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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
दायीं ओर १ फुट ९ इंच उन्नत और संवत् १८२६ में प्रतिष्ठित पार्श्वनाथको श्वेतवर्ण प्रतिमा है । इसकी प्रतिष्ठा भट्टारक सुरेन्द्रकीर्तिने संवत् १८२६ में सवाई माधोपुरमें करायी थी । इनके अतिरिक्त १ पाषाणकी तथा ७ धातुकी प्रतिमाएँ वेदी में विराजमान हैं ।
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इस मन्दिरके उत्तरकी ओर कुछ फर्लांगपर छतरी बनी है और उसमें चरण-चिह्न बने हुए हैं | आदिनाथ भगवान्की प्रतिमा इसी स्थान पर भूगर्भसे प्राप्त हुई थी । उसीकी स्मृति में इस छतरीका निर्माण किया गया था । दक्षिणकी ओर कुछ दूरीपर पण्डितजीकी नसिया है, जिसमें नेमिनाथ भगवान की मूलनायक प्रतिमा विराजमान है ।
धर्मशाला
मन्दिरके चारों ओर धर्मशाला बनी है, जिसमें ४१ कमरे हैं। यात्रियोंके लिए नल और format सुविधा है । एक धर्मशाला फाटकके सामने है किन्तु वह अभी बनी नहीं है । टूटी-फूटी दशामें पड़ी है ।
वार्षिकोत्सव : मेले
यहाँ वर्षमें पाँच मेले होते हैं - (१) आश्विन सुदी १५ और कार्तिक कृष्णा १ | यह उत्सव दक्षिणकी ओर सड़क के किनारे बने हुए चबूतरेपर होता है । (२) चैत्र कृष्णा ९ को भगवान् आदिनाथका जन्म-कल्याणक मनाया जाता है। यह उत्सव मन्दिरके पश्चिमकी ओर १ फ्लींगपर एक उद्यानमें बनी हुई पाण्डुक शिलापर मनाया जाता है । (३) वैशाख कृष्णा २ । (४) चम्पापुरीका मेला जो श्रावणमें भरता है । ( ५ ) वार्षिक उत्सव भाद्रपद कृष्णा २, जिस दिन भूगर्भ से आदिनाथ भगवान्की प्रतिमा निकली थी ।
व्यवस्था
इस क्षेत्रको व्यवस्था दिगम्बर जैन समाज सवाई माधोपुर द्वारा निर्वाचित प्रबन्ध कारिणी कमेटी द्वारा होती है ।
नगरके मन्दिर
सवाई माधोपुर प्राचीन नगर है। इसके चारों ओर पक्का कोट बना हुआ है। नगर में सात दिगम्बर जैन मन्दिर हैं : (१) तेरहपन्थी मन्दिर (२) दीवानजीका मन्दिर - इसमें पाँच सौ प्रतिमाएँ विराजमान हैं । (३) पंचायती मन्दिर (४) साँवलाजीका मन्दिर - इस मन्दिर में मूलनायक प्रतिमा साँवले वर्णकी है। इसलिए मन्दिरका नाम भी साँवलाजीका मन्दिर पड़ गया है । (५) भूसावड़ी मन्दिर, (६) दिगम्बर जैन नशिया और (७) मूँदामी मन्दिर । इनके अतिरिक्त दो चैत्यालय हैं । इन सभी मन्दिरों में नो सौसे अधिक प्रतिमाएँ हैं ।
निकटवर्ती क्षेत्र
इस क्षेत्र के आसपासमें श्रीमहावीरजी और पद्मपुरीजी प्रसिद्ध क्षेत्र हैं । दोनों क्षेत्रोंके लिए ट्रेनसे सीधा मार्ग है । इस क्षेत्रसे ६-७ मील दूर सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक रणथम्भौरका किला है । इस किले में प्राचीन जैन मन्दिर बना हुआ है। उसमें एक मूर्ति विक्रम संवत् १० की बतायी जाती है । इससे एक कोस आगे शेरपुर है। यहां भी जैन मन्दिर है। इसमें मूलनायक पार्श्वनाथ स्वामीकी प्रतिमा विक्रम संवत् १५ की बतायी जाती है । यह भी अतिशय क्षेत्र है । यहाँके अतिशयोंके सम्बन्धमें भी अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं । इससे ४-५ मील आगे किला खण्डार है । यहाँ