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________________ राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ जबसे यह प्रतिमा भूगर्भसे निकली है, तबसे अनेक चमत्कार होते रहे हैं । अतः इस क्षेत्रका नाम ही चमत्कारजी पड़ गया। यहाँ अनेक जैनाजैन व्यक्ति मनोकामनाएं लेकर आते हैं। कुछ व्यक्तियोंने अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होनेपर छतरी आदिका भी निर्माण कराया है जो अबतक यहाँ विद्यमान हैं। निजामत सवाई माधोपुरमें नसीरुद्दीन नामक एक नाजिम थे। उन्हें किसी गम्भीर अभियोगमें राज्यने पदच्युत कर दिया। बहुत प्रयत्न करनेपर भी उन्हें बहाल नहीं किया गया। तभी किसीने उनको भगवान् ऋषभदेवके चमत्कारोंकी बात बतायो। वे भगवान्के दर्शनके लिए आये और हाथ जोड़कर प्रार्थना की- "भगवन् ! यदि मैं अपने पदपर पुनः बहाल हो जाऊँ तो मैं मन्दिरके द्वारपर एक छतरी बनवाऊँगा।" इस प्रकार मनौती मनाकर वे चले तो मार्गमें ही उन्हें सूचना मिली कि सरकारने उनकी पद-च्यतिका आदेश वापस ले लिया है और वे पुनः अपने पदपर बहाल कर दिये गये हैं। यह समाचार मिलते ही वे पुनः मन्दिरमें वापस आये और बड़ी भक्तिसे भगवान्के दर्शन किये। उन्होंने अपने वचनानुसार लाल पाषाणकी छतरीका निर्माण कराया, जो मन्दिरके बाहर अबतक विद्यमान है। उनके कुछ समय पश्चात् सफरुद्दीन नामक नाजिम आये । वे सदा रुग्ण रहते थे। उन्होंने सभी प्रकारके उपचार कराये, किन्तु उनका रोग दूर नहीं हो सका। उन्हें किसीने ऋषभदेव भगवान्के चमत्कारकी बात बतायी। वे भी भगवान्के दर्शनोंके लिए आये। उन्होंने मनौती मनायी-"प्रभु ! यदि मैं रोग-मुक्त हो जाऊँ तो मैं चारों कोनोंपर चार छतरियोंका निर्माण कराऊँगा।" कुछ ही दिनोंमें पूर्णतः स्वस्थ हो गये । तब उन्होंने अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार मन्दिरके चारों ओर चारों कोनोंपर चार छतरियोंका निर्माण कराया। वे भी अबतक विद्यमान हैं। क्षेत्र-दर्शन यह क्षेत्र एक गली में है । यह स्टेशनसे शहरको जानेवाली सड़कसे थोड़ा हटकर है। मुख्य फाटकमें प्रवेश करनेपर क्षेत्रके दर्शन होते हैं। चारों ओर कटला बना हुआ है, जिसमें यात्रियोंके ठहरनेके लिए कमरे बने हुए हैं । भीतरी मैदानके मध्य में शिखरबन्द जिनालय है । जिनालयमें कुल दो वेदियां हैं । बाहर पटे हुए प्रांगणमें तीन दरको वेदी है। यह वेदी प्राचीन है। इसमें मूलनायक भगवान् पद्मप्रभकी १ फुट ३ इंच ऊंची कत्थई वर्णकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसका प्रतिष्ठा संवत् १५४६ है। बायीं ओर संवत् १५४२ में प्रतिष्ठित चन्द्रप्रभ भगवान्की भूरे वर्णकी ११ इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा है तथा दायीं ओर १० इंच ऊंचे एक पाषाण फलकमें पंचबालयतिकी प्रतिमा है । उससे आगे २ फीट २ इंच ऊंचे फलकमें एक खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमा है। हाथोंसे नीचे इन्द्र करबद्ध मुद्रामें खड़े हैं। प्रतिमाका वर्ण मटमैला है। मूलनायकके आगे दो श्वेत पाषाण प्रतिमाएं हैं । इनके अतिरिक्त ७ धातु प्रतिमाएं विराजमान हैं, जिनमें एक चौबीसी है तथा ५ इंच ऊँची एक देवी-प्रतिमा है । यह वेदी मन्दिरके निर्माणके समय ही बनी थी। मुख्य वेदीके पीछेकी वेदीमें भूगर्भसे उत्खनन द्वारा प्राप्त आदिनाथ भगवान्की ६ इंच ऊंची स्फटिक प्रतिमा विराजमान है। प्रतिमाकी चरण-चौकीपर वृषभ लांछन बना हुआ है। लेख नहीं है। इसी प्रतिमाके चमत्कारोंके कारण यह क्षेत्र चमत्कारजी कहलाता है। बायीं ओर २ फीट उन्नत कृणवर्णवाले पार्श्वनाथ भगवान्की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। मूर्ति-लेखके अनुसार इसकी प्रतिष्ठा संवत् १३९० चैत सुदी १३ गुरुवारको बलात्कारगणके भट्टारक कुमुदकीर्ति देवने करायी थी।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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