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________________ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ पहाड़पर एक प्राचीन जैन मन्दिर बना हुआ है। वहां पहाड़की चट्टानोंमें चार प्रतिमाएं उकेरी हुई हैं। ये खड्गासन और पद्मासन दोनों ही आसनोंमें हैं। इनकी अवगाहना पांच फुट है। ये प्रतिमाएं विक्रम संवत् १२ से ३० तककी बतायी जाती हैं । क्षेत्रका पता इस प्रकार है मन्त्री, श्री दिगम्बर जैन अतिशयक्षेत्र मन्दिर चमत्कारजी आलनपुर ( जिला सवाई माधोपुर ), राजस्थान । चाँदखेड़ी अवस्थिति और मार्ग श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र चांदखेड़ी झालावाड़ जिलेके खानपुर कस्बेसे तीन फलांग दूर रूपली नदीके तटपर अवस्थित है। क्षेत्रपर पहुँचनेके लिए बम्बई-देहली लाइनपर पश्चिमी रेलवेके झालावाड़ रोड, रामगंजमण्डो, कोटासे, बीना-कोटा ब्रांच लाइनपर अटरू व बारां तथा इन्दौरसे जयपुर और कोटा जानेवाले बस मार्गपर स्थित झालावाड़ जा सकते हैं। झालावाड़से बसें हर समय उपलब्ध होती हैं। यह क्षेत्र झालावाड़-बारां सड़कपर स्थित खानपुरसे केवल तीन फलांग दूर है। क्षेत्रसे अटरू स्टेशन ३५ कि. मी. और झालावाड़ रोड स्टेशन ६२ कि. मी. है। सभी ओरसे खानपुर उतरना पड़ता है। क्षेत्रका इतिहास इस क्षेत्रका निर्माण मुगल सम्राट औरंगजेबके शासन कालमें सन् १७४६ में खीचीवाड़ा मण्डलके चौहानवंशी महाराजा किशोरसिंह कोटाके दीवान शाह किशनदास बघेरवाल सांगोद ( जिला कोटा) ने कराया है। ___ इसके सम्बन्धमें एक अनुश्रुति परम्परासे प्रसिद्ध है कि शाह किशनदास खानपुरमें मवेशी मेलेमें आये हुए थे। उन्हें रात्रिमें स्वप्न हुआ कि बारहपाटी, जो खानपुर और शेरगढ़के बीच में खानपुरसे ९ कि. मी. दूर है, के पाडाखोहके भूगर्भ में कई सातिशय प्रतिमाएं दबी पड़ी हैं। जब वे नींदसे जागे तो कुछ साथियोंको लेकर उस स्थानपर पहुंचे और निर्दिष्ट स्थानपर खुदाई करायी। फलतः वहाँ भगवान् आदिनाथ, भगवान् महावीरकी तथा अन्य कई दिगम्बर जैन प्रतिमाएं प्राप्त हुई। सम्भवतः प्राचीन काल में यहां कोई विशाल जैन मन्दिर रहा होगा। प्रतिमाओंके दर्शन करके लोगोंने भक्तिभावसे उन्हें नमन किया। कहते हैं, भगवान् आदिनाथकी प्रतिमाको उठानेके लिए सभी लोगोंने बड़े-बड़े प्रयत्न किये, किन्तु वे उठानेमें सफल नहीं हो सके और रात हो गयी। तब रात्रिमें शाह किशनदासको स्वप्न हुआ, "भगवान्को तुम अकेले उठाओ और सरकण्डेको गाडीमें ले जाओ किन्तु पीछेकी ओर मडकर मत देखना।" प्रातःकाल होते ही शाहने सामायिक, पूजन-पाठ आदि कर स्वप्नानुसार उस विशालकाय प्रतिमाको सरकण्डेकी गाड़ीमें रखा। उनके आश्चर्यका ठिकाना न था कि बीसियों मनुष्यों द्वारा उठाये जानेपर भी जो प्रतिमा न उठ सकी, वह इतनी सरलतासे कैसे उठ गयी। _ शाहका विचार इस प्रतिमाको सांगोद या कोटा ले जानेका था। जब प्रतिमाको लिये हए गाड़ी रूपली नदीमें उतरी तो उनके मनमें सन्देह जागृत हुआ कि प्रतिमा कहीं रास्तेमें ही तो नहीं गिर पड़ी। अतः उस संशयात्माने पीछे मुड़कर जो देखा तो प्रतिमा वहीं अचल हो गयी।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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