके भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति, तत्-शिष्य भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति, तत्-शिष्य भट्टारक जगत्कीर्ति द्वारा संवत् १७४६ में माघ शुक्ला ६ सोमवारको चाँदखेड़ीमें बिम्ब-प्रतिष्ठा करानेका उल्लेख किया गया है।
द्वारमें प्रवेश करनेपर मन्दिरका अन्तःभाग मिलता है। इसमें पाँच वेदियां और एक गन्धकुटी बनी हुई है। इन वेदियोंमें कुल १३ तीर्थंकर-मूर्तियाँ और १ साधु-मूर्ति है। गन्धकुटीमें कृष्णवर्णके सुपार्श्वनाथकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। ये वेदियाँ एवं गन्धकुटी बरामदोंमें बनी हुई हैं।
यहाँ गर्भगृहमें तीन वेदियां हैं। प्रथम वेदीमें ५ पाषाण-मूर्तियां, ४ इंच ऊँचा एक पाषाणचैत्य जिसमें सर्वतोभद्रिका प्रतिमाएं हैं तथा ३ धातु-मूर्तियाँ हैं। द्वितीय वेदीमें बाहुबली स्वामीकी ५ फीट समुन्नत खड्गासन प्रतिमा है। इसके अतिरिक्त ३ पाषाण की तथा १ धातु की मूर्ति है। तृतीय वेदी में ८ मूर्तियाँ विराजमान हैं । ये सभी वेदियां और गन्धकुटी नवनिर्मित हैं।
इस गर्भगृहके निकट एक सोपान-मार्ग बना हुआ है जो तल-प्रकोष्ठको जाता है। इस प्रकोष्ठ में उतरनेपर बायीं ओरकी दीवालमें २ फीट ६ इंच समुन्नत एक शिलाफलकमें चतुर्भुजी देवी उत्कीर्ण है। इसके दोनों दाहिने हाथों में क्रमशः माला और अंकश हैं तथा बायें हाथों त्रिशूल और दण्ड हैं। इसके शिरोभागपर तीर्थंकर प्रतिमा पद्मासन मुद्रामें आसीन है। देवीका वाहन खण्डित है।