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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ तथा आगेके भागों को, जिनका सम्बन्ध दक्षिण भारतके दिगम्बर जैन तीर्थोसे है, परिकल्पना भी उनके निर्देशनमें तैयार कर ली गयी थी। आज वह हमारे बीच नहीं हैं। उनका आकस्मिक निधन देशके लिए और विशेषकर हमारी समाजके लिए एक वज्रपात है। हमारे बीच होकर जब वे बड़ी-बड़ी योजनाओंको भी सहज रूप देकर साधन जुटा देते थे तो हममें कार्य करनेकी दुगुनी क्षमता आ जाती थी। सामाजिक जीवनके अनेक पक्षोंसे वह व्यक्तिगत रूपसे सम्पृक्त थे और सबको साथ लेकर चलना उनके नेतृत्वका बहुत बड़ा गुण था। भगवान् महावीरके पचीससौ-वें निर्वाण महोत्सवपर देशमें जो जागृति आयी, जैनधर्म-दर्शनका अभूतपूर्व प्रचार हुआ, एकताकी जो नींव रखी गयी वह हमारी इस पीढ़ीके लिए गौरवकी बात है। आज श्री साहूजीके प्रति अपने हृदयकी सम्पूर्ण श्रद्धा अर्पित करते समय हम उनके अभावमें किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे हैं। फिर भी, उनके दिये हुए दायित्वोंका निभाना, उनके बताये हुए मार्गपर चलना हमारा कर्तव्य है।
हमारा पूरा प्रयत्न है कि दक्षिण भारतके जैन तीर्थोसे सम्बन्धित दोनों भाग भी जल्दी प्रकाशमें आयें।
तीर्थक्षेत्र कमेटी और भारतीय ज्ञानपीठके संयुक्त तत्वावधानमें इस ग्रन्थकी सामग्रीका संकलन, लेखन, सम्पादन एवं प्रकाशन हुआ है, हो रहा है। प्रस्तुत ग्रन्थके प्रकाशनमें जिन-जिन महानुभावोंका सहयोग प्राप्त हुआ है, मैं उन सभीका तीर्थक्षेत्र कमेटीकी ओरसे बाभारी हूँ ।.
लालचन्द हीराचन्द
सभापति भा. दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, बम्बई
दिनांक १५ जनवरी, १९७८