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राजस्थानके दिगम्बर जैन तीर्थ सामने मन्दिरका प्रवेश द्वार मिलता है। इसमें प्रवेश करनेपर मन्दिरका चौक आता है। महामण्डपमें प्रवेश करनेके लिए सात द्वार बने हुए हैं। पाँचके ऊपर खड्गासन प्रतिमाएं बनी हैं। सामने ही बड़ी वेदीमें जो तीन दरकी है, कत्थई वर्णके भगवान् महावीरकी मूर्ति विराजमान है। इसके बायीं ओर श्याम और दायीं ओर भूरे वर्णकी तीर्थंकर प्रतिमा विराजमान है। कत्थई वर्णकी मुख्य प्रतिमा क्षेत्रकी मूलनायक प्रतिमासे मिलती-जुलती है।
इस वेदीके बायीं ओर मुड़नेपर एक वेदीमें श्वेत वर्ण पद्मासन महावीर प्रतिमा है। पाद पीठपर सिंह लांछन है । यह वेदी एक ही दरकी है।
यहाँ दो सीढ़ी चढ़कर गर्भगृह आता है। गर्भगृहके बाह्य तोरणपर लगभग ६ इंचकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। द्वारके दोनों पक्षोंपर दण्डधर बने हुए हैं और उनके ऊपर खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमा है। गर्भगृहमें प्रथम वेदी तीन दरकी है जिसमें पाषाण एवं धातुकी अनेक प्रतिमाएं विराजमान हैं।
इससे आगेकी वेदीमें भगवान् शान्तिनाथकी श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। अवगाहना ३ फुट है । पादपीठपर हिरणका लांछन बना हुआ है।
आगे बढ़नेपर मुख्य वेदी मिलती है जो ३ दरकी है। इसके मध्यमें भूगर्भसे मिली हुई भगवान् महावीरकी अतिशयसम्पन्न प्रतिमा विराजमान है। यह मूंगा वर्णकी पद्मासन प्रतिमा है। इसकी बायीं ओर हलके लाल रंगकी और दायीं ओर श्वेत चित्तीदार प्रतिमा विराजमान है। इस मूतिके आगे घोके दीपक जलाये जाते हैं। लोग छत्र चढ़ाते हैं। यहीं मनौती मनाते हैं।
मलनायकके परिक्रमा-पथसे आगे बढ़कर एक दरकी वेदी है जिसपर श्वेत पाषाणकी भगवान् महावीरकी प्रतिमा विराजमान है। उसके दोनों ओर अन्य तीर्थंकरोंकी प्रतिमाएँ विराजमान हैं।
आगे भगवान् कुन्थुनाथकी मूर्ति विराजमान है। इसकी चरण चौकीपर बकरेका लांछन बना हुआ है। इसके दोनों ओर एक-एक पाषाणको मूर्ति है । दोनों ही प्रतिमाएं प्राचीन हैं । इनके आगे कई छोटी-छोटी धातु प्रतिमाएं हैं।
यहाँ द्वारसे निकलते ही बाहरकी ओर पहली जैसी ही पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा, द्वारपाल और उनके ऊपरकी ओर खड्गासन प्रतिमा बनी है। उसके दोनों ओर अति-प्राचीन कत्थई वर्णकी खड्गासन प्रतिमाएं हैं। उनके नीचेकी ओर चंवरधारी यक्षी बनी हुई हैं।
बाहरवाली बड़ी वेदीके एक ओरकी वेदीमें पद्मावतीकी प्रतिमा विराजमान है तथा दूसरी ओर क्षेत्रपाल विराजमान हैं। भक्त जनतामें इस क्षेत्रपालकी बहुत मान्यता है। लोगोंका विश्वास है कि महावीर स्वामीजीकी प्रतिमा और महावीरजी क्षेत्रपर जो अतिशय है वह इन्हीं क्षेत्रपालका है। इस विश्वासके कारण मनौती माननेवाले बहुत-से स्त्री-पुरुष इनके आगे धूप-बत्ती जलाते हैं।
___मन्दिरके बाहर परिक्रमा-पथ है। कोई तीन परिक्रमा लगाता है और कई भक्त १०८ परिक्रमा भी लगाते हैं। परिक्रमा-पथपर दीवालमें मकराना पाषाणपर अत्यन्त कलात्मक १६ पौराणिक दृश्योंका अंकन कराया गया है। ये दृश्य बहुत सुन्दर लगते हैं। मन्दिरके ऊपर तीन विशाल शिखर बने हुए हैं। मन्दिरके नीचे एक ओर सीढ़ियोंके बगलसे श्रीमहावीरजी दिगम्बर जैन क्षेत्रका कार्यालय है। दूसरी ओर मन्दिरके बायीं ओर क्षेत्रकी ओरसे संचालित सरस्वतीभवन है। मन्दिरके नीचेके भागमें भाण्डागार, पूजन प्रक्षाल हेतु स्नानघर और पूजन-सामग्री धोनेकी व्यवस्था है।